मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

तपिश में उत्साह से समृद्ध हुआ लोकतंत्र

07:06 AM Jun 02, 2024 IST

आखिरकार सबसे लंबी अवधि वाले चवालीस दिनी आम चुनाव का समापन शनिवार को 57 सीटों पर मतदान के साथ हो गया। झुलसाती गर्मी व तूफान के बावजूद सात चरणों वाले लंबे चुनाव अभियान में मतदाताओं का उत्साह दुनिया को भारतीय लोकतंत्र की ताकत दिखाता है। बड़ी-बड़ी रैलियों, रोड शो और जनसंपर्क कार्यक्रमों में मतदाताओं की उपस्थिति भारतीय लोकतंत्र के उज्ज्वल भविष्य को ही दर्शाती है। बेहतर होता कि बेहद जटिल मौसमी परिस्थितियों में यह चुनाव कार्यक्रम इतना लंबा न होता। छिटपुट हिंसा घटनाओं को छोड़कर कमोबेश यह चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न हुआ। लेकिन हमें स्वीकार करना होगा कि तमाम सांस्कृतिक, भौगोलिक व राजनीतिक रुझान में विविधताओं वाले इस देश में आज भी चुनाव प्रक्रिया विश्वसनीय मानी जाती है, जिसका श्रेय निश्चित रूप से वर्षों से सक्रिय चुनाव आयोग के अधिकारियों व कर्मचारियों को दिया जाना चाहिए। शांतिपूर्ण मतदान से मतदाताओं का चुनाव प्रक्रिया में विश्वास बढ़ता है। भारत को यूं ही दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र नहीं कहा जाता। हमारी 18वीं लोकसभा के लिये संपन्न चुनाव में विश्व का सबसे बड़ा मतदाता वर्ग सक्रिय रहा। देशभर में कुल 96 करोड़ से अधिक मतदाता पंजीकृत रहे। इतने बड़े मतदाता वर्ग के लिये सुगम मतदान की व्यवस्था करना निश्चित ही चुनौतीपूर्ण कार्य था। लेकिन एक बात तय है कि 19 अप्रैल को शुरू हुए पहले चरण के मतदान से शनिवार को संपन्न सातवें व अंतिम चरण के मतदान कार्यक्रम को यदि कुछ सप्ताह कम किया जाता तो मई के अंत की भीषण गर्मी से मतदाताओं को दो-चार न होना पड़ता। कई राज्यों से चुनाव ड्यूटी पर लगे कर्मचारियों के लू से मरने की विचलित करने वाली खबरें भी आईं। वहीं लंबी चुनावी प्रक्रिया के दौरान आचार-संहिता लंबे समय तक लागू रहने से विकास कार्य भी प्रभावित होते हैं। बहरहाल, चुनाव कार्यक्रम निर्धारण को केंद्र में सत्तारूढ़ दल की प्राथमिकता भी प्रभावित करती है तो वहीं कानून-व्यवस्था व कुछ व्यावहारिक दिक्कतें भी चुनाव कार्यक्रम को लंबा बनाती हैं।
बहरहाल, एक बात तय है कि चुनाव चरणों का लम्बा समय व मौसम की प्रतिकूलताएं मतदाताओं को उदासीन बनाती हैं। कुछ चुनावी पंडित मतदान प्रतिशत में पिछले बार के मुकाबले गिरावट आने की यही वजह बताते हैं। वहीं विश्वसनीयता खोते राजनेता तथा नकारात्मक चुनाव प्रचार भी मतदाताओं की चुनावों में दिलचस्पी को कम कर देता है। लेकिन इसके बावजूद हालिया तूफान से प्रभावित पश्चिम बंगाल से लेकर हिमाचल के दुर्गम इलाकों लाहौल-स्पीति तक में मतदाताओं ने उत्साह से चुनाव प्रक्रिया में भाग लिया। इस बार के चुनाव में एक सकारात्मक पक्ष यह भी दिखा कि वयोवृद्ध व अशक्त लोगों को घर से मतदान करने का अवसर मिला। चुनाव ड्यूटी में लगे करोड़ों कर्मचारियों का डाक से अपना मतदान करने का उत्साह भी लोकतंत्र की खूबसूरती को ही दर्शाता है। अभी भी मतदान प्रक्रिया को और अधिक मतदाताओं के अनुकूल बनाने की जरूरत है। साथ ही राजनेताओं का दायित्व भी बनता है कि उनकी रीतियों-नीतियों का असर हकीकत में भी नजर आए। अन्यथा मतदाताओं का मोहभंग होते देर न लगेगी। शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता का हस्तांतरण भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है। इस खूबसूरती पर किसी तरह की आंच नहीं आने देनी चाहिए। पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आम मतदाता का विश्वास निरंतर मजबूत होते रहना चाहिए। इसके लिये समय-समय पर चुनाव प्रक्रिया को लेकर उठने वाले सवालों व शंकाओं का समाधान भी जरूरी है। आचार-संहिता के उल्लंघन जैसे मामलों में कार्रवाई को लेकर चुनाव आयोग तमाम आक्षेपों से मुक्त रहना चाहिए। ऐसा संदेश नहीं जाना चाहिए कि आयोग सत्तारूढ़ दल के प्रति उदार रुख दिखा रहा है। चुनाव आयोग का निष्पक्ष रहने के साथ निष्पक्ष दिखना भी जरूरी है। बहरहाल, चार जून को जनादेश का परिणाम देश के सामने होगा। जो भी दल केंद्र में सरकार बनाये, उसे ध्यान रखना होगा कि युवाओं का यह देश बेरोजगारी व महंगाई का दंश झेल रहा है। देश में आर्थिक असमानता का दायरा सिमटना चाहिए। यदि देश की विकास दर लगातार बढ़ रही है तो उससे समृद्धि समाज के अंतिम व्यक्ति के घर में भी नजर आनी चाहिए।

Advertisement

Advertisement