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चरचा हुक्के पै

10:06 AM Sep 30, 2024 IST

डिजिटल मीडिया पर भी जंग

हरियाणा विधानसभा के चुनावों में इस बार राजनीतिक दलों द्वारा ग्राउंड के साथ-साथ डिजिटल मीडिया पर भी लड़ाई लड़ी जा रही है। राजनीतिक दलों के नेताओं के अलावा चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों द्वारा भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म का भरपूर उपयोग चुनाव प्रचार के लिए किया जा रहा है। दोनों प्रमुख दलों – भाजपा व कांग्रेस के नेताओं द्वारा डिजिटल मीडिया पर एक-दूसरे के आरोपों के जवाब भी दिए जा रहे हैं। अपने दाढ़ी वाले ‘बड़े साहब’ भी रोजाना सोशल मीडिया एक्स के जरिये कांग्रेस को घेरने में जुटे हैं। कांग्रेस की चुनावी गारंटियों को लेकर स्थिति स्पष्ट कर रहे हैं, भाजपा के फैसलों और नीतियों को भी आगे रख रहे हैं। वहीं अधिकांश दलों द्वारा चुनावी रैलियों के अलावा जनसभाओं का भी सोशल मीडिया के जरिये लाइव प्रसारण किया जा रहा है। यह एक ऐसा माध्यम बनकर उभरा है, जिससे नेताओं को बिना कुछ खर्चे ही पूरा प्रचार करने का मौका मिल रहा है।

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मैं भी मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री पद को लेकर झगड़ा अकेले कांग्रेस में नहीं, भाजपा में भी है। बेशक, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि पार्टी मौजूदा सीएम नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ रही है। सैनी को ही पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया हुआ है। पिछले दिनों अपने अंबाला कैंट में ‘दाढ़ी वाले बाबा’ यानी ‘गब्बर’ ने भी अपनी इच्छा जाहिर कर दी। कहने लगे – मैं पांच बार का विधायक हूं। मैंने आज तक पार्टी से कुछ नहीं मांगा है। इस बार मैं भी वरिष्ठता के हिसाब से मुख्यमंत्री पद की मांग करूंगा। वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस में सांघी वाले ताऊ, रोहतक वाले सांसद महोदय व सिरसा वाली बहनजी के बाद अब कैथल वाले नेताजी ने भी कह दिया है कि वे भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। उनके समर्थक अब जनसभाओं में उन्हें भावी मुख्यमंत्री भी कहने लगे हैं।

परिवार की जुगलबंदी

इस बार के चुनावों में देवीलाल परिवार के सदस्यों के बीच भी गजब की जुगलबंदी देखने को मिल रही है। सिरसा जिले की डबवाली सीट पर जजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे दिग्विजय सिंह चौटाला का समर्थन उनके दादा व पूर्व मंत्री चौ़ रणजीत सिंह कर रहे हैं। वहीं अजय चौटाला व दुष्यंत चौटाला द्वारा रानियां से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे रणजीत सिंह की खुलकर मदद की जा रही है। यहां इनेलो टिकट पर अभय चौटाला के पुत्र अर्जुन चौटाला चुनाव लड़ रहे हैं। इसी तरह डबवाली की सीट पर अभय चौटाला अपने चचेरे भाई आदित्य देवीलाल चौटाला के लिए पसीना बहा रहे हैं। आदित्य ने भाजपा छोड़कर इनेलो ज्वाइन की और अभय ने उन्हें उम्मीदवार बना दिया।

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ताऊ का चुनावी तड़का

अपने सांघी वाले ताऊ ने चुनावी घोषणा-पत्र के जरिये बड़ा चुनावी तड़का लगा दिया है। कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) बहाल करने के ऐलान के बाद अब सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान कर दिया है। आधी आबादी के बड़े वोट बैंक को साधने की ताऊ की कोशिश कितनी कारगर रहेगी, यह तो चुनावी नतीजे ही तय करेंगे लेकिन यह वादा करके उन्होंने बड़ी चुनावी चाल जरूर चल दी है। हालांकि ताऊ के राज में हरियाणा पुलिस में महिलाओं की संख्या सबसे कम थी। पिछले दस वर्षों में इसे बढ़ाकर 15 प्रतिशत के करीब किया जा चुका है।

ब्यूरोक्रेसी में बेचैनी

विधानसभा के चुनाव लड़ राजनीतिक लोग रहे हैं, लेकिन बेचैनी प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में है। सिविल प्रशासन हो या फिर पुलिस प्रशासन। कर्मचारियों से लेकर टॉप पोस्ट पर बैठे आईएएस-आईपीएस अधिकारियों तक में भी इन दिनों केवल चुनावों पर ही चर्चा हो रही है। हरियाणा सिविल सचिवालय में वैसे तो सन्नाटा रहता है, लेकिन मंत्रियों व अधिकारियों के निजी स्टाफ के बीच चुनाव को लेकर ही दिनभर मंथन चलता है। किसी को लगता है कि प्रदेश में नई सरकार बन रही है। तो कोई दावे के साथ कहता है कि भाजपा इस बार जीत की हैट्रिक लगाएगी। चुनावों के दौरान सबसे अधिक टेंशन में खुफिया विभाग वाले यानी सीआईडी वाले भाई लोग रहते हैं। हर छोटी-बड़ी घटना की रिपोर्ट करनी पड़ती है। साथ ही, चुनावों को लेकर भी नियमित रिपोर्ट जा रही है। अब रिपोर्ट कल को गलत साबित हुई तो उन्हें इसका भी डर लगा रहता है।

‘पर्ची’ बनी बड़ा चुनावी मुद्दा

विधानसभा चुनावों में ‘पर्ची’ भी बड़ा मुद्दा बन गई है। भाजपा वाले भाई लोग दावा कर रहे हैं कि दस वर्षों में 1 लाख 40 हजार से अधिक सरकारी नौकरियां बिना पर्ची-खर्ची के लगाई। साथ ही, अगले पांच वर्षों में दो लाख नौकरियां देने का वादा किया जा रहा है। कांग्रेसियों ने भी घोषणा-पत्र में दो लाख नौकरियां देने का ऐलान किया है। चुनाव प्रचार के बीचों-बीच कांग्रेस वाले कई नेताओं के वीडियो भी वायरल हुए हैं, जिनमें वे कह रहे हैं कि सरकार आने के बाद पर्ची लेकर सीधे चंडीगढ़ जाएंगे और नौकरी देंगे। भाजपाई अब इस पर्ची का ही मुद्दा बनाकर कांग्रेस को घेरने में जुटे हैं। हालांकि इस पर्ची का कितना असर चुनावों पर होगा, यह नतीजे ही बताएंगे लेकिन इतना जरूर है कि इन दिनों पूरे प्रदेश में ‘पर्ची’ के चर्चे खूब हो रहे हैं।
-दादाजी

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