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चरचा हुक्के पै

09:03 AM Oct 14, 2024 IST

‘भर्ती बोर्ड’ के सदस्य आउट

हरियाणा के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के कई ‘भाई लोग’ खुद ही ‘भर्ती बोर्ड’ के सदस्य बन गए थे। चुनावी घोषणा-पत्र में कांग्रेस ने दो लाख सरकारी नौकरियां देने का ऐलान किया। चुनाव लड़ रहे कई लोगों ने सोचा कि यह तो बड़ा मौका है, वोट हथियाने का। उन्होंने इसे हाथों-हाथ लपकते हुए वोट मांगने के दौरान नौकरियों को लेकर भी प्रचार कर दिया। पब्लिक प्लेटफार्म पर खुलकर यह कहा गया कि सरकार बनने के बाद जिसकी भी ‘पर्ची’ आ गई, उसकी नौकरी पक्की। एक साहब ने तो पचास वोट के बदले एक नौकरी लगाने का ऐलान कर दिया। एक नेताजी के साहबजादे भी पीछे नहीं रहे। कहने लगे कि दो लाख नौकरियों में उनके हलके के हिस्से में जो आएंगी, उससे 25 प्रतिशत अलग कोटा लेकर आएंगे। पर्ची लेकर सीधी चंडीगढ़ जाएंगे और नौकरी लगवाएंगे। अब इन भाई लोगों को यह कौन समझाए कि यह ‘पर्ची’ ही तो असल बीमारी की जड़ है। मनोहर लाल साढ़े नौ वर्षों तक राज कर गए और उनका ‘पर्ची’ नहीं पकड़ने का अंदाज ही लोगों को इतना रास आ गया कि हरियाणा में नया इतिहास रच दिया। भाजपा को तीसरी बार सत्ता तक पहुंचाने में यह ‘पर्ची’ बड़ी कारगर सिद्ध हुई है।

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कहीं के ना रहे ‘छोटे सीएम’

लोकसभा चुनावों से पहले ही कांग्रेसियों ने यह ऐलान कर दिया था कि इस बार सरकार बनने के बाद हरियाणा में तीन से चार डिप्टी सीएम बनाए जाएंगे। उस समय मोटे तौर पर यह तो तय मान लिया गया था कि मुख्यमंत्री जाट होगा और एक ब्राह्मण, एक एससी, एक पंजाबी और एक पिछड़े वर्ग के नेता को डिप्टी सीएम बनाया जाएगा। लोकसभा में दस में से पांच सीटें जीतने के बाद कांग्रेसियों का मनोबल और बढ़ गया। फिर क्या था, चुनाव प्रचार में जुटे इन जातियों के कई उम्मीदवारों ने तो यह कहते हुए लोगों से वोट मांगने शुरू कर दी थी कि आप विधायक नहीं, डिप्टी सीएम चुन रहे हो। लेकिन कोई भी वोटर के मूड को भांप नहीं पाया। नतीजा यह हुआ कि अधिकांश डिप्टी यानी ‘छोटे सीएम’ लोग घर बैठा दिए गए।

ईडी वाले तीनों हारे

बताते हैं कि टिकट आवंटन के दौरान कांग्रेस की दिल्ली में हुई बैठकों में यह मुद्दा उठा था कि जिन लोगों पर केस दर्ज हैं, उन्हें टिकट देने से बचना चाहिए। कम से कम ईडी केस वालों के बारे में सोचना जरूरी है। लेकिन पार्टी सिटिंग-गैटिंग का ऐसा फार्मूला लेकर आई कि सभी बैठे-बिठाए टिकट मिल गई। पार्टी के तीन मौजूदा विधायकों के खिलाफ ईडी के मामले चल रहे थे। एक की गिरफ्तारी भी हुई। यह बात अलग है कि बाद में हाईकोर्ट ने अपने फैसले में उसे रिहा कर दिया। लेकिन बाकी दोनों पर तलवार लटकी रही। यह स्थिति आज भी नहीं बदली है। अब अंदरखाने माहौल ऐसा था, या फिर लोगों ने ही ‘ईडी’ वाले ‘भाई लोगों’ से किनारा कर लिया। तीनों ही ‘भाई’ साहब चंडीगढ़ की बस में नहीं बैठ सके। रोचक बात यह है कि पांच वर्षों तक तीनों के पास चंडीगढ़ की ‘टिकट’ भी रही, लेकिन इस बार इलाके के लोगों ने उन्हें ‘बस’ से उतार दिया।

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छठी पलटी, पड़ी उलटी

सिरसा वाले डॉक्टर साहब ने पांच वर्षों में छठी बार पलटी मारी। कई चौखटों पर माथा टेकने के बाद अचानक पता नहीं क्या मन में आई, 152डी यानी अम्बाला से रायमिलकपुर (राजस्थान बार्डर) तक बने इस एक्सप्रेस-वे पर सवार हो गए। दोपहर में सफीदों में भाजपा के लिए वोट मांग रहे थे। दो घंटे बाद महेंद्रगढ़ में राहुल गांधी के साथ मंच पर नज़र आए और सांघी वाले ताऊ के हाथों गले में पटका पहन लिया। अब नेताजी को इस बात की भनक कहां थी कि कांग्रेस सत्ता में ही नहीं आ पाएगी। वैसे अपने ‘मनोहर काका’ ने एक किस्सा कई बार सुना चुके हैं। इस बार डॉक्टर साहब पर वह सही साबित हुआ। यानी भंडारा खाने मंदिर के अंदर गए तो लंगर खत्म और बाहर आए तो चप्पल गायब। इससे भी बुरी बात यह बनी कि अपने काका ने डॉक्टर साहब के लिए पहले से बड़ी प्लानिंग की हुई थी। दिल्ली में उन्हें बड़ी कुर्सी देने की तैयारी थी। एक तरह से केंद्र में राज्य मंत्री का रैंक। लेकिन अब नेताजी ना घर के रहे, ना घाट के।

सचिवालय की धकधक

पांच अक्तूबर को 90 सीटों के लिए हुए मतदान के बाद से सचिवालय ही नहीं, पूरे प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी के कई अधिकारी यह तय मानकर चल रहे थे कि भाजपा सत्ता से गई और कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है। कई ‘भाई लोगों’ ने रोहतक और नयी दिल्ली के चक्कर भी काटने शुरू कर दिए थे। कइयों की मुलाकात भी सांघी वाले ताऊ और कांग्रेसियों के साथ हुई। सत्ता में आने के बाद ‘मलाईदार’ महकमों में पोस्टिंग का पहले से इंतजाम कर लेना चाहते थे। 8 अक्तूबर को दस बजे के बाद जब चुनावी रुझान भाजपा के हक में आने शुरू हुए और आखिर तक कायम रहे, तो फिर उनकी धड़कनें बढ़ गईं। अब ऐसे सभी ‘भाई लोग’ बड़ी दुविधा में हैं। उनकी धड़कनें मिटने का नाम नहीं ले रही हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि भाजपाइयों का किस ‘मुंह’ से सामना करेंगे। हालांकि ब्यूरोक्रेसी को राज का ‘पूत’ भी कहा जाता है। इसलिए, किसी न किसी माध्यम से वे फिर से लौट आएंगे, मुख्यधारा में।

अब पछता रहे ‘भाजपाई’

भाजपा के टिकट आवंटन के बाद कई भाजपाइयों ने कांग्रेस की हवा देखते हुए कांग्रेसी पटका पहन लिया। इनमें मौजूदा व पूर्व विधायक व मंत्री भी शामिल रहे। खुलकर प्रचार भी किया और भाजपा को गालियां देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। अब जब भाजपा लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है, तो इन भाई लोगों की टेंशन बढ़ी हुई है। अब अपने समर्थकों को फोन करके कह रहे हैं कि गलती हो गई। वैसे, भाजपा ने जिन लोगों के टिकट काटे, उनमें से कई ऐसे भी हैं, जिन्होंने निर्दलीय परचा भर दिया था, लेकिन बाद में वे मान गए। माना जा रहा है कि ऐसे नेताओं की अब सरकार में एडजस्टमेंट हो सकती है।

फिर ‘मुख्यधारा’ में लौटेंगे ‘उतरे हुए’

मनोहर कैबिनेट की तरह इस बार नायब कैबिनेट के भी ‘नवरत्न’ चुनाव में लुढ़क गए। लेकिन खुशी की बात यह है कि इन ‘उतरे हुए’ मंत्रियों में से कई की लॉटरी लग सकती है। सूत्रों का कहना है कि चुनाव हारने वाले मंत्रियों में से कई की एडजस्टमेंट की तैयारी सरकार के गठन से पहले ही हो चुकी है। यमुनानगर वाले नेताजी के अलावा अम्बाला वाले ‘सेठजी’ भी जल्द ही ‘मुख्यधारा’ में लौटते नजर आएंगे।
-दादाजी

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