श्रीलंका की दिशा-दशा तय करेंगे दिसानायके
अरुण नैथानी
श्रीलंका के हालिया राष्ट्रपति चुनाव में अनुरा दिसानायके की जीत ने राजनीतिक पंडितों को चौंकाया है। वजह यह है कि पिछले राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें महज तीन फीसदी मत ही मिले थे। वहीं संसद में उनके गठबंधन के महज तीन सांसद थे। यही वजह है कि राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद बने माहौल में संसद के लिये नया जनादेश पाने के लिये उन्होंने संसद को भंग कर दिया है। इस मामले में भारतीय कूटनीति को दाद देनी होगी कि श्रीलंका में राजनीतिक रुझान को महसूस करके गत फरवरी में अनुरा दिसानायके का सफल भारत दौरा आयोजित किया गया। अब ये आने वाला वक्त बताएगा कि वामपंथी रुझान वाले दिसानायके दिल्ली की दक्षिणपंथी रुझान वाली सरकार से कैसा तालमेल बनाएंगे।
बहरहाल, श्रीलंका में राजनीतिक भ्रष्टाचार, आर्थिक बदहाली व परंपरागत सत्ताधीशों के प्रति अविश्वास से मुक्त कराने के वादे ने दिसानायके को ताकत दी है। दो साल पहले धराशायी अर्थव्यवस्था में प्राण फूंकने के उनके आश्वासन पर श्रीलंका की जनता ने विश्वास किया है। दूसरे राउंड में मिले अधिक मतों से वे पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को तीसरे स्थान में धकेलने में कामयाब हो गए। निस्संदेह, दिसानायके की यह जीत चौंकाने वाली है, जिसके मूल में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखरता और गरीबों को राहत देने के उनके एजेंडे को सार्थक प्रतिसाद मिला है। वे जनता में भरोसा जगाने में कामयाब हुए कि अब भी देश को मंदी व आर्थिक बदहाली के भंवर से निकाला जा सकता है।
कभी भारत के मुखर विरोधी रहे राजनीतिक दल जनता विमुक्ति पेरामुना यानी जेवीपी से जुड़े रहे दिसानायके अब सरकार के खिलाफ चले हिंसक खूनी आंदोलन को गलत मानते हैं। केंद्रीय श्रीलंका के गालेवेला में 24 नवंबर, 1968 में जन्मे दिसानायके ने उस दौर में छात्र राजनीति में सक्रियता बढ़ाई जब रक्तपात से गुजरते श्रीलंका में वर्ष 1987 के दौरान भारत-श्रीलंका समझौता हुआ था। मध्य वर्गीय परिवार में जन्मे दिसानायके की शिक्षा सरकारी स्कूल में हुई। उन्होंने भौतिक विज्ञान में डिग्री हासिल की थी। तब युवाओं में पनपे देशव्यापी आक्रोश के बीच जेवीपी हिंसक अभियानों के लिये जाना जाता था। इस संघर्ष में हजारों लोग मारे गये थे। कालांतर में वर्ष 1997 में वे जेवीपी की केंद्रीय कमेटी के लिये चुने गए थे। वैसे हाल में उन्होंने उस दौर में रक्तपात के लिये माफी भी मांगी है। उन्होंने स्वीकारा कि यह हिंसक संघर्ष नहीं होना चाहिए था। वहीं उन्होंने वर्ष 2019 के सिलसिलेवार धमाकों की जांच कराने का भी वादा किया है, जिसमें तीन सौ के करीब लोग मारे गए थे। लोग गोटाबाया राजपक्षे पर जांच को बाधित करने के आरोप लगाते हैं।
दरअसल, इस चुनाव में दिसानायके ने राजनेताओं के भ्रष्टाचार, आर्थिक नीतियों की विफलता, कानून अव्यवस्था के लिये तत्कालीन सत्ताधीशों को दोषी बताते हुए नई पारदर्शी शासन व्यवस्था देने का वादा किया। उन्होंने आर्थिक संकट से जनता को हुए कष्टों के लिये नेताओं को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने भरोसा दिलाया कि वे देश को बदहाली से मुक्त करा सकते हैं। दरअसल, कुशासन, कोरोना संकट व राजनीतिक भ्रष्टाचार से जहां देश पर अरबों डालर कर्ज चढ़ा, वहीं मुद्रास्फीति कुलांचें भरने लगी। विदेशी मुद्रा भंडार निचले स्तर पर जा पहुंचा। हालांकि, विक्रमसिंघे के प्रयासों से आईएमएफ से मिले कर्ज व भारतीय मदद से हालात में सुधार हुआ, लेकिन स्थितियां पहले जैसी नहीं हो सकीं। यह वजह है कि श्रीलंका के जनमानस ने बदलाव के लिये दिसानायके को राष्ट्रपति चुना।
दिसानायके देश के जनमानस को यह भरोसा दिलाने में सफल रहे कि वे देश को राजनीतिक भ्रष्टाचार व कुशासन से मुक्ति दिला सकते हैं। उनका कहना है कि वे जनता पर लगे टैक्स कम करेंगे और नये सिरे से कल्याणकारी योजनाएं शुरू करेंगे। भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाएंगे। यही वजह है कि मतदाताओं ने आर्थिक चिंताओं के बीच दिसानायके में नई उम्मीद देखी। दरअसल, आम मतदाता कष्टदायी महंगाई से मुक्त होकर सामान्य जीवन जीने का आकांक्षी है। वैसे आईएमएफ से मिले राहत पैकेज और उसके लिये लागू सख्त आर्थिक अनुशासन से मुक्त होना दिसानायके के लिये आसान भी नहीं होगा। इसमें संतुलन बनाकर ही उन्हें जनता का विश्वास हासिल करना होगा। उन्हें सरकार के खर्चों में कटौती संग राजस्व के नये स्रोत तलाशने होंगे।
अब कयास यह लगाये जा रहे हैं कि दिसानायके के वामपंथी रुझान के बीच श्रीलंका के संबंध चीन से अधिक मजबूत होंगे या भारत से। हालांकि, गत फरवरी में भारत का दौरा करने वाले दिसानायके भारत के साथ अच्छे संबंधों की बात कर रहे हैं। कभी भारत विरोधी रहे जेवीपी के भारत के प्रति रुझान में हाल के वर्षों में बदलाव आया है। आशा की जानी चाहिए कि दिसानायके भारत को लेकर संतुलित नीति अपनाएंगे। उन्हें याद रखना होगा कि आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका से जब चीन ने आंख फेर ली थी तो भारत सबसे बड़े मददगार के रूप में सामने आया था। वैसे हाल के वर्षों में दिसानायके श्रीलंका को किसी गुट से मुक्त रखकर सुशासन पर बल देते रहे हैं। दिसानायके को सोचना होगा कि अभी श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आयी है और उस पर आईएमएफ का बड़ा कर्जा बना हुआ है। ऐसे में भारत ही विश्वसनीय साथी की भूमिका निभा सकता है। अनुमान है कि वे भारत व चीन के साथ संबंधों में संतुलन कायम करके ही विदेशी नीति का निर्धारण करेंगे। भारत से करीबी भौगोलिक व समुद्री सीमा सामरिक दृष्टि से भी श्रीलंका के हित में रहेगी।