चरचा हुक्के पै
दादा गौतम की माया
अपने नारनौंद-कम-सफीदों वाले बड़े कद वाले ‘हेवीवेट पंडितजी’ यानी ‘दादा गौतम’ की ‘माया’ भी अपंरपार है। विधानसभा में दादा जैसे ही अपनी सीट से खड़े होते हैं तो विपक्ष ही नहीं, सत्तापक्ष के लोगों में भी अंदरखाने ‘टेंशन’ हो जाती है। अपने बेबाकी भरे और ठेठ हरियाणवी बोल के लिए अलग पहचान बना चुके दादा गौतम विधानसभा के चालू शीतकालीन सत्र में भी सुर्खियां बटोर चुके हैं। राज्यपाल अभिभाषण पर चर्चा के दौरान दादा ने सांघी वाले ताऊ को ‘आईना’ दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वैसे सांघी वाले ताऊ के साथ उनकी पुरानी दोस्ती भी है। ताऊ के साथ ‘प्यार-प्रेम’ के चलते ही वे भाजपा छोड़कर कांग्रेस में भी जा चुके हैं, लेकिन वहां उनकी ‘दाल’ अधिक समय तक नहीं गली। 2019 में जजपा टिकट पर नारनौंद से चुनाव जीतने के बाद उनकी उस समय बड़े कद वाले ‘छोटे सीएम’ के साथ बिगड़ गई थी। इस बार भाजपा टिकट पर सफीदों से चुनाव लड़े और यहां से भी जीत गए। नारनौंद से चूंकि भाजपा वाले कप्तान साहब को दूसरी बार भी हार का मुंह देखना पड़ा। ऐसे में दादा ने अब दोनों हलकों की कमान संभाल ली है। वे विधानसभा में सफीदों के साथ-साथ नारनौंद की भी समस्याएं और मांग उठा रहे हैं।
एक्शन मोड में मंत्री
नायब सरकार के मंत्री इन दिनों पूरे एक्शन मोड में है। फील्ड में अधिकारियों के साथ लगातार बैठकें भी कर रहे हैं और छापेमारी भी चल रही है। अधिकारियों-कर्मचारियों को फटकारने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे। अधिकांश मंत्री यह बताने और जताने में जुटे हैं कि वे बहुत ‘पावरफुल’ हैं। उन्हें प्रदेश के ‘बड़े साहब’ के उस बयान से भी बल मिल रहा है, जिसमें उन्होंने कर्मचारियों की ‘चूड़ी टाइट’ करने की बात कही थी। अब ‘दाढ़ी वाले बड़े साहब’ किसी की चूड़ी टाइट करें या ना करें, लेकिन मंत्री लोग जरूर इस काम में जुट गए हैं। फिलहाल तो मंत्री लोग फील्ड में सरकार और अपने विजन व एक्शन के बल पर तालियां बटोर रहे हैं। हालांकि अभी सरकार का ‘हनीमून’ पीरियड चल रहा है। लेकिन असल परीक्षा इन भाई लोगों की तब होगी, जब हलके के अलावा प्रदेशभर के इनके समर्थक और जानकार काम लेकर इनके पास पहुंचेंगे। खबरें तो यही हैं कि ‘दाढ़ी वाले बड़े साहब’ भी पुराने वाले ‘काका’ की तरह की वर्किंग स्टाइल अपनाने वाले हैं। यानी भाई लोगों को खुलकर कुछ भी करने की छूट शायद ही मिल पाए।
मंत्रीजी का कांग्रेस प्रेम
राजनीति में लम्बे समय से एक्टिव और बड़ी पंचायत में भी कई बार रह चुके मंत्री महोदय का ‘कांग्रेस प्रेम’ भी उमड़-उमड़ कर बाहर आ रहा है। पहली बार मंत्री बने ‘इलाका बदल नेताजी’ अपने अधीन विभागों का बंटवारा भी कर चुके हैं। अपने खासमखास को ड्यूटी पर लगाया जा चुका है। पिछले दिनों मंत्रीजी का ‘नवाबी शहर’ यानी झज्जर में जाना हुआ। वहां किसी धार्मिक आयोजन में पहुंचे मंत्रीजी का एक कांग्रेसी के साथ घुलना-मिलना और झप्पी पाकर मिलना, काफी चर्चाओं में है। कार्यक्रम के आयोजन की गिनती पुराने कांग्रेसियों में होती है। हालांकि राजनीति में पाला बदलने की संस्कृति नई नहीं है। कुछ लोग ‘राजपूत’ यानी ‘राज’ के ‘पूत’ होते हैं। ये साहब भी उनमें से ही एक हैं। हालिया विधानसभा चुनावों में ये साहब खुलकर कांग्रेस के लिए प्रचार और भाजपा की मुखालफत कर रहे थे। लेकिन अपने मंत्री महोदय ने शहर में ना केवल इनका रुतबा बढ़ाने का काम किया बल्कि अपने स्वैच्छिक कोटे से 11 लाख रुपये देने का ऐलान भी कर दिया। अब शहर वाले बड़ी उलझन में हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि 10 साल बाद भी नेताजी का कांग्रेस प्रेम कम होने का नाम क्यों नहीं ले रहा है।
पहली बार इतनी मारामारी
नायब सरकार के मंत्रियों के यहां निजी स्टाफ में नियुक्ति को लेकर पहली बार इतनी मारामारी देखने को मिल रही है। कई भाई लोग तो पोस्टिंग नोट पर हस्ताक्षर भी करवा चुके हैं। मुख्य सचिव कार्यालय में भी नोट पहुंच चुके हैं। लेकिन आर्डर होने का नाम नहीं ले रहे हैं। कई तो ऐसे भाई लोग भी हैं, जिन्हें रिटायर हुए लम्बा वक्त हो चुका है। लेकिन अपने करीबी मंत्रियों के यहां कुर्सी संभाल चुके हैं। इनमें से कुछ ऐसे हैं, जो इस सोच के साथ लगे हैं कि आर्डर हों या ना हों। कम से कम मंत्री के साथ रहने से विभाग की गाड़ी और दफ्तर तो मिल ही रहा है। तनख्वाह ना भी मिले तो कोई बात नहीं। अब मुख्यधारा में रहने के लिए भाई लोग इतनी बड़ी कुर्बानी भी देने को तैयार हैं। बाकी समझदार समझ ही गए होंगे – इस ‘बलिदान’ के पीछे की कहानी।
भाइयों में फिर टकराव
पंजाब-हरियाणा में आपस में भाई-भाई हैं। लेकिन दोनों भाइयों के बीच पुरानी जंग भी चल रही है। एसवाईएल, चंडीगढ़ व हिंदी भाषी इलाकों के विवाद के बाद अब हरियाणा की नई विधानसभा को लेकर नया झगड़ा शुरू हो गया है। परिसीमन को ध्यान में रखते हुए हरियाणा सरकार चंडीगढ़ में नई विधानसभा का भवन बनाने की जुगत में है। चंडीगढ़ में 10 एकड़ जमीन चिह्नित की जा चुकी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय भी मंजूरी दे चुका है। बड़े भाई यानी पंजाब के नेता लोगों ने रोड़ा अटकाना शुरू कर दिया है। दोनों ओर से एक बार फिर तलवारें निकल आई हैं। अब दिल्ली में बैठे टोपी वाले बड़े साहब भी इस मुद्दे पर चुप हैं। हरियाणा में आकर वोट मांगते हैं तो कुछ और एजेंडा होता है और जब दिल्ली में पानी संकट या पंजाब के साथ एसवाईएल का विवाद आता है तो टोपी वाले भाई लोग हरियाणा का साथ छोड़ देते हैं। इस नये विवाद में इनका क्या रुख रहेगा, इस पर नजरें रहेंगी।
सीएलपी की प्रैक्टिस
कांग्रेस विधायक दल के नेता (सीएलपी) का फैसला लटका हुआ है। विधानसभा का शीतकालीन पत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के चल रहा है। इस बार सत्र में पूर्व स्पीकर और थानेसर विधायक अशोक अरोड़ा जिस तरह खुलकर बैटिंग करते नजर आ रहे हैं, उससे लगता है कि उन्होंने अभी से ‘प्रैक्टिस’ करनी शुरू कर दी है। हालांकि सांघी वाले ताऊ समर्थक अधिकांश विधायकों की इच्छा है कि नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी ताऊ को ही दी जाए। अब फैसला चूंकि नई दिल्ली से होना है। बताते हैं कि बदले हुए राजनीतिक हालात को देखते हुए ताऊ भी बदले हालात में अरोड़ा का नाम आगे बढ़ा सकते हैं। अब सीएलपी कोई भी बने, लेकिन अरोड़ा ने शुरुआती दौर में ही यह तो जता और बता दिया है कि अगर उन्हें जिम्मेदारी मिलती है तो वे सरकार को हर छोटे-बड़े मुद्दे पर घेरने में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे।
-दादाजी