चरचा हुक्के पै
चौधरी का जाना
क्षेत्रीय दल के रूप में अपनी अलग पहचान रखने वाले इनेलो के लिए यह साल काफी चुनौतियों भरा रहा। लोकसभा चुनावों के बाद विधानसभा चुनावों में भी पार्टी को अच्छे नतीजे नहीं मिल पाए। पार्टी के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला परिवार के प्रभाव वाले ऐलनाबाद हलके से चुनाव हार गए। अब पार्टी सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का देहांत भी पार्टी के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। चौटाला का प्रदेश में अपना प्रभाव व वर्चस्व रहा है। कार्यकर्ताओं में उनकी पकड़ आखिरी दम तक भी कम नहीं हुई। हर कार्यकर्ता को नाम लेकर बुलाने की उनकी अदा उन्हें दूसरे नेताओं से जुदा भी करती थी। करीब 90 वर्ष की उम्र में ओमप्रकाश चौटाला का निधन हुआ है। ऐसे में अब पार्टी कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने की जिम्मेदारी पूरी तरह से अभय सिंह चौटाला के कंधों पर आ गई है।
क्या जुड़ पाएगा परिवार
इनेलो सुप्रीमो व पांच बार सीएम रहे ओमप्रकाश चौटाला के जाने के बाद परिवार के जुड़ने की चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं। हालांकि अभी यह बातचीत करने का वक्त नहीं है और न ही इस स्तर पर अभी गंभीरता से कोई बात करेगा भी। लेकिन पार्टी वर्करों के अलावा आम लोगों के जेहन में यह सवाल उठना शुरू हो गया है – क्या चौटाला साहब का जाना परिवार को जोड़ पाएगा। चौटाला के ज्येष्ठ पुत्र डॉ़ अजय सिंह चौटाला खुद की जननायक जनता पार्टी (जजपा) बना चुके हैं। वहीं अपने छोटे बेटे अभय को चौटाला पहले ही अपना उत्तराधिकारी घोषित कर चुके थे। हालांकि इनेलो व चौटाला परिवार में हुए बिखराव के बाद पंजाब के पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल भी परिवार को एक करने की कोशिश कर चुके थे। अब आने वाले दिनों में परिवार इस बारे में क्या सोचता है, यह तो उनके स्तर पर ही तय होगा। लेकिन दोनों ही ओर (इनेलो व जजपा) में ऐसे नेताओं व कार्यकर्ताओं की संख्या काफी है, जो परिवार व पार्टी को फिर से एक देखना चाहते हैं।
प्रधानगी को लेकर रस्साकसी
भाजपा में इन दिनों जिलों की प्रधानगी को लेकर रस्साकसी चल रही है। संगठनात्मक चुनावों की प्रक्रिया पार्टी शुरू कर चुकी है। कई जिलों में नये जिला प्रधान मिल सकते हैं। इसके लिए जिलावार प्रभारी भी नियुक्त किए हैं। इसी तरह से हलका स्तर पर भी प्रभारियों की ड्यूटी लगाई है ताकि वे कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें करके संभावित पदाधिकारियों के बारे में फीडबैक जुटा सकें। राज्य में नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार भाजपा के सत्ता में आने के बाद अब पार्टी कार्यकर्ताओं में संगठन में जगह पाने को लेकर भी होड़ लगी है। विपक्ष में रहते हुए पदों को लेकर इतनी खींचतान नहीं होती, जितनी कि पार्टी के सत्ता में रहते हुए होती है। ऐसे में अब भाजपा अध्यक्ष मोहनलाल बड़ौली व मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के सामने भी चुनौतियां हैं कि वे नई टीम बनाते समय कैसे जातिगत संतुलन बना पाते हैं। वर्करों की नाराजगी का भी ख्याल रखना होगा।
ताऊ की मुलाकात
पिछले दिनों लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी चंडीगढ़ पहुंचे। वे यहां किसी निजी कार्यक्रम में शामिल होने आए थे। इस दौरान अपने सांघी वाले ताऊ ने राहुल के साथ मुलाकात की। एक होटल में हुई इस मुलाकात के दौरान कई राजनीतिक व संगठनात्मक मुद्दों पर बातचीत होने की खबरें हैं। दरअसल, प्रदेश में कांग्रेस विधायक दल के नेता का अभी तक फैसला नहीं हो पाया है। केंद्र की ओर से नियुक्ति किए गए पर्यवेक्षक भी सभी विधायकों से बातचीत करके अपनी रिपोर्ट हाईकमान को सौंप चुके हैं। लेकिन पार्टी नेतृत्व सीएलपी लीडर का फैसला नहीं कर रहा है। हो सकता है कि राहुल से हुई मुलाकात के दौरान सांघी वाले ताऊ के साथ इस मुद्दे पर भी विचार-विमर्श हुआ हो। वैसे सीएलपी के फैसले में हो रही देरी की वजह से कई ‘भाई लोगों’ के दिलों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं।
‘भाई लोगों’ की टेंशन
पिछले दिनों हरियाणा पुलिस ने फील्ड में बड़ा बदलाव किया। कई शहरों के डीएसपी बदले गए हैं। कुल 82 एचपीएस (हरियाणा पुलिस सर्विस) अधिकारियों को इधर से उधर किया। बताते हैं कि कई मंत्रियों, सांसदों व विधायकों ने अपनी पसंद के अधिकारियों के नाम पोस्टिंग के लिए दिए हुए थे। सचिवालय में मंत्रियों के निजी स्टाफ में चल रही चर्चा को सही मानें तो इस तबादला सूची में किसी की सुनवाई नहीं हुई। यानी कई मंत्री, सांसद और विधायक जो उम्मीद लगाए बैठे थे, वह पूरी ही नहीं हो पाई। ऐसे में ‘भाई लोगों’ की टेंशन बढ़ी हुई है। लेकिन स्थिति यह है कि किसी को कह भी कुछ नहीं सकते।
मंत्री मांगे तबादले
हरियाणा की नायब सरकार के मंत्री तबादलों के अधिकार चाहते हैं। पूर्व में भी मनोहर लाल के समय हर साल एक महीने के लिए अधिकारियों व कर्मचारियों के तबादलों के अधिकार मंत्रियों को दिए जाते रहे हैं। पिछले दिनों मुख्यमंत्री की मौजूदगी में हुई कैबिनेट की अनौपचारिक बैठक में भी यह मामला उठा। इस बैठक में कई विधायक भी इसलिए मौजूद थे, क्योंकि सीएम ने बुधवार का दिन विधायकों से मुलाकात के लिए तय किया हुआ है। ऐसे में विधायकों ने भी मंत्रियों को तबादलों के अधिकार देने की वकालत की। उन्होंने यह भी दलील दी कि फील्ड में अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे अधिकारी व कर्मचारी तैनात हैं, जिन्होंने चुनावों के दौरान खुलकर भाजपा की मुखालफत और कांग्रेस की मदद की थी। देखते हैं, ‘भाई लोगों’ के हाथों में तबादलों की ‘पावर’ आती भी है या नहीं।
100 दिन की तैयारी
सीएमओ के अधिकारी इन दिनों नायब सरकार के 100 दिन के मौके पर होने वाली घोषणाओं का खाका बनाने में जुटे हैं। 100 दिन के उपलक्ष्य में 8 बड़ी विकास परियोजनाओं के उद्घाटन का फैसला तो लिया जा चुका है। अभी उन विकास परियोजनाओं की सूची बन रही है, जिनका शिलान्यास करवाया जाना है। इतना ही नहीं, विधानसभा चुनावों में भाजपा के ‘संकल्प-पत्र’ में किए गए वादों का भी अध्ययन किया जा रहा है। बहुत संभव है कि सरकार के 100 दिन पूरे होने के मौके पर कुछ वादों को भी पूरा करने का ऐलान किया जाए।
-दादाजी