दिल्ली का जनादेश
देश को वैकल्पिक राजनीति व साफ-सुथरे प्रशासन देने के वायदे के साथ सत्ता में आई आम आदमी पार्टी का हालिया विधानसभा चुनावों में हुआ हश्र अप्रत्याशित नहीं है। निश्चित रूप से भाजपा के साधन-संपन्न बड़े संगठन और उसके केंद्र की सत्ता में होने का मुकाबला कर पाना किसी भी दल के लिये आसान नहीं था। भ्रष्टाचार के विरुद्ध चले अन्ना आंदोलन से उपजी आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल पार्टी के पोस्टर ब्वाय के रूप में तो उभरे लेकिन जब उन पर तथा उनके सहयोगियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तो वे जनता की अदालत में खुद को पाक-साफ साबित नहीं कर पाये। दरअसल, पिछले एक दशक से केंद्र सरकार से लगातार टकराव, कोर्ट-कचहरी और आरोप-प्रत्यारोपों से दिल्ली की जनता भी तंग आ चुकी थी। निस्संदेह, शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में आप ने रचनात्मक पहल जरूर की, लेकिन केंद्र सरकार व उसके प्रतिनिधि एलजी से लगातार जारी टकराव से दिल्ली का विकास अवरुद्ध होता नजर आया। लेकिन भाजपा ने जिस व्यापक स्तर पर और प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर दिल्ली का चुनाव लड़ा, उसके अप्रत्याशित परिणाम आने स्वाभाविक थे। इस तरह भाजपा ने ढाई दशक से अधिक के वनवास को खत्म करके सत्ता का वरण कर लिया। लेकिन 43 फीसदी मत व 22 विधायकों के साथ उभरी आप एक मजबूत विपक्ष की भूमिका में जरूर रहेगी। लेकिन यह जरूर है पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल व पार्टी के नंबर दो मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज, सत्येंद्र जैन आदि अन्य धुरंधरों की हार से विधानसभा में आप की आवाज कमजोर जरूर हो जाएगी। वहीं कयास लगाए जा रहे हैं कि इन चुनावों के परिणाम से आप का अन्य राज्यों में विस्तार प्रभावित होगा। बहुत संभव है कि आप की पंजाब सरकार पर कुछ आंच आए। लेकिन एक बात तय है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस भाजपा के प्रदर्शन को कमजोर आंका जा रहा था, वह एक बार फिर जीत की लय में दिखायी दे रही है। उसने हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में यह करिश्मा दिखाया।
इस चुनाव में कांग्रेस का खाता न खुलना पार्टी के लिये निराशाजनक ही है। वहीं इंडिया गठबंधन के लिये भी यह स्थिति बेहद निराशाजनक है क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में उसके दो दल आप व कांग्रेस ताल ठोककर उतरे थे। इस चुनाव का एक रोचक पहलू यह भी रहा है कि अब तक मुफ्त की रेवड़ियों वाला आप का जो हथियार उसके विपक्षियों को पस्त करता रहा है, भाजपा ने उसी हथियार को आप के खिलाफ सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया। खासकर महिलाओं को नकद राशि देने के भाजपा के वायदे ने गेमचेंजर की भूमिका निभायी। वहीं भाजपा के मजबूत संगठन और सशक्त चुनावी तंत्र ने तसवीर बदलने में निर्णायक भूमिका निभाई है। यही वजह है कि जहां भाजपा का खुशियों का कमल खिला, वहीं कांग्रेस की शून्य की हैट्रिक देश की सबसे पुरानी पार्टी को आत्ममंथन को बाध्य कर गई है। बहरहाल, इन चुनाव परिणामों ने आप को अपने सबसे मुश्किल दौर में पहुंचा दिया है। साथ ही यह भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में वैकल्पिक राजनीति के सपने के टूटने जैसा भी है। इसके अलावा अब आप नेतृत्व को पार्टी को एकजुट बनाये रखने की भी चुनौती होगी। वहीं भाजपा पर दबाव होगा कि दिल्ली में पानी,बिजली,जलभराव, सफाई की व्यवस्था बनाने के साथ ही कूड़े के ढेरों के अभिशाप से राष्ट्रीय राजधानी को मुक्त कराए। अकसर होने वाला वायु प्रदूषण का संकट दूर करना भी एक चुनौती है। यमुना की बदहाली दूर करने का संकल्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच विजय रैली को संबोधित करते हुए लिया है, लेकिन यह काम इतना आसान भी नहीं है। इसी रैली में उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय राजधानी की सभी सीमाओं पर स्थित सभी राज्यों में पहली बार भाजपा की सरकारें सत्तारूढ़ हैं। उम्मीद है भाजपा इसे दिल्ली व एनसीआर के विकास का स्वर्णिम अवसर बनाएगी। विश्वास है कि डबल इंजन की सरकार किसी व्यवधान की दलील के बिना राष्ट्रीय राजधानी के गौरव को वैश्विक मापदंडों के अनुरूप ढाल पाएगी।