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सियासी टकराव के बीच खतरे में लोकतंत्र

12:36 PM Jun 14, 2023 IST

केएस तोमर

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मौजूदा हालात में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके भाई पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ अब पूर्व पीएम इमरान खान से निपटने का मन बना चुके हैं। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इमरान खान द्वारा की गई भारतीय मीडिया की प्रशंसा के बारे में लोगों को बताया जा रहा है। शरीफ बंधु गत 9 मई की घटनाओं को 9/11 के बराबर सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि इमरान खान का राजनीतिक जीवन समाप्त हो जाए और उनकी जान भी खतरे में पड़ जाए। दरअसल, पाकिस्तान के जाने-माने पत्रकार हामिद मीर ने भारत कार्ड की समीक्षा की है। उन्होंने याद दिलाया कि पूर्व में पाकिस्तान निर्माता मुहम्मद अली जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना को अयूब खान ने भारत का एजेंट क़रार दिया था और फिर शेख मुजीब उर रहमान को जनरल याहया खान ने भारतीय एजेंट बताया था। इसी तर्ज़ पर जनरल जिया उल हक और नवाज शरीफ ने बेनजीर भुट्टो को भी भारत का एजेंट बताया था। अब नये घटनाक्रम में किये जा रहे दुष्प्रचार के कारण पाकिस्तान तहरीके इन्साफ पार्टी के कार्यकर्ता हतोत्साहित हो रहे हैं और कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। इस बात को सिद्ध करने के लिए पाकिस्तानी हुक्मरानों ने भारतीय सेना के मेजर जनरल (रिटा.) गौरव आर्य के ट्वीट का हवाला दिया जिनमें कहा गया था कि इमरान खान भारत को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। इसी प्रकार पाकिस्तान के टीवी चैनल पर भारत के एक पत्रकार सुशांत सरीन के गत दिनों के एक वीडियो क्लिप को दिखाया गया जिसमें सरीन का कथानक था कि इमरान खान उनका स्वप्न हैं क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान को तबाह कर दिया है। अब पाकिस्तान सरकार पूर्व प्रधानमंत्री को भारत का नया एजेंट बता रही है।

दरअसल सेना की साख दांव पर है जिसे बचाने के लिए वह कोई भी कदम उठाने को तैयार है। पाकिस्तान में संविधान की धारा 245 की आड़ में पंजाब, खैबर पख्तूनख्वा और राजधानी इस्लामाबाद में उपद्रवियों पर नियंत्रण के लिए सेना को बुलाया गया था। स्मरण रहे कि 1947 के बाद तीन बार 1958 से 1971, 1977 से 1988 और 1999 से 2008 के मध्य सेना ने तख्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा किया था। पाकिस्तान में हालात बिगड़ने पर आंतरिक अस्थिरता और विदेश नीति को बहाना बना कर सेना पाकिस्तान पर राज करती रही और स्वयं को लोगों के समक्ष देश बचाने वाला घोषित करती रही है। ऐसे माहौल में लोगों का सरकार पर विश्वास डांवांडोल है और इमरान खान द्वारा सत्ता को दी गई चुनौती से अस्थिरता है जिसका लाभ उठाने को सेना राजनीतिक हस्तक्षेप कर रही है। इमरान खान के सेना से टकराव का मुख्य कारण सेना के वरिष्ठ पदों पर नियुक्तियां और तबादले सेनाध्यक्ष के ही कहने पर ही किए जाना था। पूर्व प्रधानमंत्री के ही कारण मौजूदा सेनाध्यक्ष मुनीर को आईएसआई प्रमुख के पद से हटाया गया था और इस कारण इमरान खान और तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा के मध्य दूरियां बन गई थीं। अब सेना से टकराव इमरान खान के राजनीतिक ताबूत की अंतिम कील बन सकती है क्योंकि उनके समर्थकों ने सीधे-सीधे सेना पर हमला बोला था और सेना इसे किसी भी हालत में स्वीकार करने और माफ़ करने को तैयार नहीं है। तभी सेना प्रमुख ने फैसला लिया था कि उपद्रवियों पर सेना के कानूनों के अनुसार मुक़दमें चलाये जाएंगे जिसका अर्थ है न तो न्यायालय और न ही उच्चतम न्यायालय इसमें दखल दे सकेगा।

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प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार के उच्चतम न्यायालय व इमरान खान समर्थक राष्ट्रपति आरिफ अल्वी से उपजे विवादों के कारण भी पाकिस्तान के हालात अस्थिरता की ओर अग्रसर रहे हैं और लोकतंत्र खतरे में है। बीते दिनों शरीफ सरकार ने खुले तौर पर मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंडल की निंदा करते हुए संसद में एक प्रस्ताव पारित कर उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की शक्तियां समाप्त कर दी थीं और न्यायालय के आदेशों को मानने से इनकार करते हुए बंडल को इमरान खान समर्थक घोषित कर दिया था। इसी घटनाक्रम में राष्ट्रपति अल्वी ने संसद द्वारा पारित प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया और इमरान खान से सहानुभूति व्यक्त की थी।

बता दें कि पाकिस्तान में भी आर्थिक हालात लगभग श्रीलंका जैसे बन सकते हैं। आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि राजनीतिक अस्थिरता के चलते पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है और निकट भविष्य में सारा ढांचा ध्वस्त हो सकता है। विश्व बैंक भी 1.1 अरब डॉलर का ऋण जारी करने से कतराता रहा और देश पर कई सख्त शर्तें लागू करने का दबाव बना रहा है। पाकिस्तान का फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व घट कर मात्र 4.3 अरब डॉलर रह गया जो 2014 के बाद न्यूनतम है। उधर शरीफ सरकार पंजाब में चुनाव न करवाने के लिए उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामे में कह ही चुकी है कि सरकार के पास चुनाव करवाने के लिए पैसा नहीं है।

विशेषज्ञों का मानना है कि बिगड़ते हालात सेना को एक बार फिर मुख्य भूमिका में ला सकते हैं जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंत और सेना के एक बार फिर सत्ता पर काबिज होने का कारण बनेगा। इन हालात के लिए केवल पाकिस्तान के राजनेताओं की स्वार्थी राजनीति और सोच ही जिम्मेवार मानी जा सकती है।

लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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