निराशाजनक ककहरा
पंजाब के सरकारी स्कूलों में छात्रों के पंजाबी, अंग्रेजी और गणित विषयों में सीखने की प्रवृत्ति का आकलन करने के लिये किए गए आधारभूत सर्वेक्षण के परिणाम बेहद निराशाजनक रहे हैं। कक्षा तीन से पांचवीं तक के छात्रों की सीखने की स्थिति ने खराब शिक्षण मानकों को ही उजागर किया है। दरअसल, इन छात्रों को संख्याओं के सामान्य जोड़-घटाव, अक्षरों और कहानियों को पढ़ने-लिखने को कहा गया था। लेकिन इसका परिणाम छात्रों की शैक्षणिक संभावनाओं के लिये सकारात्मक संकेत नहीं कहा जा सकता। वहीं यह स्थिति राज्य की स्कूली शिक्षा प्रणाली की निराशाजनक तस्वीर भी उकेरती है। जो कहीं न कहीं छात्रों के पढ़ाई के बीच स्कूल छोड़ने और कालांतर बेरोजगारी बढ़ाने का कारक भी बनता है। इस सर्वे में जो स्थिति सामने आई है वह परेशान करने वाली है। आज हमें इस बात पर मंथन करने की जरूरत है कि अंग्रेजी और गणित की पढ़ाई के स्तर में इतनी गिरावट क्यों है। सही मायनों में ये विषय ही कालांतर बच्चों के कैरियर की दशा-दिशा निर्धारित करते हैं। सर्वे के आंकड़ों से उपजी स्थिति कितनी गंभीर है वह इस बात से पता चलती है कि 75 फीसदी बच्चे अंग्रेजी की कहानी नहीं पढ़ पाए। यह स्थिति न केवल छात्रों की शोचनीय स्थिति को दर्शाती है बल्कि उन शिक्षकों के पठन-पाठन पर भी सवाल उठाती है, जो बच्चों को इन विषयों की शिक्षा दे रहे हैं। निश्चित रूप से अधिकांश बच्चों को गणित का विषय ज्यादा रोचक नहीं लगता, लेकिन यदि चालीस प्रतिशत बच्चे सामान्य जोड़-घटाव भी न कर सकें तो यह गंभीर चिंता का विषय है। निश्चित रूप से यह स्थिति सामान्य नहीं है। दूसरे अर्थों में कह सकते हैं कि ये बच्चे कमजोर बुनियाद के साथ आगे बढ़ रहे हैं। सवाल यह है कि व्यावहारिक जीवन के लिये बेहद महत्वपूर्ण इन विषयों के प्रति बच्चों में इतनी गहरी उदासीनता क्यों है। इस बारे मे शिक्षा विभाग और राज्य सरकार को गंभीर मंथन करना चाहिए।
निश्चित रूप से शोचनीय स्थिति के चलते इस दिशा में तुरंत जरूरी कदम उठाने और शिक्षकों को जवाबदेह बनाने की जरूरत है। इस तरह इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट पंजाब की आप सरकार के मिशन समर्थ के लक्ष्य हासिल करने की राह को कठिन बनाती है। दरअसल, आप सरकार ने यह कार्यक्रम पंजाब में स्कूली शिक्षा की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से एक दिसंबर 2023 को प्रारंभ किया था। दिल्ली में केजरीवाल सरकार को स्कूली शिक्षा में सुधार के प्रयासों को मिली आशातीत सफलता से प्रेरित होकर पंजाब में इस कार्यक्रम को आरंभ किया गया था। वास्तव में दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने वर्ष 2015 में ‘शिक्षा पहले’ को अपना नारा बनाया था। दरअसल, शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिली कामयाबी के बाद ही केजरीवाल सरकार ने एक बार फिर 2020 में भी दिल्ली की सत्ता बरकरार रखी थी। आप के केंद्रीय नेतृत्व का सोचना था कि दिल्ली में शिक्षा अभियान के दौरान सामने आई खामियों व सफलताओं से सबक लेकर पंजाब में शैक्षिक सुधार अभियान को गति दी जाए। लेकिन हालिया सर्वेक्षण के परिणामों ने बता दिया कि यह स्थिति निम्न मध्यमवर्ग के सरकारी स्कूलों के प्रति होते मोहभंग को रोकने में नाकामयाब रहेगी। इसी स्थिति के चलते ही अभिभावक आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के बावजूद अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेज रहे हैं। सही मायनों में सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की शैक्षिक स्थिति विभागीय छवि को भी प्रभावित कर रही है। इस संकट से उबरने के लिये जरूरी है कि समर्पित शिक्षकों की बड़ी टीम इस अभियान से जुड़े। इसके अलावा राज्य में स्कूल भवनों, प्रयोगशालाओं और पुस्तकालयों का स्तर सुधारने के लिये जरूरी आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराए जाएं। जरूरत इस बात की भी है कि शिक्षकों के खाली पड़े पदों को अविलंब भरा जाए। शिक्षकों व शिक्षा विभाग के कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण समय की चुनौती के अनुरूप दिया जाए। प्रतिबद्ध और प्रेरक शिक्षक ही विद्यार्थियों को सीखने की प्रवृत्ति के लिये प्रोत्साहित कर सकते हैं। तभी राज्य में शिक्षा व्यवस्था की नींव मजबूत हो सकेगी।