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Waqf Amendment Bill पर राज्यसभा में चर्चा, कांग्रेस ने कहा- बिल के पीछे वोट बैंक की राजनीति 

03:28 PM Apr 03, 2025 IST
किरेन रिजिजू राज्यसभा में बोलते हुए। पीटीआई

नयी दिल्ली, 3 अप्रैल (भाषा)

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Waqf Amendment Bill: राज्यसभा में बृहस्पतिवार को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रीजीजू ने कहा कि वक्फ़ संशोधन विधेयक को लेकर पहले सरकार और फिर संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) ने विभिन्न पक्षों से व्यापक विचार विमर्श किया और इसके जरिये वक्फ़ बोर्ड को समावेशी बनाया गया है।

रीजीजू ने यह बात उच्च सदन में वक्फ़ संशोधन विधेयक, 2025 और मुसलमान वक्फ़ (निरसन) विधेयक को चर्चा एवं पारित करने के लिए रखने के दौरान कही। उन्होंने कहा कि 2006 में 4.9 लाख वक्फ़ संपत्ति देश में थीं और इनसे कुल आय मात्र 163 करोड़ रुपये की हुई, वहीं 2013 में बदलाव करने के बाद भी आय महज तीन करोड़ रुपये बढ़ी।

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उन्होंने कहा कि आज देश में कुल 8.72 लाख वक्फ़ संपत्ति हैं। उन्होंने कहा कि विधेयक में वक्फ़ संपत्ति को संभालने वाले मुतवल्ली, उसके प्रशासन और उस पर निगरानी का एक प्रावधान है। रीजीजू ने कहा, ‘‘किसी भी तरीके से वक्फ़ बोर्ड वक्फ़ संपत्ति का प्रबंधन नहीं करता और उसमें हस्तक्षेप नहीं करता।''

भाजपा लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिलने के कारण वक्फ़ विधेयक लेकर आयी: कांग्रेस सांसद हुसैन

राज्यसभा में बृहस्पतिवार को कांग्रेस सांसद सैयद नसीर हुसैन ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार पर आरोप लगाया कि उसने 2013 में वक्फ़ संशोधन विधेयक का समर्थन करने के बाद अपना रुख इसलिए बदल लिया क्योंकि 2024 के चुनाव में उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और वह वक्फ़ कानून के बारे में देश में तमाम तरह की भ्रांतियां फैला रही है।

वक्फ़ (संशोधन) विधेयक, 2025 पर उच्च सदन में हो रही चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के सैयद नसीर हुसैन ने कहा कि 2013 में जब यह विधेयक संसद में आया तो लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों में भाजपा के नेताओं ने उसका समर्थन किया था लेकिन आज इसे ‘दमनकारी कानून' करार दिया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि 2024 में जब सत्तारूढ़ भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और वह 240 सीटों पर सिमट गयी तो उसे इस वक्फ़ कानून की याद आयी और वह इसे दमनकारी कानून कहने लगी। उन्होंने कहा कि भाजपा शासित कई प्रदेशों में तो वक्फ़ बोर्ड गठित ही नहीं किये गये और आज अल्पसंख्यक मंत्री वक्फ़ में पारदर्शिता लाने की बात कर रहे हैं।

हुसैन ने सरकार से जानना चाहा कि क्या सरकार ‘प्रैक्टिसिंग मुस्लिम' की पहचान करने के लिए कोई अलग विभाग खोलेगी और उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगा कर कोई प्रमाणपत्र देगी ? उन्होंने कहा कि इस विधेयक का असली मकसद यह है कि खुद सरकार की नज़र वक्फ़ की जमीन पर लगी हुई है। उन्होंने दावा किया कि सत्तारूढ़ दल अपनी वोट बैंक की राजनीति के लिए यह विधेयक लेकर आया है।

हुसैन ने सरकार को चुनौती दी कि विधेयक पर विचार के लिए जो संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) गठित की गयी थी, उसमें आये अधिकतर लोगों ने विधेयक के खिलाफ राय दी। उन्होंने सरकार को चुनौती दी कि जेपीसी और सरकार के पास इस विधेयक को लेकर जो ज्ञापन और दस्तावेज आये, उन्हें सार्वजनिक किया जाए ताकि देश को पता चल सके कि विधेयक के पक्ष में कितने लोगों ने सुझाव दिये और कितने लोगों ने इसका विरोध किया।

उपरोक्त जेपीसी के सदस्य हुसैन ने कहा कि समिति की बैठक में विधेयक के प्रावधानों पर विस्तार से विचार विमर्श नहीं किया गया और विपक्ष के सदस्यों की आवाज को दबाया गया। उन्होंने दावा किया कि विपक्षी सदस्यों की किसी भी सिफारिश को जेपीसी रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया। कांग्रेस सदस्य ने सुझाव दिया कि पर्सनल लॉ को छोड़कर सभी धर्मों एवं संप्रदायों के मामलों के लिए एक समान कानून बनाया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सरकार इस विधेयक के माध्यम से एक ‘लक्षित कानून' लाना चाहती है। उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा एक समुदाय को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद पहली बार देश में एक खास वर्ग के लोगों की नागरिकता को कानून के माध्यम से रोका जा रहा है। हुसैन ने कहा कि आज मस्जिदों को खोदकर मंदिर तलाशे जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यदि इतिहास में जाकर पुरानी बातों को खोदा जाएगा तो पता नहीं क्या क्या बातें निकलेंगी ? उन्होंने कहा कि सरकार और सत्ता पक्ष देश में यह भ्रम फैला रहे हैं कि केवल मुसलमानों के लिए वक्फ़ कानून है। उन्होंने कहा कि मंदिरों के प्रबंधन के लिए कई कानून हैं, एसजीपीसी संबंधित कानून है और कई राज्यों में चर्चों से जुड़े कानून हैं।

हुसैन ने कहा कि वक्फ़ विधेयक के बारे में यह गलत धारणा फैलायी जा रही है कि वक्फ़ न्यायाधिकरण के फैसलों को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। इस पर गृह मंत्री अमित शाह ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि वर्तमान कानून के अनुसार न्यायाधिकरण के फैसलों के खिलाफ अपील में दीवानी वाद दायर नहीं किया जा सकता, जिसे इस विधेयक में दुरूस्त किया गया है।

 

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