मनमानी शक्ितयों से गुरेज करें िनचली अदालतें : सुप्रीम कोर्ट
नयी दिल्ली, 18 मार्च (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने जांच पूरी होने के बावजूद निचली अदालतों द्वारा ‘कम गंभीर मामलों’ में जमानत याचिकाएं खारिज किये जाने पर निराशा जतायी है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइंया की पीठ ने मंगलवार को कहा कि एक लोकतांत्रिक देश को पुलिस राज्य की तरह काम नहीं करना चाहिए, जहां कानून प्रवर्तन एजेंसियां बिना किसी वास्तविक कारण के लोगों को हिरासत में लेने के लिए मनमानी शक्तियों का इस्तेमाल करती हैं।
पीठ ने कहा कि दो दशक पहले छोटे मामलों में जमानत याचिकाएं उच्च न्यायालयों तक शायद ही कभी पहुंचती थीं, शीर्ष अदालत तक तो बात ही छोड़िए। जस्टिस ओका ने एक जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘चौंकाने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट उन मामलों में जमानत याचिकाओं पर फैसला सुना रहा है जिनका निपटारा निचली अदालत के स्तर पर होना चाहिए। अनावश्यक रूप से बोझ डाला जा रहा है।’ यह पहली बार नहीं है जब शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर टिप्पणी की है। इसने बार-बार निचली अदालतों और हाईकोर्ट्स से जमानत देने में अधिक उदार रुख अपनाने का आग्रह किया है। सुनवाई के दौरान पीठ ने एक आरोपी को जमानत दे दी जो धोखाधड़ी के एक मामले में दो साल से अधिक समय से हिरासत में था। जांच पूरी हो जाने और आरोपपत्र दायर हो जाने के बावजूद, आरोपी की जमानत याचिका निचली अदालत और गुजरात हाईकोर्ट दोनों ने खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में जांच एजेंसियों पर उन संज्ञेय अपराधों में गिरफ्तारी करने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिनमें हिरासत की आवश्यकता न होने पर अधिकतम सात साल तक की सजा हो सकती है। इसने निचली अदालतों से यह सुनिश्चित करके व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने का भी आग्रह किया था कि जमानत निष्पक्ष और समय पर दी जाए।