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संपूर्ण विग्रह के रूप में देवी दर्शन

08:00 AM Apr 29, 2024 IST
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केवल तिवारी
श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में जब स्नान कर निकलते हैं तो फिर चारों ओर का विहंगम दृश्य से ऊर्जावान होते हैं। नजर आते हैं पैदल पथ पर भक्ति में लीन पंक्तिबद्ध श्रद्धालु। यह भक्तिमय दृश्य आपको तब नजर आएगा जब आप मां विंध्याचल देवी के दर्शन के लिए जाएंगे। इस स्थान को प्रमुख शक्ति पीठ का दर्जा मिला है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में स्थित विंध्याचल देवी मंदिर की महिमा अपार है। आसपास अन्य मंदिर जैसे अष्टभुजा देवी का मंदिर, कालीखोह मंदिर और सीताकुंड भी हैं। मान्यता यह भी है कि विंध्याचल देवी जिसे मां विंध्यवासिनी भी कहा जाता है, एक ऐसी शक्तिपीठ है जिसका अस्तित्व सृष्टि आरंभ होने से पूर्व हुआ। विंध्य क्षेत्र को तपोभूमि भी कहा जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बसे इस मंदिर प्रांगण में श्रद्धालु सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। इन देवी को त्रिकोण यंत्र पर विराजित माना जाता है। मान्यता है कि विंध्याचल निवासिनी यह देवी लोक कल्याण के लिए महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रूप धारण करती हैं।
विंध्याचल देवी का यह मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल वाराणसी से करीब 90 किलोमीटर दूर है। मान्यता है कि देवी ने इस पर्वत पर रहकर मधु एवं कैटभ नामक राक्षसों का वध करने का लक्ष्य साधा। अक्सर पूजा-अर्चना विशेषतौर पर नवरात्र के दिनों में जिस दुर्गा सप्तशती का श्रद्धालु पाठ करते हैं, उसमें भी इस धार्मिक जगह का उल्लेख मिलता है। देवी को लेकर विभिन्न कथाओं में एक कथा यह भी है कि जब भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था उसी वक्त यशोदा ने भी एक कन्या को जन्म दिया था जो देवी के रूप में थी। जब कंस ने उनको पत्थर से मारने की कोशिश की तो वह चमत्कारिक रूप से दुर्गा के रूप में बदल गई। इस तरह देवी ने विंध्याचल को अपना निवास स्थान बना लिया।
विंध्याचल देवी के इसी मंदिर में मां काली की मूर्ति स्थापित है, जिनकी पूजा मां काजला के रूप में की जाती है। मिर्जापुर मूल शहर से करीब दस किलोमीटर दूर इस मंदिर पर इन दिनों जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। श्रद्धालुओं को भव्यता का अनुभव कराने के लिए जगह-जगह विशेष पत्थर से निर्मित खंभे लगाए जा रहे हैं। लाल पत्थर वाली छत के नीचे भक्त जयकारा लगाते हुए चलते हैं। हमारे विभिन्न देवी महात्म्य स्थलों में से विंध्यवासिनी ही एक ऐसा मंदिर है जहां देवी पूर्ण रूप में विराजमान हैं। यहां उल्लेखनीय है कि दक्ष प्रजापति के हवन कुंड में कूद गयीं देवी सती के देह को लेकर जब भगवान शिव ने ब्रह्मांड का चक्कर लगाना शुरू किया और भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया। उसके बाद विभिन्न अंगों के गिरने से अलग-अलग देवी शक्तिपीठ स्थापित हुए जिसमें नैना देवी, सुनंदा, महामाया, त्रिपुरमालिनी, जयदुर्गा, दाक्षायणी, गंडकी, बहुला, भ्रामरी, कामाख्या, ललिता, जयंती, युगाद्या अथवा भूतधात्री, कालिका आदि हैं। इस मंदिर में देवी पूर्णरूप में अर्थात‍् यहां पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं।
नवरात्र के दिनों में मां के विशेष शृंगार के लिए मंदिर के कपाट दिन में चार बार बंद किए जाते हैं। सामान्य दिनों में मंदिर के कपाट रात 12 बजे से सुबह 4 बजे तक बंद रहते हैं। दिन में भी कुछ देर के लिए कपाट बंद किए जाते हैं। जैसा कि सर्वमान्य है कि ईश्वर भाव का भूखा है, इसलिए मंदिर प्रांगण में जाना ही पुण्य का काम है। प्रतिदिन इस मंदिर में हजारों श्रद्धालु माथा टेकते हैं और देवी मां का पूजन जय मां विंध्यवासिनी के उद्घोष के साथ करते हैं। इन दिनों जीर्णोद्धार कार्य त्वरित गति में हैं, इसमें परिक्रमा स्थल से लेकर संपूर्ण परिसर का नवीनीकरण शामिल है। साभार : मिर्जापुर डॉट एनआईसी डॉट इन

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