गधे के बहाने गहरे कटाक्ष
नरेंद्र कुमार
गधा भी अनूठा जानवर है, खूब काम करने पर अंतत: उपहास का ही पात्र बनाया जाता है। पढ़ाई में कमजोर बच्चा हो या फिर आम जीवन में साधारण-सा रहने वाला व्यक्ति, हर कोई उसकी तुलना गधे से करने लगता है। गधा ऐसा पात्र है तो उस पर भला व्यंग्यकार की नजर कैसे न पड़े। इसी संदर्भ में डॉ. नरेंद्र शुक्ला का व्यंग्य संग्रह हाल में प्रकाशित हुआ है। नाम है, ‘गधे ही गधे।’ पुस्तक में लेखक ने अपने आस-पास की घटनाओं के माध्यम से समाज और राजनीतिक विडंबनाओं पर कटाक्ष किया है। यह व्यंग्यों की शृंखलाबद्ध किताब है। हर व्यंग्य में कटाक्ष के साथ संदेश देने की भी कोशिश की गयी है।
दरअसल, पुस्तक में ‘गधों’ का प्रतीकात्मक इस्तेमाल सटीक बन पड़ा है। कहानियों में नेताओं, अफसरों व भ्रष्टाचार से जुड़े कई मुद्दों पर गुदगुदाया गया है। हिंदी दिवस के हाल, टीवी विज्ञापनों, सोशल मीडिया पर फैन फॉलोअर्स बढ़ाने का खेल और महंगाई की मार जैसे विषयों को हास्य तरीके से उठाते हुए लेखक ने असलियत भी सामने रखने की कोशिश की है। ‘मंत्री जी का दौरा’ में एक खबरिया टीवी शो पर टिप्पणी सटीक बन पड़ती है।
पूरी पुस्तक मे पढ़ने की उत्सुकता बरकरार रहती है। पुस्तक में समाज के विभिन्न पहलुओं, प्रशासनिक ढांचा, राजनीतिक व्यवस्था, और आम जनमानस की मानसिकता पर तीखे व्यंग्य किए गए हैं। सरल अंदाज में लिखी गयी पुस्तक हास्य और कटाक्ष का बेहतरीन मिश्रण है। कुछ जगहों पर प्रूफ की कुछ त्रुटियां पठन प्रवाह पर विराम लगाती सी महसूस होती हैं, लेकिन अगले ही पल रोचक विषय पर कुछ पंक्तियां ऐसा गुदगुदाती हैं कि ये त्रुटियां गौण हो जाती हैं।
पुस्तक : गधे ही गधे लेखक : डॉ. नरेंद्र शुक्ल प्रकाशन : जिज्ञासा प्रकाशन, गाजियाबाद पृष्ठ : 131 मूल्य : रु. 230.