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हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखंड में सशक्त भूकानून की मांग

06:21 PM Jan 17, 2024 IST
हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखंड में सशक्त भूकानून की मांग
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बागेश्वर/देहरादून : उत्तराखंड में सशक्त भूकानून की मांग जोर पकड़ती जा रही है। उत्तराखंड सरकार ने बेशक भूकानून के लिए हाईलेवल कमेटी गठित की हो, लेकिन राज्य के ज्यादातर लोग, खासतौर से युवा वर्ग इसे महज छलावा ही मान रहा है। इसीलिए पिछले दिनों मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति, उत्तराखंड ने बागेश्वर की सरयू नदी में स्थायी निवास प्रमाण पत्र की प्रतियां बहाईं। इसके साथ ही जमीनों की लूट के रास्ते खोलने के लिए लागू किये गए भू कानून की चिता जलाई गई।
मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी और सह संयोजक लुशुन टोडरिया कहते हैं, 'बागेश्वर की जमीन आंदोलन की जमीन रही है। आजादी का आंदोलन रहा हो या उत्तराखंड राज्य आंदोलन, इस जमीन ने आंदोलन को धार दी है। बाबा बागनाथ की इस धरती से एक बार फिर बड़े आंदोलन की शुरुआत हो रही है।' स्थायी निवास की प्रतियां बहाने आए अनेक युवाओं ने कहा कि अब लड़ाई आरपार की होगी। सरकार ने जल्द मूल निवास 1950 लागू नहीं किया तो उत्तराखंड आंदोलन से भी बड़ा आंदोलन उत्तराखंड में होगा। समिति के प्रांजल नौड़ियाल ने कहा कि हर गांव में हर घर तक इस आंदोलन को पहुंचाने की तैय्यारी की जा रही है, देश विदेश मे में भी रहे हर मूल निवासी को इस मुहिम से जोड़ा जाएगा।
इस मौके पर पहाड़ी आर्मी के अध्यक्ष हरीश रावत, बेरोजगार संघ कुमांऊ के संयोजक भूपेंद्र कोरंगा, कार्तिक उपाध्याय ने कहा, 'हमें हिमाचल की तरह सशक्त भू कानून चाहिए। सीमित मात्रा में बची कृषि भूमि की खरीद फरोख्त पर पूरी तरह से रोक लगनी चाहिए।' समिति के सदस्य अनिल डोभाल, दीपक ढोंडियाल, प्रांजल नौडियाल, मनीष सुंदरियाल, सौरभ भट्ट, मयंक चौबे, जितेंद्र रावत, योगेश कुमार, बसंत बल्लभ पंडा, देवेंद्र बिष्ट, विनीत सकलानी, प्रकाश बहुगुणा, हरेंद्र सिंह कंडारी, सुमित कुमार ने कहा कि अंकिता भंडारी के हत्यारों को भी फांसी देने की मांग की। इस मौके पर जितेंद्र रावत, नारायण सिंह बिष्ट, जसवंत सिंह बिष्ट, महेश चंद्र पांडे, आनन्द सिंह, दयाल सिंह पुंडीर, गोविंद सिंह, केदार सिंह कोरंगा, अवतार सिंह, भूपेंद्र सिंह, शेखर भट्ट, ललित सिंह मेहता, सूरज दुबे, भुवन कठैत ने कहा, 'आज हमारी सांस्कृतिक पहचान खतरे में है। जब हमारा राज्य बचेगा, तभी हमारी खिचड़ी संकरांद, घुघुतिया त्यार, मरोज त्योहार बचेगा। आज डेमोग्राफी बदलने से सबसे खतरा उत्तराखंड की संस्कृति को होने जा रहा है।' यहां उल्लेखनीय है कि प्रवासी उत्तराखंडियों ने भी अपनी जमीनों को बचाने के लिए इस संघर्ष में साथ देने का ऐलान किया है। अनेक जगहों से इन लोगों ने पहाड़ के बदलते डेमोग्राफी पर चिंता जाहिर की है। जानकार कहते हैं कि समय रहते नहीं चेता गया तो आने वाले दिनों में उत्तराखंड सरकार को नये बड़े आंदोलन से जूझना पड़ सकता है। यहां के ज्यादातर लोग हिमाचल प्रदेश की तरह स्पष्ट भू कानून चाहते हैं जहां राज्य के लोगों को विशेष सुविधाएं मिलती हैं और जमीन की खरीद-फरोख्त आसान नहीं है।

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