आध्यात्मिकता और करुणा का दिव्य पाठ
आर.सी. शर्मा
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म होने के कारण इसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की 5251वीं जयंती है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के अत्याचारी राजा कंस की जेल में मां देवकी के कोख से आधी रात को हुआ था। उस दिन भादो महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी और रोहिणी नक्षत्र था, जिसका महत्वपूर्ण स्थान है।
दुनिया में बहुत से महापुरुष हुए हैं, लेकिन समय के साथ उनकी शिक्षाएं अप्रासंगिक हो गई हैं। इसके विपरीत, भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाएं और दर्शन आज भी पूरी तरह प्रासंगिक हैं। यही कारण है कि वे वर्तमान समय के सबसे प्रभावशाली धार्मिक, आध्यात्मिक और सांसारिक व्यक्तित्व बने हुए हैं। श्रीकृष्ण प्रेम और करुणा के देवता हैं, जिनकी आज भी पूरी दुनिया को आवश्यकता है। श्रीकृष्ण को योगेश्वर भी कहा जाता है, और आज के तनावभरे जीवन में योग की महत्वता सभी मानते हैं। उनके जीवन में हमेशा रिश्तों को सर्वोच्च मान दिया गया। आज भी ईमानदार और भावनात्मक संबंधों की जरूरत है, और श्रीकृष्ण की शिक्षाएं इस दिशा में मार्गदर्शन करती हैं। वे हमेशा हिम्मत और कर्म करने की प्रेरणा देते हैं, और यही मूल्य आज भी जीवन की सबसे बड़ी कसौटी माने जाते हैं।
श्रीकृष्ण ने पांच हजार साल पहले ही स्त्रियों को मान, सम्मान और बराबरी दी थी, जिसकी कल्पना भी तब नहीं की जा सकती थी। आज के आध्यात्मिक गुरु धर्म को एक कर्तव्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं, लेकिन श्रीकृष्ण ने यह शिक्षा पहले ही दे दी थी। इसलिए भारत के कोने-कोने में उनके विभिन्न नामों और रूपों के अनुयायी हैं। वे विष्णु के पूर्ण अवतार माने जाते हैं, और उनकी पूजा हिंदू धर्म की प्रमुख परंपरा और वैष्णो मत का हिस्सा है। श्रीकृष्ण ने जीवन के हर पहलू को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया। उनका गीता ज्ञान, जो महाभारत के युद्ध क्षेत्र कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिया गया था, आज भी सबसे श्रेष्ठतम ज्ञान माना जाता है। समय के बदलावों और दुनिया की उथल-पुथल के बावजूद, श्रीकृष्ण का ज्ञान हमेशा प्रासंगिक रहा है।
श्रीकृष्ण के जीवन में संघर्ष की एक लंबी परंपरा रही है। कारागार में जन्म लेकर, मूसलधार बारिश और उफनती यमुना को पार करके, श्रीकृष्ण ने गोकुल पहुंचने का कठिन रास्ता तय किया। जीवन की चुनौतियों का सामना करते हुए भी वे हमेशा मुस्कुराते रहे और जीवन को खुशी से जीने की प्रेरणा दी। श्रीकृष्ण कर्म करने को कर्तव्य मानते हैं और फल की चिंता किए बिना अपना धर्म निभाने की सलाह देते हैं। वे काम और मस्ती दोनों के पक्षधर थे—जहां कठिन श्रम करते थे, वहीं बांसुरी बजाना और रास लीला का आनंद भी लेते थे। उनका जीवन एक आदर्श उदाहरण है, जिसमें स्वास्थ्य, रचनात्मकता, और रिश्तों को महत्व दिया गया है।
श्रीकृष्ण ने 64 कलाओं में परिपूर्णता हासिल की और जीवन के हर पहलू को एक कला के रूप में प्रस्तुत किया। उनका व्यक्तित्व इसलिए दिव्य-भव्य और योग्यताओं से भरपूर है क्योंकि उन्होंने हर तरह की रचनात्मकता को महत्व दिया। वे धरती के सबसे बड़े ज्ञानी और सबसे बड़े विमोही थे, जिन्होंने रिश्तों को भी अत्यंत सम्मान और निष्ठा के साथ निभाया।
इस प्रकार, श्रीकृष्ण केवल कर्मकांडों के देवता नहीं बल्कि आज भी वास्तविक जीवन के आदर्श हैं। उनकी शिक्षाएं और उनके जीवन के मूल्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।