घाटी में महका लोकतंत्र
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल में त्रिशंकु विधानसभा के कयास लगाए जा रहे थे। लेकिन जब मंगलवार को चुनाव परिणाम सामने आए तो जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं ने स्पष्ट जनादेश दिया। चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस व कांग्रेस गठबंधन को निर्णायक जीत मिली है। निश्चय ही पांच साल पुराने इस केंद्र शासित प्रदेश के लिये यह एक नई शुरुआत है। जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद हुए विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने खंडित जनादेश देने के बजाय एक स्थिरता को चुना। उन्होंने राजनीतिक जोड़-तोड़ की किसी भी संभावना को खारिज कर दिया, जैसा कि एग्जिट पोल में त्रिशंकु विधानसभा के कयास लगाए जा रहे थे। इस बीच उपराज्यपाल द्वारा नियुक्त होने वाले पांच विधायकों का सवाल भी उठा, जिनके पास मतदान का अधिकार होगा। बहरहाल, अब विजयी गठबंधन और केंद्र सरकार के लिये असली परीक्षा की शुरुआत हो रही है। इसमें सत्ता सौंपने के लिये बातचीत की प्रक्रिया भी शामिल होगी। जनादेश के बाद केंद्रशासित प्रदेश में विश्वास बहाली प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि उपराज्यपाल व निर्वाचित सरकार के बीच किसी तरह का टकराव पैदा न हो। भरोसा किया जाना चाहिए कि जनादेश का सम्मान किया जाएगा। हम उम्मीद करें कि अतीत की अप्रिय स्थितियों की छाया वर्तमान लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर नजर नहीं आएगी। आशा की जानी चाहिए कि पूर्ववर्ती राज्य के दौरान हिंसा, क्षेत्रीय विभाजन, सांप्रदायिक तनाव व अलगाव की धारणाएं अतीत की बातें बन जाएं। वे नए जनादेश की आगे की यात्रा में बाधक नहीं बनेंगी। हालिया चुनाव के दौरान मतदाताओं के उत्साह व लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति ने सुखद अहसासों को पुष्ट किया है। अच्छी बात है कि क्षेत्र में लंबे समय बाद चुनाव बहिष्कार और चुनावी प्रक्रिया के प्रति अवमानना का साया हट गया है। चुनाव अभियान के दौरान मतदाताओं की उत्साहपूर्ण भागीदारी ने आशा जगायी है कि घाटी में लोकतांत्रिक परंपराएं समृद्ध होंगी। भारतीय संघ के हिस्से के रूप में जम्मू-कश्मीर में स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा सशक्त हो, यह प्रयास केंद्र सरकार की तरफ से लगातार होना ही चाहिए।
यह अच्छी बात है कि केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद अब स्थितियां सामान्य हुई हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भी मतदाताओं ने उत्साह से मतदान में भाग लिया था। वैसा ही उत्साह इस विधानसभा चुनाव के दौरान भी देखा गया। यह अच्छा है कि जम्मू-कश्मीर में जिस त्रिशंकु विधानसभा के कयास लगाए जा रहे थे, वास्तविकता ठीक उसके विपरीत रही। जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं ने एक तरह से पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को सिरे से खारिज कर दिया। यहां तक कि पीडीपी सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती की बेटी भी चुनाव हार गई। भाजपा को जम्मू में जरूर बढ़त मिली मगर घाटी में वह खाता नहीं खोल सकी। जिसको लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं। लेकिन दूसरी ओर नेशनल कान्फ्रेंस व कांग्रेस ने मिलकर पूर्ण बहुमत से अधिक सीटें जीत ली हैं। बहरहाल, नई सरकार बनाने के लिये मतदाताओं द्वारा दिए गए संदेश को संवेदनशील ढंग से समझने की जरूरत है। जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक तकरार से हटकर कोशिश कश्मीरी जनमानस के मन को पढ़ने की हो। ध्यान रखा जाए कि वहां के लोग वास्तव में क्या चाहते हैं। निश्चित रूप से जम्मू-कश्मीर के लोग शेष देश की तरह महंगाई व बेरोजगारी की समस्या से दो चार हैं। उनकी समस्याओं का तार्किक समाधान तलाशना चाहिए। इस सीमावर्ती क्षेत्र की संवेदनशीलता का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। उन्हें वे हक दिए जाने चाहिए जो उनके जीवन में सुधार लाने में सहायक बन सकें। निश्चित रूप से अनुभवी राजनीतिक पार्टियों नेशनल कान्फ्रेंस व कांग्रेस के गठबंधन के लिये लिये सत्ता की बागडोर संभालना कोई नई बात नहीं है। लेकिन उन्हें इस क्षेत्र की बदली हुई आवश्यकताओं को पहचानना होगा। निश्चित रूप से अब गलतियों की पुनरावृत्ति की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। केंद्र सरकार को स्वीकारना चाहिए कि इस केंद्र शासित प्रदेश में राज्य बहाली की मांग एक वैध जन आकांक्षा है। लेकिन इसे राजनीतिक बयानबाजी से परे रखना होगा। साथ ही सामाजिक एकजुटता और आर्थिक समृद्धि के लिये काम करना होगा। जिससे घाटी के लोग देश की मुख्यधारा से जुड़ सकें।