Delhi Results 2025 : केजरीवाल की छवि पर प्रहार, शाह की रणनीति और मोदी की लोकप्रियता ने BJP की जीत में दिया अहम योगदान
नई दिल्ली, 8 फरवरी (भाषा)
आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल की ईमानदार और स्वच्छ राजनीति के पैरोकार वाली छवि पर प्रहार, चुनाव लड़ने की कथित पारंपरिक शैली साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की जगह लोगों के मुद्दों को प्रमुखता व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता के साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रबंधन ने दिल्ली में 27 साल बाद भाजपा की सत्ता में वापसी में प्रमुख भूमिका निभाई।
विपक्षी राजनीति की धुरी बनने का प्रयास कर रहे थे केजरीवाल
इनके अलावा, जमीनी स्तर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बूथ स्तरीय लगातार छोटी-छोटी बैठकों ने भी भाजपा की जीत की बुनियाद गढ़ने में योगदान दिया। अन्ना हजारे के आंदोलन की बुनियाद पर अपनी राजनीति को परवान चढ़ाने वाले केजरीवाल बहुत तेजी से राष्ट्रीय फलक पर उभरे और अब वह विपक्षी राजनीति की धुरी बनने का प्रयास कर रहे थे।
केजरीवाल की ‘कट्टर ईमानदार' वाली छवि पर प्रहार
जानकारों का कहना है कि केजरीवाल के राजनीतिक उभार के पीछे उनकी ईमानदार, साफ-सुथरी और भ्रष्टाचार की सख्त मुखालफत वाली छवि एक बड़ा कारक थी और भाजपा ने इन चुनावों में पार्टी और सरकार के स्तर से उनकी इस छवि को खंडित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन्हीं प्रयासों के तहत भाजपा ने शराब घोटाले से लेकर ‘शीशमहल' बनाने जैसे आरोप लगाकर केजरीवाल की ‘कट्टर ईमानदार' वाली छवि पर प्रहार किया और इसे जनता के बीच विमर्श का मुद्दा बना दिया जो कारगर भी रहा।
शाह जमीनी स्तर पर प्रबंधन की रणनीति पर कर रहे थे काम
प्रचार अभियानों के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा के अन्य नेता जहां केजरीवाल को दिल्ली के लिए ‘आप-दा' बताकर ताबड़तोड़ हमले कर रहे थे, वहीं अमित शाह जमीनी स्तर पर प्रबंधन की रणनीति पर काम कर रहे थे। भाजपा के एक सूत्र ने बताया कि शाह ने राज्यों के चुनावों का प्रभार संभालने वाले केंद्रीय मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं को दो-दो विधानसभा सीटों पर जीत का जिम्मा सौंपा और प्रतिदिन वह हर विधानसभा क्षेत्र की रिपोर्ट लेते रहे।
संघ के कार्यकर्ताओं ने निभाई बड़ी भूमिका
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को मालवीय नगर और पीयूष गोयल को दिल्ली कैंट सहित दो-दो विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवारों की जीत का जिम्मा सौंपा गया वहीं भूपेंद्र यादव को दक्षिणी दिल्ली की दो सीट का प्रभार दिया गया था। भाजपा के एक नेता ने बताया कि पार्टी ने चुनिंदा बड़ी जनसभाओं को छोड़ छोटी-छोटी सभाओं और बैठकों पर ध्यान केंद्रित किया और उसके नेताओं ने घर-घर जाकर मतदाताओं को केंद्र की योजनाओं के फायदे गिनवाए। इन कार्यक्रमों में राजधानी की अनुसूचित जाति बहुल सीटों और इलाकों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिन्हें आप का प्रबल समर्थक वर्ग माना जाता था। संघ के कार्यकर्ताओं ने भी बड़ी भूमिका निभाई।
शुरुआती परिस्थितियां भाजपा के अनुकूल नहीं थीं
भाजपा सूत्रों ने स्वीकार किया कि शुरुआती परिस्थितियां पार्टी के अनुकूल नहीं थीं। केजरीवाल के खिलाफ मजबूत चेहरे का अभाव और मुफ्त की योजनाओं का जमीनी असर, खासकर महिलाओं पर उसके आड़े आ रहा था। शाह ने रणनीति पर काम किया और इसके तहत भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में मुफ्त बिजली, पानी सहित आप सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखने के अलावा महिलाओं को 2500 रुपये का मासिक भत्ता और 10 लाख रुपए तक का ‘मुफ्त' इलाज सहित कई वादे किए।
‘आप' के रहने से इन मुद्दों पर फायदा भी भाजपा को मिला
साथ ही पार्टी ने किसी स्थानीय चेहरे को आगे बढ़ाने के बजाय केवल मोदी के चेहरे को प्रमुखता दी। भाजपा को पता था कि पहले के चुनावों में पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी और पूर्व केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की रणनीति फलीभूत नहीं हो सकी थी। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान न केंद्रित कर पानी, जल निकासी और कचरा प्रबंधन जैसे जमीनी स्तर के मुद्दों पर फोकस बनाए रखने की रणनीति भी कारगर साबित हुई। उक्त नेता ने बताया कि दिल्ली नगर निगम की सत्ता में ‘आप' के रहने से इन मुद्दों पर फायदा भी भाजपा को मिला।
मध्यम वर्ग को रियायतें देकर भाजपा ने चला बड़ा दांव
उन्होंने बताया कि वैसे तो प्रदूषण आम तौर पर चुनावी मुद्दा नहीं होता, लेकिन भाजपा ने यमुना और दिल्ली के वायु प्रदूषण से दिल्ली की जनता के स्वास्थ्य पर हो रहे नुकसान का मुद्दा जोरशोर से उठाया। चुनाव के बीच में ही आए केंद्रीय बजट में मध्यम वर्ग को महत्वपूर्ण कर रियायतें देकर भी भाजपा ने एक बड़ा दांव चला था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी एक और रणनीति में बदलाव यह किया कि उसने बड़े स्तर पर कथित ध्रुवीकरण का कोई प्रयास नहीं किया और इसका असर ये हुआ कि अल्पसंख्यक मत एकतरफा किसी दल या उम्मीदवार के पक्ष में नहीं पड़े।