हंस-बगुले का फर्क
12:36 PM Jun 20, 2023 IST
एक बार एक संत विरोधी आदमी ने कबीर के पास जाकर कह दिया कि अरे तुम जाति के जुलाहे हो तो मन लगाकर कपड़ा बनाओ और राजा से अशर्फी लो। पर तुम तो बस दो समय की रोटी और बाकी समय लोगों का जमघट लगाकर बातचीत के सिवा कुछ नहीं करते। यह सुना तो कबीर कुछ पल मौन रहे अब कबीर तो फक्कड़ थे। वह आदमी जवाब का आग्रह करने लगा तो कबीर ने कहा कि सोने-चांदी का संग्रह करने से अच्छा तो अच्छे विचारों का संग्रह करने में समय बिताकर मेरा अंतर्मन संतुष्ट होता है। ओ भले मानुष! जानते तो हो न, एक ही सरोवर से हंस मोती चुनता है और बगुला मछली, सोच-सोच का फर्क होता है, और आखिर यह आपकी सोच ही है जो आपको सचमुच अलग बनाती है। प्रस्तुति : मुग्धा पांडे
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