बढ़ती उम्र में स्वास्थ्यवर्धक रसायनों की खोज
हर कोई जानता है कि व्यायाम करना शरीर के लिए अच्छा होता है। बार-बार यह कहा जाता है कि इससे शरीर की मांसपेशियां और जोड़ मजबूत रहते हैं तथा रोगों से लड़ने में मदद मिलती है। आखिर कसरत में ऐसा क्या है जिसकी वजह से हमारा शरीर फिट रहता है और क्या व्यायाम करने से शरीर को मिलने वाले लाभ एक गोली से भी प्राप्त किए जा सकते हैं? वैज्ञानिक उन रसायनों का पता लगा रहे हैं जो कसरत की वजह से सक्रिय होते हैं और वे इन रसायनों से चिकित्सीय लाभ प्राप्त करने की भी कोशिश कर रहे हैं। अमेरिका के स्टैनफोर्ड स्कूल ऑफ मेडिसिन,बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन और उनके सहयोगी संस्थानों के शोधकर्ताओं ने रक्त में एक ऐसे मॉलिक्यूल की पहचान की है जो कसरत के दौरान उत्पन्न होता है। यह मॉलिक्यूल चूहों में भोजन की मात्रा कम करने और मोटापा घटाने में मददगार साबित हुआ है। इस खोज से हमें कसरत और भूख से जुड़ी क्रियाओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।
बेलर मेडिसिन स्कूल के प्रोफेसर डॉ़ योंग शी ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि रोजाना कसरत करने से मोटे लोगों में वजन घटाने और उनकी खुराक को नियमित करने में मदद मिलती है। यदि हमें वह कार्यविधि समझ आ जाए जिसके जरिए कसरत ये लाभ उत्पन्न करती है तो हम कई लोगों का स्वास्थ्य सुधारने में मदद कर सकते हैं। इस अध्ययन के सह-लेखक और स्टैनफोर्ड मेडिसिन स्कूल के प्रोफेसर जोनाथन लांग ने बताया कि हम यह जानना चाहते थे कि कसरत आणविक स्तर पर किस प्रकार काम करती है ताकि उसके कुछ फायदे हमें मिल जाएं। उदाहरण के तौर पर वृद्ध या दुर्बल लोग जो समुचित कसरत नहीं कर सकते वे एक दिन ऐसी गोली खा सकेंगे जो ओस्टियोपोरोसिस,हृदय रोग और अन्य रोगों की रफ्तार को धीमा करने में मदद करेगी।
शी,लांग और उनके सहयोगियों ने चूहों द्वारा ट्रेडमिल पर दौड़ने के बाद उनके ब्लड प्लाज्मा के यौगिकों का विस्तृत विश्लेषण किया। उन्होंने विश्लेषण के दौरान एक खास यौगिक की पहचान की। यह एक संशोधित एमिनो एसिड है जिसे ‘लेक-फे’ कहा जाता है। ये यौगिक लेक्टेट और फिनायलैलेनाइन से बनता है। लेक्टेट कसरत करने से बनता है जबकि फिनायलैलेनाइन एक एमिनो एसिड है जो प्रोटीन बनाने के काम आता है। शोधकर्ताओं ने ऐसे चूहे चुने जिन्हें अधिक वसा युक्त आहार दे कर मोटा किया गया था। जब इन चूहों को लेक-फे की उच्च खुराक दी गई तो उन्होंने 12 घंटे की अवधि में चूहों के दूसरे समूह की तुलना में 50 प्रतिशत कम खाद्य ग्रहण किया। इससे उनकी चाल-ढाल या ऊर्जा व्यय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। शोधकर्ताओं ने तुलना के लिए दूसरे समूह के चूहों को लेक-फे की खुराक से वंचित रखा। मोटे चूहों को दस दिन तक लेक-फे की खुराक देने पर उनके खाद्य ग्रहण और शरीर के वजन में कमी आई। उनकी ग्लूकोज सहनशीलता में सुधार हुआ । वजन में कमी वसा घटने से हुई। शोधकर्ताओं ने सीएनडीपी2 नामक एक एंजाइम की भी पहचान की। लेक-फे के उत्पादन में इस एंजाइम की भी भूमिका होती है।
शोधकर्ताओं ने चूहों के अलावा मनुष्यों और रेस के घोड़ों में शारीरिक गतिविधि के उपरांत लेक-फे के स्तर में वृद्धि देखी। मनुष्यों में कसरत के बारे में एकत्र डेटा से पता चलता है कि तेज दौड़ने से लेक फे के स्तर में सबसे ज्यादा वृद्धि होती है। इससे पता चलता है कि लेक फे अनेक जानवरों में शारीरिक गतिविधि से जुड़ा हुआ है। शोधकर्ता शरीर पर इस यौगिक के प्रभावों पर विस्तृत अध्ययन करेंगे। उनका मुख्य लक्ष्य कसरत के इस पहलू का चिकित्सीय उपयोग करने का है।
इस वर्ष के आरंभ में ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण एंजाइम खोजा था जो यह दर्शाता है कि कसरत किस कदर हमारे स्वास्थ्य में सुधार करती है। इस खोज से ऐसी दवाएं बनाने का रास्ता खुल गया है जो इस एंजाइम की गतिविधि को आगे बढ़ाएंगी। इससे मानव स्वास्थ्य पर डायबिटीज जैसे प्रभावों से बचा जा सकेगा जिनका संबंध आयुवृद्धि से है। दुनिया में 60 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों का अनुपात अगले तीन दशकों में दोगुना हो जाएगा। टाइप 2 डायबिटीज के मामले उम्र के साथ बढ़ते हैं। अतः दुनिया की वृद्ध आबादी में इस रोग के मामले भी काफी बढ़ जाएंगे। शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध उत्पन्न होने की वजह से उम्र के साथ डायबिटीज के मामले बढ़ रहे हैं। इंसुलिन प्रतिरोध का अर्थ यह कि शरीर इंसुलिन पर रिस्पांड नहीं करता और इसका मुख्य कारण यह है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारी शारीरिक गतिविधि कम हो जाती है। कम शारीरिक गतिविधि से इंसुलिन प्रतिरोध कैसे उत्पन्न होता है, इसकी सही-सही कार्यविधि अभी एक बड़ा रहस्य है। ऑस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि शारीरिक गतिविधि किस तरह इंसुलिन के रिस्पांस को बढ़ाती है और शरीर के मेटाबोलिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है। मेटाबोलिक स्वास्थ्य से अभिप्राय ब्लड शुगर और ट्राइग्लिसराइड्स,ब्लड प्रेशर आदि को बिना दवाओं के स्वस्थ स्तर पर बनाए रखने से है। शोधकर्ताओं ने जो एंजाइम खोजे हैं, उनका संबंध शारीरिक गतिविधि से जुड़े इंसुलिन के रिस्पांस से है। महत्वपूर्ण बात यह है कि मांसपेशियों के क्षय और डायबिटीज जैसे आयुवृद्धि के प्रभावों से बचाव की दवाएं बनाने के लिए इस एंजाइम को लक्षित किया जा सकता है।
मोनाश विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टोनी टिगानिस और उनके सहयोगी शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि आयुवृद्धि में मांसपेशियों में आरओएस (रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पेसीज ) के उत्पादन में कमी से इंसुलिन प्रतिरोध उत्पन्न होता है। ऑक्सीजन के अत्यंत क्रियाशील रसायनों को आरओएस कहते हैं। टिगानिस के अनुसार मांसपेशियां लगातार आरओएस उत्पन्न करती हैं और कसरत करने से इसमें वृद्धि होती है। कसरत से उत्पन्न आरओएस स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि एनओएक्स-4 नामक एंजाइम कसरत से उत्पन्न आरओएस के लिए महत्वपूर्ण है। चूहों पर प्रयोग के दौरान रिसर्चरों ने देखा कि कसरत के बाद एनओएक्स-4 एंजाइम में वृद्धि हुई जिसने बदले में आरओएस में वृद्धि की। बढ़े हुए आरओएस द्वारा उत्पन्न रिस्पांस ने चूहों को इंसुलिन प्रतिरोध से बचाया।
इस प्रयोग के जरिए वैज्ञानिकों ने यह दर्शाया है कि मांसपेशियों में एनओएक्स4 के स्तर का सीधा संबंध इंसुलिन की संवेदनशीलता में उम्र से जुड़ी गिरावट से है। प्रो. टिगानिस ने कहा कि जानवरों पर प्रयोग करके हमने यह बताने की कोशिश की है कि उम्र बढ़ने के साथ मांसपेशियों में एनओएक्स 4 की बहुतायत घटने लगती है और इससे इंसुलिन की संवेदनशीलता कम हो जाती है। उन्होंने कहा कि इस एंजाइम की कार्यविधि के आधार पर दवाएं विकसित करके वृद्ध होने की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण कारणों को दूर किया जा सकता है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।