हर पीढ़ी के लिए अलग-अलग
वीना गौतम
प्यार और रोमांस का पर्याय माने जाने वाले वैलेंटाइन डे का मतलब अलग-अलग पीढ़ियों के लिए अलग-अलग है। किसी के लिए यह फूलों, गिफ्ट्स, कार्ड और कैंडी से स्नेह दिखाने का दिन है, तो किसी के लिए यह दिन दोस्तों, परिवार के सदस्यों और यहां तक कि खुद के प्रति प्यार का जश्न मनाने का दिन है। सवाल है क्या अलग-अलग पीढ़ियों में प्यार, रोमांस और दोस्ती के भी अलग -अलग मायने हैं? अमेरिका में किशोरों और ताजा ताजा नौजवानों की श्रेणी में आये युवाओं पर नियमित नजर रखने वाले और उनकी धारणाओं और रुचियों को दस्तावेज करने वाले प्राधिकरण ‘वाईपल्स’ के मुताबिक जेन जेड और मिलेनियल्स पीढ़ियों के पास वैलेंटाइन डे के लिए ही नहीं बल्कि प्यार और रोमांस के लिए भी उस पीढ़ी से अलग मायने हैं, जो पीढ़ी 1990 से पहले जवान हुई थी। वास्तव में जिसे हम मिलेनियल्स या सेंटिनल्स कहते हैं, अमेरिका के ही एक और रिसर्च संगठन ‘प्यू रिसर्च’ के मुताबिक उसकी पैदाइश को 1997 से कट किया जाता है और परवरिश के बाद बढ़ने पर 2012 में कट किया जाता है। मतलब यह कि 2012 के बाद की पीढ़ी जनरेशन जेड या जेन जेड है।
जनरेशन जेड की सोच
जहां पुरानी पीढ़ी यानी 1997 से पहले पैदा हुए लोगों की पीढ़ी प्यार और रोमांस को दोस्ती से कहीं ज्यादा आंकती है, वहीं जनरेशन जेड के लिए प्यार और रोमांस से ज्यादा भरोसेमंद दोस्ती है। यह पीढ़ी रोमांस का बोझ नहीं ढोती, न ही छूटने या छोड़े जाने का रोना रोती है। यह पीढ़ी ज्यादा व्यावहारिक, कम भूमिका बनाने वाली और कहीं ज्यादा औपचारिक पीढ़ी है। इसलिए यह वैलेंटाइन डे को किसी ऐसे दिन के रूप में नहीं देखती कि अगर इस दिन प्यार नहीं जताया तो जिंदगी में प्यार का अहसास नहीं बचेगा। देखा जाए तो यह भी अप्रत्यक्ष रूप से पुरानी पीढ़ी की बात ही दोहरा रही होती है कि प्यार के लिए कोई एक दिन तय नहीं किया जा सकता या महज एक दिन प्यार जताकर प्रेमी नहीं बना जा सकता। लेकिन नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी की तरह रोमांस और प्यार जताने को दोस्ती से बेहतर नहीं मानती। हालांकि प्यार और दोस्ती एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न भावनाएं नहीं हैं, सच तो यह है कि प्यार और दोस्ती दोनों ही आपस में इस कदर गुंथी हुई भावनाएं हैं कि दोनो में दोनों की भरपूर मौजूदगी रहती है। वास्तव में दोस्ती में भी रोमांस होता है। कई बार दोस्ती भावुक, स्नेहिल और रोमांटिक भी होती है।
वैलेंटाइन डे के साथ रिश्ता
इस तरह देखें तो पूरी दुनिया में अलग-अलग पीढ़ियों के बीच पिछले कई दशकों से वैलेंटाइन डे के साथ लव एंड हेट का रिश्ता बना हुआ है। जहां कुछ लोग इसे बाजार की साजिश और उपभोक्तावाद का षड्यंत्र बताते हैं, तो कुछ लोग कहते हैं कि इस भागदौड़ की जिदंगी में अनायास सुकून के पल हासिल नहीं होते, उन्हें किसी न किसी बहाने पाना होता है। ऐसे में वैलेंटाइन डे एक जरूरी दिन हो जाता है। कुछ इसे ऐतिहासिक संवेदना से जोड़ते हैं, जिसके चलते एक ईसाई संत प्यार के लिए शहीद हो गया और उसकी शहादत प्यार की संस्कृति में तब्दील हो गई। वैलेंटाइन डे को लेकर पूरी दुनिया में ही नहीं बल्कि अलग-अलग पीढ़ियों में अलग अलग तरह की भावनाएं हैं। लेकिन यह भी सही है कि हर कोई चाहे वह इसका विरोध करे या समर्थन, मगर वैलेंटाइन डे को एक बार ठहरकर या पलटकर प्यार के बारे में सोचता जरूर है। इसी दिन वह इस द्वंद्व से भी गुजरता है कि क्या वह सिर्फ काम, काम और दिन रात काम और अलर्ट रहने के लिए ही पैदा हुआ है। इस दिन वह अपने लिए और इस खूबसूरत दुनिया के लिए भी प्यार के बारे में भी सोचता है।
वैश्विक पर्व के नये तौर-तरीके
इसलिए तमाम विरोधाभासों के बावजूद लगातार हर गुजरते साल के साथ वैलेंटाइन डे पहले से कहीं ज्यादा वैश्विक पर्व बनता जा रहा है। भले इसके पीछे ईसाई संतों की अलग अलग दौर में कुर्बानियों का इतिहास हो, लेकिन आज की तारीख में ये पूरी दुनिया के सभी पीढ़ियों के लिए, प्रेम की भावनाओं के लिए एक जरूरी पड़ाव बन गया है। हां, इसमें कोई दो राय नहीं है कि डिजिटल युग में वैलेंटाइन डे का मतलब यह दिन नहीं रहा जो मतलब पिछली सदी के नौवें दशक तक हुआ करता था। आज की तारीख में वैलेंटाइन डे मनाने के तौर तरीके बिल्कुल बदल गये हैं। रोजमर्रा की जिंदगी की तमाम दूसरी गतिविधियों की तरह यह भी एक स्मार्ट गतिविधि बन गई है। लोग अपने प्रिय से गले मिलने की जगह उसे ज्यादा से ज्यादा प्यारे संदेश और ऑनलाइन गिफ्ट भिजवाने में फोकस करते हैं। लोग जिनसे प्यार करते हैं, इस दिन उनके साथ ऑनलाइन चैट करते हुए भर-भरकर इमोजियां पाते और भेजते हैं। नये से नये अंदाज की सेल्फी खींचते-खिंचाते हैं और सोशल मीडिया में अपने प्यार का सार्वजनिक तथा बेहद आक्रामक अंदाज में ऐलान करते हैं। इस दिन को सोशल मीडिया ने ई-कार्ड, लव कूपन और ई-ग्रीटिंग का पर्याय बना दिया है। यह बुरा नहीं है लेकिन यह भी सच है कि जब जिंदगी के भौतिक रिश्ते इतने ज्यादा डिजिटल हो जाते हैं तो उनका अहसास भी डिजिटल बनकर रह जाता है। इसलिए पीढ़ी कोई भी हो, बेहतर यही हो कि प्यार एक शाश्वत भावना बनी रहे, इसमें अलग अलग दौर के मुताबिक नये नये हहसासों का मुल्लमा चढ़ाने की कोशिश न हो। क्योंकि प्यार एक ऐसा दैहिक और भावनात्मक अहसास है, जिसके जैसा कोई दूसरा अहसास नहीं हो सकता।