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चरचा हुक्के पै

06:46 AM Aug 05, 2024 IST
चरचा हुक्के पै
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हिसाब-किताब

भाजपाइयों और कांग्रेसियों में इन दिनों ‘हिसाब-किताब’ को लेकर बहस छिड़ी है। सांघी वाले ताऊ, उनके ‘युवराज’ के अलावा कांग्रेस वाले ‘प्रधानजी’ के साथ उनके अधिकांश समर्थक सरकार से दस वर्षों का हिसाब मांगते फिर रहे हैं। जगह-जगह कार्यक्रम हो रहे हैं। वहीं भाजपा वाले भाई लोग भी कांग्रेस के दस वर्षों के हिसाब का चिट्ठा साथ लेकर घूम रहे हैं। पिछले दिनों महेंद्रगढ़ की रैली में दिल्ली वाले ‘नंबर-2’ भी सांघी वाले ताऊ को इसी हिसाब-किताब को लेकर चुनौती दे चुके हैं। कांग्रेस वाले कह रहे हैं कि प्रदेश के लोग भाजपा से हिसाब मांग रहे हैं। वहीं भाजपाई पलटवार में बता रहे हैं कि हिसाब तो लोगों को कांग्रेस से चाहिए। बात भ्रष्टाचार, कुशासन और भाई-भतीजावाद की भी हो रही है। स्पष्ट है कि इस बार के चुनावों में इसी ‘हिसाब-किताब’ पर दोनों पक्षों में तीखी तकरार होने वाली है।

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दादा की दोस्ती

महेंद्रगढ़ वाले ‘बड़े कद’ के ‘दादा’ भाजपा में जितने पुराने हैं, उतने ही पुराने उनके रिश्ते भाजपाइयों व संघ नेताओं के साथ हैं। दिल्ली वालों ने भले ही ‘दादा’ की राजनीतिक ‘कद्र’ ना की हो लेकिन संघ और पार्टी में उनके साथ काम कर चुके नेता उन्हें आज भी याद करते हैं। हिमाचल से ट्रांसफर होकर जब ‘लाटसाहब’ हरियाणा में आए तो ‘दादा’ को ना केवल आमंत्रित किया बल्कि उनके साथ गले मिलकर पुराने दिनों की यादें भी ताजा की। पिछले ही दिनों राजस्थान के गुलाब चंद कटारिया को पंजाब का राज्यपाल और चंडीगढ़ का प्रशासक नियुक्त किया गया। उन्होंने जब पंजाब राजभवन में कामकाज संभाला तो पंजाब सीएम भगवंत मान के अलावा हाईकोर्ट के अनेक जस्टिस, मंत्री और नेता भी पहुंचे थे। महेंद्रगढ़ वाले ‘पंडितजी’ को विशेष तौर पर निमंत्रण भेजा था। युवा मोर्चा, भाजपा और संघ में दोनों की पुरानी एसोसिएशन रही है। पंडितजी को देखते ही कटारिया साहब ने उन्हें बांहों में भर लिया और काफी देर तक दोनों में गुफ्तगू चलती रही। इमरजेंसी में लम्बी जेल काट चुके पंडितजी ही अकेले ऐसे भाजपाई हैं जो चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी पार्टी का झंडा थामे रहे और हरियाणा में भाजपा के नाम को जीवंत रखा।

चुनावी आगाज़

भाजपाई भाई लोगों ने धर्मनगरी – कुरुक्षेत्र से चुनावी महाभारत का शंखनाद कर दिया है। ‘दाढ़ी’ वाले हरियाणा के ‘बड़े साहब’ ने किसानों को रिझाने की कोशिश भी की है। कई बड़ी घोषणाएं की हैं। वे लगातार घोषणाएं करने में जुटे हैं। इतना ही नहीं, अपने ‘गुरु’ के भी कई फैसलों को पलट चुके हैं। उनके कंधों पर जिम्मेदारी भी बड़ी है। लोकसभा के नतीजे भी उम्मीदों के हिसाब से अच्छे नहीं रहे। ऐसे में विधानसभा में तीसरी बार जीत हासिल करने के लिए उम्मीद से कहीं अधिक पसीना बहाना होगा। वैसे ‘बड़े साहब’ की मेहनत में कोई कमी भी नहीं है। बेशक, जितने दौरे उनके फील्ड में हो रहे हैं, उतने ही चक्कर राष्ट्रीय राजधानी – नई दिल्ली के भी लग रहे हैं। अब चुनावी मौसम में राष्ट्रीय दलों के नेताओं का दिल्ली आना-जाना स्वाभाविक भी है। बहरहाल, कुरुक्षेत्र के थानेसर से विधानसभा क्षेत्रवार होने वाली रैलियों का आगाज हो चुका है। पार्टी ने सभी नब्बे हलकों में रैलियां करने का लक्ष्य रखा है। ‘बड़े साहब’ अपनी ओर से तो कोई कमी नहीं छोड़ रहे। बाकी अब प्रदेश की जनता पर निर्भर करेगा कि वह उनका कितना साथ देती है।

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आश्वासन का मतलब गारंटी

चुनावी मौसम में प्रदेश के मुखिया की ओर से मिलने वाले आश्वासन को ‘गारंटी’ के रूप में देखा जाता है। अब दाढ़ी वाले ‘बड़े साहब’ भी हर किसी को आश्वासन दे रहे हैं। पहले गोहाना के लोगों को भरोसा दिया और अब असंध के बाशिंदों में भी उम्मीद जगाई है कि असंध को भी जिला बनाया जा सकता है। रानियां को उपमंडल का दर्जा देने का भी आश्वासन दे चुके हैं। मांग तो डबवाली, हांसी और मानेसर वाले भी जिला बनाने की कर रहे हैं। हालांकि हरियाणा की भौगोलिक स्थिति के हिसाब से 22 जिले भी काफी हैं, लेकिन बात जब राजनीति और चुनावों की हो तो नफा-नुकसान कम ही देखा जाता है। कई बार फैसले केवल इसलिए भी लेने पड़ते हैं, क्योंकि लोगों का दबाव होता है। अभी तक हरियाणा में होता भी यही रहा है। यहां नीड बेस्ड की बजाय डिमांड बेस्ड राजनीति अधिक हावी रही है। फिलहाल नेताजी के आश्वासन को ‘गारंटी’ माना जा रहा है। पूरी होगी या नहीं, अगले कुछ दिनों में स्पष्ट हो जाएगा।

-दादाजी

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