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तरक्की की नई ऊर्जा डिजिटल अर्थव्यवस्था

06:44 AM Mar 30, 2024 IST
तरक्की की नई ऊर्जा डिजिटल अर्थव्यवस्था
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जयंतीलाल भंडारी

भारतीय अर्थव्यवस्था की नई शक्ति बनी है, भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था। हाल ही में इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटर-नेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (इक्रियर) और वैश्विक उपभोक्ता इंटरनेट समूह प्रोसेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था की वैश्विक रैंकिंग में अब भारत अमेरिका और चीन के बाद दुनिया के तीसरे नंबर का सबसे बड़ा देश बन गया है। ऐसे में अब भारत के आम आदमी की डिजिटल सहभागिता बढ़ाने के लिए गांवों व पिछड़े क्षेत्रों तक डिजिटल साक्षरता, स्टूडेंट्स के लिए स्कूलों-कॉलेजों में अच्छा डिजिटल कौशल, प्रशिक्षण, सस्ते स्मार्टफोन, इंटरनेट की निर्बाध कनेक्टिविटी और बिजली की सरल आपूर्ति जैसी जरूरी व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने से भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकेगा। इसी प्रकार डिजिटल भुगतान में भारत विश्व रैंकिंग में शीर्ष पर है। बीते वर्ष 2023 में देश में कुल डिजिटल भुगतान यूनिफाइड पेमेंटस इंटरफेस (यूपीआई) की हिस्सेदारी बढ़कर 80 फीसदी के करीब पहुंच गई है। यूपीआई लेनदेन की संख्या महज छह साल में 273 गुना बढ़ी है। वर्ष 2017 में 43 करोड़ यूपीआई लेनदेन हुए थे वर्ष 2023 में इनकी संख्या बढ़कर 11761 करोड़ हो गई।
गौरतलब है कि इक्रियर द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था पर हुई यह स्टडी कनेक्ट, हार्नेस, इनोवेट, प्रोटेक्ट और सस्टेन जैसे पांच महत्वपूर्ण पैरामीटर्स पर आधारित है। इन पैरामीटर्स पर भारत ने 39.1 स्कोर किया है, जबकि पहले क्रम पर स्थित अमेरिका ने 65.1 और दूसरे क्रम पर स्थित चीन ने 62.3 स्कोर किया है। एक उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत ने डिजिटल युग में छलांग लगा दी है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट नेटवर्क वाला देश है।
भारत में डिजिटल प्रौद्योगिकी को न केवल युवा अपना रहे हैं बल्कि शिक्षित बुजुर्ग भी इसमें पीछे नहीं हैं। जी20 की अध्यक्षता के दौरान, भारत को सार्वजनिक सेवाओं की बड़े पैमाने पर डिलीवरी के लिए डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का उपयोग करने के चैंपियन के रूप में मान्यता दी गई थी। इन्फोसिस के सह-संस्थापक और चेयरमैन नंदन नीलेकणी का भी कहना है कि भारत ने अपने अनोखे डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और नई डिजिटल पूंजी के सहारे पिछले 10 साल में वह कर दिखाया, जिसमें पारंपरिक तरीके से पांच दशक लग जाते।
भारत वित्तीय प्रौद्यौगिकी (फिनटेक) और डिजिटल भुगतान के क्षेत्रों में वैश्विक मंच पर चमक रहा है। 50 करोड़ से अधिक कमजोर वर्ग के लोगों को जनधन खातों के माध्यम से बैंकिंग प्रणाली से जोड़ा गया है। डिजिटलीकरण ने भारत की अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने में और आधार ने लीकेज को कम करते हुए लाभार्थियों को भुगतान के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर-डीबीटी में मदद की। आईएमएफ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट विश्व आर्थिक परिदृश्य में कहा गया है कि वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बावजूद डिजिटलीकरण भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है। भारत में वर्ष 2014 से लागू की गई डीबीटी योजना एक वरदान की तरह दिखाई दे रही है। सरकारी योजनाओं के तहत बिचौलियों के भ्रष्टाचार को रोकने, काम के भौतिक रूपों व सरकारी कार्यालयों में लम्बी कतारों से राहत और घरों में आराम से मोबाइल स्क्रीन पर कुछ क्लिक करके विभिन्न सेवाओं, सुविधाओं और मनोरंजन की सहज उपलब्ध सुविधाएं हैं। डिजिटल पेमेंट के मामले में भारत ने अमेरिका, यूके और जर्मनी जैसे बड़े देशों को पीछे कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि आरबीआई द्वारा वर्ष 2022 से प्रायोगिक स्तर पर खुदरा क्षेत्र में ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) एक सीमित उपयोगकर्ता समूह (सीयूजी) के बीच जारी की गई थी। प्रायोगिक तौर पर जारी यह डिजिटल मुद्रा फिलहाल लोगों के बीच आपसी लेनदेन तथा लोगों और व्यापारियों के बीच के लेनदेन की सुविधा देती है जिसमें डिजिटल रुपये वाले वॉलेट का इस्तेमाल किया जाता है। अब रिजर्व बैंक ने प्रस्ताव रखा है कि इस मुद्रा की प्रोग्रामेबिलिटी को ऑफलाइन आजमाया जाए जिससे न केवल डिजिटल मुद्रा को अपनाने के मामले बढ़ेंगे बल्कि सार्वजनिक नीति संबंधी लक्ष्य हासिल करने में भी मदद मिलेगी।
यह बात भी महत्वपूर्ण है कि डिजिटल के विस्तार के साथ ही, धोखाधड़ी की आशंकाएं भी बढ़ी हैं। धोखाधड़ी में साइबर लुटेरे ही नहीं, बल्कि कई बड़ी संस्थाएं भी लगी हुई हैं। वित्तीय वर्ष 2023 में बैंकिंग प्रणाली में कुल 13,530 धोखाधड़ी के मामले दर्ज किए गए हैं। इन मामलों में से लगभग 49 प्रतिशत डिजिटल भुगतान-कार्ड या फिर इंटरनेट श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। अत: डिजिटल आधारित बैंकिंग की दुनिया में सौ फीसदी विश्वसनीयता बनाए रखने हेतु रणनीतिक प्रयत्न जरूरी है।

लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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