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नये आपराधिक कानूनों के क्रियान्वयन में दिक्कतें

06:31 AM Jun 27, 2024 IST
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के.पी. सिंह

तीन नये आपराधिक कानून, अर्थात‍् भारतीय न्याय संहिता 2023 (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 (बीएसए) 1 जुलाई, 2024 से लागू होने जा रहे हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चन्द्रचूड़ ने आपराधिक प्रक्रिया को डिजिटल बनाने के उद्देश्य से बनाए गए नए कानूनों की सराहना की है और उन्हें भारतीय न्याय प्रणाली के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है, जबकि कानूनी बिरादरी के एक वर्ग ने इन कानूनों के कुछ प्रावधानों की अनिश्चितता, अस्पष्टता और संवैधानिकता के बारे में गम्भीर चिंता जताई है।
ममता बनर्जी सहित विपक्षी राजनीतिक दल मांग कर रहे हैं कि नये अधिनियमों को तब तक स्थगित रखा जाना चाहिए जब तक कि लोकसभा के नवनिर्वाचित सदस्य उनकी संस्तुति नहीं कर देते। उनका तर्क है कि ये कानून संसद में बिना किसी सार्थक बहस के जल्दबाजी में पारित कर दिए गए थे, क्योंकि अधिकांश विपक्षी सदस्य निलम्बित थे। नए आपराधिक कानूनों की वैधता के बारे में इतनी देरी से चिन्ता व्यक्त करना अवसरों को गंवाने के अलावा और कुछ नहीं है, ये कानून तीन साल की लम्बी परामर्श प्रक्रिया और हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद बनाए गए थे। इसके बाद गृह मंत्रालय की संसदीय समिति द्वारा इन कानूनों की गहन जांच की गई थी। यहां तक कि दो अलग-अलग अवसरों पर सार्वजनिक नोटिस के जरिए जनता से सुझाव भी मांगे गए थे। सरकार इनमें से किसी भी मांग के आगे नहीं झुक रही है और कानूनों को लागू करने के लिए दृढ़ संकल्पित दिख रही है।
इसके अतिरिक्त, नए प्रावधानों की असंवैधानिकता के बारे में चिंताएं इस तथ्य के मद्देनजर सही नहीं हैं कि बीएनएस में बदलाव मुख्य रूप से नवतेज जौहर (2018), जोसेफ शाइन (2018) और पी. रथिनम (1994) के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का प्रतिबिम्ब है। भारतीय न्याय संहिता से राजद्रोह की धारा हटाना राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका के जवाब में शीर्ष अदालत में केन्द्र सरकार के हलफनामे पर क्रियान्वयन दर्शाता है, साथ ही इसमें लम्बे समय से लम्बित राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को भी सम्बोधित किया गया है। बीएनएसएस और बीएसए में संशोधनों पर आपत्तियां भी उचित प्रतीत नहीं होती क्योंकि इनके मूल रूप से आपराधिक कार्रवाई का डिजिटलीकरण और पीड़ित तथा नागरिकों की अपेक्षाओं के अनुरूप प्रावधानों को शामिल करना है। इसके अलावा गुणवत्तापूर्ण जांच और त्वरित न्याय की मांग को पूरा करने के लिए आपराधिक प्रक्रियाओं को फिर से स्थापित किया गया है।
विशेषज्ञों की अलग-अलग राय के बावजूद, नये कानूनों का क्रियान्वयन आसान नहीं होगा क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के बुनियादी ढांचे का निर्माण, हितधारकों को प्रशिक्षण प्रदान करना, नियम और संचालन प्रक्रियाएं निर्धारित करना, मानक प्रपत्रों में संशोधन करना और परिचालन संबंधी मुद्दों को सुलझाने के लिए अन्तर-एजेंसी समन्वय करना शामिल है। साथ ही एक बात जो विश्वास दिलाती है कि ये कानून समय पर लागू होंगे यह है कि एक अनुभवी और समय-परीक्षणित आपराधिक न्याय प्रणाली अस्तित्व में है जिसमें किसी भी बदलाव को अपनाने और सीमित संसाधनों के साथ किसी भी समस्या का व्यावहारिक समाधान खोजने की कुव्वत है। नये कानून तय समय पर लागू होंगे, इसका एक और आश्वासन इस हकीकत से भी मिलता है कि पुलिस, अभियोजकों और न्यायिक अधिकारियों को बड़े पैमाने पर क्षमता-निर्माण प्रशिक्षण दिया गया है, जिसे केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित किया गया है।
हालांकि, कानून लागू करने की व्यवस्था से जुड़े कुछ अधिकारी अभी भी आशंकित हैं, उनका तर्क है कि नए कानूनों के सफल प्रवर्तन से सम्बन्धित कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों को अभी भी सम्बोधित किया जाना बाकी है, ताकि अधिनियमों का निर्बाध प्रवर्तन सुनिश्िचत किया जा सके।
बीएनएसएस में कई अनिवार्य प्रक्रियाएं हैं, जिसमें तलाशियों, जब्तियों और अपराध के दृश्य की वीडियोग्राफी और केस प्रॉपर्टी आदि की फोटोग्राफी शामिल है, जिनके लिए शुरुआत से ही इलेक्ट्रॉनिक्स और डिजिटल तकनीकी का प्रयोग करना आवश्यक होगा। हालात यह है कि सभी जांचकर्ताओं और निर्णायकों को अभी भी उपयुक्त उपकरण और तकनीकी प्रदान करके उनका उपयोग करना सिखाना अभी तक सम्भव नहीं हो पाया है, ताकि आवश्यक डिजिटल आउटपुट समान रूप से और स्वीकार्य रूप में उत्पन्न, सुरक्षित और संग्ाृहीत किए जा सकें। इसके अतिरिक्त, ई-कोर्ट कार्यवाही का संचालन और इलेक्ट्रॉनिक संचार आदि के माध्यम से समन और वारंट भेजने सहित कई अन्य प्रक्रियाएं हैं, जिनके लिए अदालतों, पुलिस स्टेशनों और जेलों का बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण, नियमों का मानकीकरण, तकनीकी और सहायक कर्मचारियों की भर्ती और प्रशिक्षण, वित्तीय संसाधन और अंतर-एजेंसी समन्वय अति आवश्यक होंगे। जमीनी हकीकत यह है कि अभी तक अधिकांश राज्यों में इस दिशा में कुछ भी ठोस नहीं किया गया है।
बीएनएस में दी गई दंड की सूची में ‘सामुदायिक सेवा’ को भी शामिल कर लिया गया है, वस्तुस्थिति यह है कि एजेंसियों को अभी तक इस सज़ा को लागू करने के अधिकार क्षेत्र के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है, न ही इस सज़ा को भुगताने के लिए आवश्यक संस्थानों की पहचान करके नियम बनाए गए है।
नए कानूनों से सम्बन्धित प्रावधानों को लागू करने के लिए आवश्यक नियमों के अभाव में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अनेक मुख्य प्रावधानों जैसे- गवाहों की सुरक्षा, आरोपित की अनुपस्थिति में मुकदमे की कार्यवाही, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सम्मन और वारंट भेजना, अपराध करके अर्जित की गई सम्पत्ति को जब्त करके पीड़ितों में बांटना, माल मुकदमे का समय पर निपटान, अनुसंधान प्रक्रिया की वीडियोग्राफी इत्यादि को लागू करना लगभग असम्भव होगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि इन नियमों को बनाने के लिए राज्यों को आवश्यक दिशा-निर्देश पहले ही जारी कर दिए गए हैं।
उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि न्याय व्यवस्था के सभी अंग अपने-अपने क्षेत्र में पुनः उन क्षेत्रों की पहचान करें जिनमें क्रियान्वयन से सम्बन्धित नियम और प्रोटोकोल बनाना नितान्त आवश्यक है। व्यापक पैमाने पर तकनीकी, कानूनी व अन्य सहायक कर्मचारियों और अधिकारियों की नियुक्ति तथा प्रशिक्षण एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा है। जिसे अब और लम्बित नहीं रखा जा सकता।
अपराध एवं अपराधियों पर निगरानी रखने के लिए नेटवर्क (सीसीटीएनएस) तथा न्याय व्यवस्था से जुड़ी हुई संस्थाओं के बीच समन्वयक सॉफ्टवेयर का उन्नयन और आधुनिकीकरण अभी तक पूरा नहीं हो सका है। यह जानना जरूरी हो जाता है कि यह कार्य राज्य स्वयं में पूरा करने के लिए सक्षम नहीं है। इसके लिए राज्यों को केन्द्र सरकार की एजेंसियों से आवश्यक तकनीकी सॉफ्टवेयर तथा मार्गदर्शन की दरकार होगी।
नि:संदेह, नये कानूनों को लागू करने के पथ में राज्य सरकारों का आगे बढ़ना बिना केन्द्र सरकार के सहयोग और सहारे के चलना सम्भव नहीं होगा। कदम-कदम पर राज्यों को केन्द्र सरकार की मदद की जरूरत होगी। नए आपराधिक कानूनों को लागू करने के साथ केन्द्र सरकार की निष्ठा और तत्परता भी जुड़ी हुई है, अतः केन्द्रीय एजेंसियों को चाहिए कि राज्य सरकारों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर काम करें ताकि इन कानूनों को समयबद्ध और सुचारु रूप से लागू किया जा सके।

लेखक हरियाणा के पुलिस महानिदेशक रहे हैं।

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