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समाज में अनसुलझे सवालों पर मंथन

06:45 AM Apr 28, 2024 IST
समाज में अनसुलझे सवालों पर मंथन
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सुदर्शन गासो

‘मोर्चे पर विदागीत’ कवि विहाग वैभव का प्रथम काव्य संग्रह है। इससे पूर्व इनकी कविताएं हिन्दी की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। इनकी कविताएं दूसरी भाषाओं में भी अनुवाद हो चुकी हैं। कवि ने अपनी कविताओं में वंचित शोषित समाज और हाशिये पर धकेले गए लोगों द्वारा झेले जा रहे जुल्मों का उल्लेख किया। उन्होंने जातिगत समाज के दंश के ज़हर को पीने की पीड़ा को बहुत गहरी संवेदना और दर्द की गहराई के साथ प्रस्तुत किया है। इस दृष्टि से यह काव्य-संग्रह हमारे समय का प्रामाणिक दस्तावेज है।
कवि समाज व्यवस्था के अमानवीय पक्षों को अपनी कविता के प्रश्नों के घेरे में लाता जाता है। वह लोगों को प्रताड़ित करने वाली प्रत्येक शक्ति से प्रश्न करता है।
इस देश में ईश्वर होना
किसान होने से कई गुना आसान है ईश्वर को किसान होना चाहिए।
कवि काव्य की भाषा जानता है वह शब्दों को कलात्मक खूबसूरती से भर देता है :-
जब भी धूप-भरी छत पर वह निकल आती है नंगे पांव
तो सूरज को गुदगुदी होने लगती है
धूप खिलखिलाने लगती है
वह दुनिया की खुबसूरत पत्नियों में से एक है।
धर्म के दुरुपयोग द्वारा समाज में पैदा किए जा रहे अंध-विश्वास और सत्ता द्वारा धर्म की आड़ में लोगों के शोषण की कुनीतियों को कवि ने प्रस्तुत किया है :-
जुबान को काटकर रख आओ सत्ता के पैरों पर आंखों का पानी बेच आओ सम्प्रदाय की दुकान में आने के पहले थोड़ा लाश हो जाओ थोड़ा-थोड़ा हो जाओ पत्थर।
कवि के अनुसार जातिगत संस्कारों द्वारा एक जाति के मन में दूसरी जाति के प्रति जहर भरा जाता है और समाज में गहरी खाई खोदी जाती है। फिर नफ़रतों भरा समाज, प्रेम, प्यार, स्नेह, सद्‌भावना के गीत गाना भूल जाता है। कवि के अनुसार अमन की स्थापना आज पूरे विश्व की प्राथमिक आवश्यकता है। कवि मुश्किल परिस्थितियों का वर्णन कठोर शब्दों में करने से भी संकोच नहीं करता। अभिव्यक्ति की दृष्टि से कविताएं सार्थक संवेदना और पेशकारी का दामन पकड़े रहती हैं। कवि ऐसे समाज की कल्पना करता है जिस में किसी किस्म का जुल्म करने व प्रताड़ना न हो। कवि सभ्यता और समाज के अनसुलझे प्रश्नों के समुख खड़ा होकर उनके उत्तर ढूंढ़ता है, ढूंढ़ने की चाहत रखता है। विहाग, आक्रोश को क्रांति के रास्ते पर चलने की तत्परता भी दिखाते हैं।

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पुस्तक : मोर्चे पर विदागीत कवि : विहाग वैभव प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 158 मूल्य : रु. 199.

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