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मर कर भी किसी के काम आने की तमन्ना !

07:23 AM Nov 28, 2023 IST
मर कर भी किसी के काम आने की तमन्ना
कैथल में मेडिकल कॉलेज को देहदान करने वाला दधिची परिवार। -हप्र
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ललित शर्मा/हप्र
कैथल, 27 नवंबर
अंगदान को लेकर भले ही कुछ लोगों के मन में किंतु-परंतु हो, लेकिन यहां तो राज्य में पूरे के पूरे परिवार ही ऐसे हैं, जिन्होंने अपने अंगदान को लेकर पहले ही स्वीकृति दे दी है। कुछ लोगों की आंखों से दूसरे इस संसार को देख पा रहे हैं। अनेक लोगों को समझ आ गया है कि ‘माटी के पुतले को माटी में ही मिल जाना है। इसलिए क्यों ने इसे किसी के काम के लिए छोड़ दिया जाए।’
वर्ष 2002 में तर्कशील सोसाइटी के पूर्व प्रधान कृष्णा बरगाडी की कैंसर से मौत हो गई। परिवार की इच्छा के अनुसार उनके शरीर को लुधियाना में मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया गया। इसी से प्रेरित होकर कैथल के शर्मा परिवार ने देहदान का संकल्प लिया। परिवार के लोगों को देहदान के इस संकल्प को अमलीजामा पहनाने के लिए 8 वर्ष का समय लगा। वर्ष 2010 में आधिकारिक रूप से आवेदन पत्र भर चंडीगढ़ स्थित जीएमसीएच-32 को देहदान का निर्णय लिया। कैथल के इस दधिची परिवार के प्रत्येक सदस्य ने देहदान करने का संकल्प लिया। इसमें कृष्ण लाल, कृष्ण लाल की मां रामप्यारी, पत्नी निर्मला देवी, भाई कुलदीप शर्मा, कुलदीप की पत्नी कौशल्या देवी, छोटा भाई रामदत्त और पत्नी मुकेश रानी शामिल हैं। कृष्ण लाल की मां रामप्यारी बताती हैं कि उनकी पुत्रवधू की कैंसर से मौत हो गयी। बेटे कृष्ण लाल ने शरीर दान करने के लिए अपनी मां से बात की। इसका असर यह हुआ कि मां ने भी अपना शरीर मेडिकल साइंस को दान करने का निश्चय कर लिया। परिवार के अन्य सदस्यों ने भी कहा है कि वे भी शरीर को दान करेंगे।
इनके अलावा, हर बिलास सिंह निवासी बुडंगपुर अंबाला के परिवार के करीब 15 लोगों ने शरीर दान के शपथ-पत्र भरे। सेवा संघ के आह्वान पर अन्य 22 लोगों ने मरणोपरांत देहदान के शपथ पत्र भरे हैं।
सिरसा के गांव जलालआना में मा. अजय सिंह ने अपने पिता की अंतिम इच्छा के अनुसार, मरणोपरांत उनके शरीर को मेडिकल कॉलेज को दान किया। तर्कशील सोसायटी भारत के प्रधान मा. राजाराम हंडिया ने पत्नी सत्या रानी की मृत्यु के बाद उनके शरीर को मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया। कैथल की सुमित्रा देवी, कृष्णावंती, सीवन की डोली देवी ने भी मरणोपरांत देहदान किया। राजाराम बताते हैं कि तर्कशील सोसाइटी द्वारा शुरू किए गए इस अभियान को अब धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं ने भी अपनाया है।

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सोच बदलने से सकारात्मक परिणाम

डा. सितेन्द्र

कैथल सिग्नस सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल के डायरेक्टर एवं यूनिट हेड डा. सितेन्द्र गर्ग ने बताया कि एक व्यक्ति की ओर से किए गए अंगदान से 50 जरूरतमंद लोगों की मदद हो सकती है। अब लोगों की सोच बदली है तो इसके सकारात्मक परिणाम भी आने लगे हैं।

नेत्रदान से रोशन हुई 700 जिंदगियां

दिन निकले, रात हो, अंधेरा हो-उजाला हो, सूरज उगे या डूबे, सुबह हो या सायं, मेरे लिए तो काला रंग लंबा अंधेरा था। आंखें मिलने के बाद पता चला कि यह दुनिया सतरंगी है। सलोनी इस जहां को अब इसी नजरिए से देख रही हैं। शहर की संस्था सेवा संघ के जरिये 400 लोग अपनी आंखें दान कर चुके हैं, जिससे करीब 700 लोगों की जिंदगी रोशन हुई है। संस्था ने नेत्रदान को आगे बढ़ाने के लिए हंसराज मेमोरियल नेत्रदान केंद्र बना दिया है। महज 10 साल में सेवा संघ के इस मिशन से करीब 2000 लोग स्वेच्छा से जुड़ चुके हैं। इस टीम में संयोजक अशोक भारती, सचिन धमीजा, सदस्य नरेश भारती, मदन खुराना, देवेन्द्र नागपाल, सुभाष कथूरिया, जगन्न गुगलाली, पवन आहुजा शामिल हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. दीपक इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैसे ही टीम के पास फोन कॉल आती है, मृत्यु के 6 से 8 घंटे में नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है।

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