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तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी गुजारा भत्ते की हकदार

06:44 AM Jul 30, 2024 IST
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हाल ही में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने फैसला देते हुए कहा कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने के लिए याचिका दायर करने की हकदार है। यह धारा सभी शादीशुदा महिलाओं पर लागू होती है, जिनमें शादीशुदा मुस्लिम महिलाएं भी शामिल हैं।

श्रीगोपाल नारसन
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने की हकदार है। साल 1985 में शाहबानो के केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह का फैसला दिया था। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए याचिका दायर करके अपने पूर्व पति से भरण-पोषण भत्ता प्राप्त कर सकती है। साल 1985 में भी सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो केस में अपने फैसले में कहा था कि सीआरपीसी की धारा 125 एक सेक्युलर धारा है, जो सभी महिलाओं पर लागू होती है। इसके बाद 1986 में केंद्र सरकार ने संसद में मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) कानून पास कर इस फैसले को पलट दिया था।
तलाक के बाद मांगा गुजारा भत्ता
मौजूदा केस के तथ्यों के मुताबिक, 15 नवंबर, 2012 को पीड़ित मुस्लिम महिला ने अपने पति का घर छोड़ दिया था व 2017 में अपने पति के विरुद्ध धारा 498ए और 406 के तहत मुकदमा दर्ज कराया। मुकदमे से नाराज होकर पति ने महिला को तीन तलाक दे दिया था, 28 सितंबर 2017 को तलाक का सर्टिफिकेट जारी हो गया। इसके बाद इद्दत की 3 माह की अवधि तक पति ने महिला को हर महीने 15 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने की पेशकश की। लेकिन महिला ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता देने की मांग की। नौ जून, 2023 को फैमिली कोर्ट ने हर महीने 20 हजार रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश उसके पूर्व पति को दिया।
ऊपरी अदालतों में दी चुनौती
फैमिली कोर्ट के फैसले को पति ने तेलंगाना हाईकोर्ट में चुनौती दी। तेरह दिसंबर, 2023 को हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा,लेकिन भरण-पोषण की रकम 20 हजार से घटाकर 10 हजार रुपये कर दी। पूर्व पति ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया व दलील दी कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला धारा 125 के तहत याचिका दायर करने की हकदार नहीं है। मुस्लिम महिला पर 1986 का मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) कानून लागू होता है।
‘धारा 125 सब शादीशुदा महिलाओं पर लागू’
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने फैसला देते हुए कहा कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने के लिए याचिका दायर करने की हकदार है। क्योंकि सीआरपीसी की धारा 125 सभी शादीशुदा महिलाओं पर लागू होती है, जिनमें शादीशुदा मुस्लिम महिलाएं भी शामिल हैं। अगर किसी मुस्लिम महिला की शादी या तलाक स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होते हैं, तो भी उस पर धारा 125 लागू होगी,अगर मुस्लिम महिला की शादी और तलाक मुस्लिम कानून के तहत होता है तो उसपर धारा 125 के साथ-साथ 1986 के कानून के प्रावधान भी लागू होंगे। तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के पास दोनों कानूनों में से किसी एक या दोनों के तहत गुजारा भत्ता पाने का विकल्प है।
तीन तलाक रोधी कानून का भी हवाला
अगर 1986 के कानून के साथ-साथ मुस्लिम महिला धारा 125 के तहत भी याचिका दायर करती है तो 1986 के कानून के प्रावधानों के तहत जारी हुए सीआरपीसी की धारा 127(3)(b) के तहत याचिका पर विचार किया जा सकता है। अगर पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता दिया गया है, तो धारा 127(3)(b) के तहत भी मजिस्ट्रेट विचार कर सकते हैं। साल 2019 में केंद्र सरकार ने कानून लाकर तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया। अपने फैसले में जस्टिस नागरत्ना ने माना कि तीन तलाक के अवैध तरीके से भी किसी मुस्लिम महिला को तलाक दिया जाता है तो वह भी धारा 125 के तहत भरण पोषण का दावा कर सकती है। क्योंकि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को धारा 125 से बाहर नहीं रखा जा सकता, भले ही उसे किसी भी कानून के तहत तलाक दिया गया हो। धारा 125 में महिलाओं, बच्चों और माता-पिता को मिलने वाले गुजारा भत्ता का प्रावधान है।
नए कानून में भी प्रावधान
नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में ये प्रावधान धारा 144 में दिया गया है,जिसके अनुसार कोई भी पुरुष अलग होने की स्थिति में अपनी पत्नी, बच्चे और माता-पिता को गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता। पत्नी को गुजारा भत्ता तब मिलेगा जब या तो वह खुद तलाक ले या उसका पति तलाक दे, जब तक कि महिला दोबारा शादी नहीं कर लेती। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि अब समय आ गया है कि भारतीय पुरुष परिवार के लिए गृहिणी की भूमिका को पहचानें व उसे वित्तीय सहायता प्रदान करें। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से असहमति जताते हुए इसे मौलिक अधिकारों का हनन बताया है।
-लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।

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