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घाटी में महका लोकतंत्र

06:33 AM Oct 17, 2024 IST

आखिरकार तमाम ऊहापोह, सुरक्षा चुनौतियों तथा विदेशी दखल की तमाम आशंकाओं को निर्मूल करते हुए जम्मू-कश्मीर के जनमानस ने स्पष्ट सरकार बनाने का जनादेश दिया है। जनता ने विकास और शांति की आकांक्षा के साथ दिल खोलकर मतदान किया और अपनी उम्मीदों की सरकार चुनी है। घाटी में दशकों तक अब्दुल्ला परिवार के शासन के अनुभव के मद्देनजर घाटी के लोगों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस पर भरोसा जताया। बुधवार को उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनकी सार्थक पहल यह रही कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर की राजनीति के दो ध्रुव बने कश्मीर घाटी व जम्मू क्षेत्र के जनमानस को साथ लेकर चलने का संकल्प दोहराया है। इस कड़ी में उमर अब्दुल्ला ने सुरिंदर चौधरी को राज्य का उप मुख्यमंत्री नियुक्त किया है। उमर ने कहा भी कि ‘चौधरी को मैंने इसलिए उप मुख्यमंत्री बनाया, ताकि जम्मू के लोगों को महसूस हो सके कि उनकी भी राज्य की सत्ता में घाटी जितनी भागीदारी है। आगे भी ऐसे ही प्रयास होते रहेंगे।’ निस्संदेह, यह सकारात्मक राजनीति का उज्ज्वल पक्ष है, सबको साथ लेकर आगे बढ़ने का। उल्लेखनीय है कि सुरिंदर चौधरी जम्मू से चुनकर आए हैं। नौशेरा से विधायक बने सुरिंदर चौधरी ने विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रांत अध्यक्ष रवींद्र रैना को हराया था। बहरहाल, भले ही अब अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा का स्वरूप पहले जैसा नहीं रह गया, लेकिन इसके बावजूद जम्मू-कश्मीर के लोगों ने स्पष्ट जनादेश देकर एक स्थिर सरकार की बुनियाद जरूर रखी है। केंद्र शासित प्रदेश में एक दशक बाद हुए विधानसभा चुनाव में मतदाताओं का खासा उत्साह नजर आया। कहीं न कहीं जनता ने स्पष्ट संदेश भी दिया कि वे आतंकवाद व अलगाववाद से छुटकारा चाहते हैं। जाहिरा तौर पर नई सरकार के सामने व्यापक जनाकांक्षाओं को पूर्ण करने की चुनौती होगी। यह दायित्व सरकार को इस बात को ध्यान में रखकर निभाना होगा कि केंद्रशासित प्रदेश में उपराज्यपाल के पास व्यापक अधिकार हैं।
बहरहाल, ऐसे में नवनिर्वाचित सरकार और केंद्र का दायित्व है कि घाटी के लोगों ने जिस मजबूत लोकतंत्र की आकांक्षा जतायी है, उसे पूरा करने में भरपूर सहयोग करें। एक समय राज्य में मतदाता डर के मारे मतदान करने हेतु नहीं निकलते थे। मतदान का प्रतिशत बेहद कम रहता था। इस बार मतदाता निर्भीकता के साथ मतदान करने निकले। जनता ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के संकल्प को सकारात्मक प्रतिसाद दिया है। यद्यपि लोकसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस को कामयाबी नहीं मिल पायी थी, लेकिन जनता ने उन्हें राज्य में सरकार चलाने का स्पष्ट जनादेश दिया है। वहीं दूसरी ओर, इस भारी मतदान व स्पष्ट बहुमत का एक निष्कर्ष यह भी है कि लोग घाटी में शांति और सुकून चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार और केंद्र सरकार को मिलकर प्रयास करना होगा कि इस क्षेत्र में शांति कायम होने के साथ विकास की नई बयार चले। जिसमें आम नागरिक खुद को सुरक्षित अनुभव करते हुए राष्ट्रीय विकास की धारा के साथ-साथ कदमताल कर सके। बहरहाल, जम्मू-कश्मीर में नई सरकार को व्यापक जनाकांक्षाओं को पूर्ण करते हुए बदली हुई शासन व्यवस्था के साथ भी साम्य स्थापित करना है। इस बात का अहसास उमर अब्दुल्ला को भी है कि शासन चलाने में अब पहले जैसी स्वतंत्रता नहीं होगी क्योंकि राज्यपाल के पास व्यापक शक्तियां हैं। विश्वास किया जाना चाहिए कि कम से कम सीमावर्ती घाटी की संवेदनशीलता को देखते हुए इस केंद्रशासित प्रदेश में वैसा टकराव देखने को नहीं मिलेगा, जैसा कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार और एलजी के बीच देखने को मिलता रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि नये मुख्यमंत्री को कानून व्यवस्था से लेकर अन्य प्रशासनिक मामलों में एलजी के आगे लाचार नहीं होना पड़ेगा। विश्वास करें कि नई सरकार को प्रशासनिक मामलों में नौकरशाही का पर्याप्त सहयोग मिलता रहेगा। नीति-नियंताओं को ध्यान रखना होगा कि सरकार चलाने में किसी भी तरह का अनावश्यक व्यवधान कालांतर अशांति का वाहक बनेगा। उम्मीद करें कि यथाशीघ्र पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद जम्मू-कश्मीर में प्रशासन की विसंगतियां दूर की जा सकेंगी।

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