लघुकथाओं में गहरी संवेदनाएं
रतन चंद ‘रत्नेश’
पुस्तक : मैं एकलव्य नहीं लेखक : जगदीश राय कुलरियां प्रकाशक : के पब्लिकेशन, बरेटा, पंजाब पृष्ठ : 101 मूल्य : रु. 199.
जगदीश राय कुलरियां, पंजाबी और हिंदी के लघुकथा लेखक, हाल ही में केंद्रीय साहित्य अकादमी से सम्मानित हुए हैं। उनके सद्य: प्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘मैं एकलव्य नहीं’ में सामाजिक जीवन से जुड़ी 63 लघुकथाएं शामिल हैं। इनमें अधिकांश सकारात्मक पहलुओं को उजागर करती हैं, जो कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाती हैं।
बच्चों के मन पर बड़ों के क्रियाकलापों का प्रभाव ‘दर्पण’ और ‘सबक’ में स्पष्ट है। ‘मजबूरी’, ‘गुरुमंत्र’, ‘फैसला’ और ‘हमदर्दी’ में पति-पत्नी के रिश्ते पर बात की गई है, जबकि ‘बस और नहीं’, ‘अधूरा दर्द’, ‘एक गदर’ और ‘जब इतिहास बनता है’ में अनैतिक संबंधों की बारीकियां दर्शाई गई हैं।
इन लघुकथाओं की सरलता और सहजता इन्हें हृदयग्राही बनाती हैं, जो कलात्मक ढंग से गहराई तक पहुंचती हैं। सोशल मीडिया का दोहरा चरित्र ‘मकड़ी’ और ‘फेसबुक’ जैसी लघुकथाओं में बिंबित हुआ है। किसानों के मुद्दे ‘बाजी’ और ‘जंग’ में और घर के बड़े-बुजुर्गों की संवेदनाएं ‘रिश्तों की नींव’, ‘अपना-अपना मोह’, ‘अपना घर’ और ‘दायित्व’ में झलकती हैं। युवा पीढ़ी उनके दृष्टिकोण पर प्रश्नचिह्न लगाती है।
सृजनकारों की स्वार्थपरकता को ‘सम्मान’ और ‘मजबूरी’ में कुशलता से उजागर किया गया है। संग्रह की सभी लघुकथाएं पठनीय और विचारोत्तेजक हैं, जो कम शब्दों में गंभीर प्रभाव छोड़ती हैं।