नियुक्ति को नकारा
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक संजय मिश्रा का कार्यकाल तीसरी बार बढ़ाये जाने को अवैध बताते हुए सरकार से उन्हें 31 जुलाई तक हटाने को कहा है। हालांकि, तीसरी बार बढ़ाया गया उनका कार्यकाल अभी 18 नवंबर तक था। कोर्ट ने सरकार से इस पद पर बीस दिन में नयी नियुक्ति करने को कहा है। कोर्ट का मानना है कि मिश्रा का तीसरा कार्यकाल बढ़ाया जाना अवैध है। दरअसल, कोर्ट पहले भी सरकार को कह चुकी थी कि संजय मिश्रा का कार्यकाल तीसरी बार न बढ़ाया जाये। सरकार की दलील थी कि वे अभी मनी लॉन्ड्रिंग समेत कई महत्वपूर्ण मामलों की निगरानी कर रहे हैं। जिसकी वजह से नई नियुक्ति के लिये सरकार कुछ समय चाहती है। उल्लेखनीय है कि जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने यह फैसला कॉमन कॉज नामक स्वयंसेवी संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। इससे पहले अदालत ने मामले की सुनवाई पूरी करते हुए गत आठ मई को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। दरअसल, वर्ष 2021 में जब कोर्ट ने निदेशक संजय मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने से मना किया था तो इसके खिलाफ केंद्र सरकार 2021 में सेंट्रल विजिलेंस कमीशन एक्ट में बदलाव के लिये एक अध्यादेश लायी थी। इस संशोधन में प्रावधान रखा गया कि देश की महत्वपूर्ण जांच एजेंसियों के निदेशक को पांच साल तक सेवा विस्तार दिया जा सकता है। तदुपरांत केंद्र ने तीसरी बार संजय मिश्रा का कार्यकाल 18 नवंबर 2023 तक बढ़ा दिया। हालांकि, कोर्ट ने कार्यकाल बढ़ाने वाले कानून में बदलाव को वैध माना, लेकिन नियुक्ति को अवैध ठहराया। कोर्ट का मानना था कि किसी भी जांच एजेंसी के निदेशक का कार्यकाल बढ़ाया जाना तार्किक होना चाहिए। इस फैसले के खिलाफ कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस ने भी याचिका दायर की थी।
उल्लेखनीय है कि लंबे समय से विपक्षी नेता आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र सरकार विपक्षी नेताओं को डराने-धमकाने और राजनीतिक लाभ के लिये ईडी और सीबीआई का दुरुपयोग करती रही है। पिछले कुछ वर्षों में जांच एजेंसियों में सबसे ज्यादा चर्चा प्रवर्तन निदेशालय की ही रही है। तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं व कारोबारियों के लेनदेन में कथित अनियमितताओं की जांच ईडी कर कर रही थी। कई लोगों की गिरफ्तारियां भी हुईं। यही वजह है कि संजय मिश्रा के मामले में याचिका दायर करने वालों की दलील थी कि ईडी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है और देश हित में उसे स्वतंत्र होना चाहिए। कोर्ट ने भी सवाल किया था कि क्या वजह है कि उसके आदेश के बावजूद मिश्रा का कार्यकाल लगातार बढ़ाया जा रहा है। वहीं सरकार की दलील थी कि मिश्रा कई संवेदनशील व महत्वपूर्ण मामलों की जांच कर रहे हैं, जिसे तार्किक परिणति तक पहुंचाया जाना बाकी है। केंद्र के पक्षकार का तर्क था ईडी डायरेक्टर संयुक्त राष्ट्र में भी देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी कई अहम मामलों की जांच देख रहे हैं। वे फाइनेंशियल टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ की समीक्षा में शामिल हैं जिसको लेकर अभी काफी काम किया जाना बाकी है। अत: उनका देश हित में पद पर बने रहना जरूरी है। साथ ही यह भी कि योग्य अफसर तलाशने में अभी वक्त लगेगा। उल्लेखनीय है कि इंडियन रेवेन्यू सर्विस में 1984 बैच के अधिकारी संजय मिश्रा 34 साल तक विभाग को सेवा दे चुके हैं। साथ ही विदेशों में धन छुपाने वाले भारतीयों के मामलों में निगरानी करने वाले केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड में सेवाएं दे चुके हैं। नेशनल हेराल्ड केस, यस बैंक, आईसीआईसीआई सीईओ चंदा कोचर प्रकरण की जांच की उन्होंने निगरानी की है। वहीं जानकारों का मानना है कि संजय मिश्रा का कार्यकाल बार-बार बढ़ाए जाने से क्षुब्ध विभाग के उन अधिकारियों ने भी उनके खिलाफ मोर्चाबंदी आरंभ कर दी जो देश की महत्वपूर्ण एजेंसी के निदेशक बनने के दावेदार थे। बहरहाल, इस मामले में केंद्र सरकार की किरकिरी तो हुई है जिसे विपक्ष बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश करेगा।