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समर्पण, जीवन और दर्शन

06:49 AM Apr 01, 2024 IST
समर्पण  जीवन और दर्शन
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अनीता

जब हम स्कूल में पढ़ते थे, अध्यापकगण हर घंटे में कहते थे, ध्यान दो, ध्यान से पढ़ो। घर पर मां बच्चे को कोई समान लाने को कहे तो पहले कहेगी, ध्यान से पकड़ो। सड़क पर यदि कोई ड्राइवर गाड़ी ठीक से न चलाये, तो कहेंगे, उसका ध्यान भटक गया। इसका अर्थ हुआ ध्यान में ही सब प्रश्नों का हल छिपा है। ध्यान हमारी बुद्धि की सजगता की निशानी है। जब बुद्धि सजग हो तो भूल नहीं होती। इसी तरह जब मन ध्यानस्थ होता है तो सहज स्वाभाविक प्रसन्नता तथा उजास चेहरे पर स्वयमेव छाये रहते हैं। मन से सभी के लिए सद्भावनाएं उपजती हैं। यह दुनिया तब पहेली नहीं लगती न ही कोई भय रहता है।
ध्यान से उत्पन्न शांति सामर्थ्य जगाती है और सारे कार्य थोड़े से ही प्रयास से होने लगते हैं। कर्तव्य पालन यदि समुचित हो तो अंतर्मन में एक अनिर्वचनीय अनुभूति होती है, ऐसा सुख जो निर्झर की तरह अंतर्मन की धरती से अपने आप फूटता है।
संतजन कहते हैं, जो अपने लिये सत्यं, शिवं और सुन्दरं के अलावा कुछ नहीं चाहता, प्रकृति भी उसके लिये अपने नियम बदलने को तैयार हो जाती है। जो अपने ‘स्व’ का विस्तार करता जाता है, जैसे-जैसे अपने निहित स्वार्थ को त्यागता जाता है, वैसे-वैसे उसका सामर्थ्य बढ़ता जाता है। अस्तित्व पर निर्भर रहें तो कोई फ़िक्र वैसे भी नहीं रह जाती क्योंकि वह हर क्षण हमारे कुशल-क्षेम का भार वहन करता है। हम जो भी करें उसका हेतु सत्य प्राप्ति हो तो सामान्य कार्य भी भक्ति ही बन जाते हैं। एक मात्र ईश्वर ही हमारे प्रेम का केन्द्र हो, जो कहना है उसे ही कहें। अन्यों से प्रेम हो भी तो उसी के प्रति प्रेम का प्रतिबिम्ब हो। परमात्मा की कृपा जब हम पर बरसती है तो अपने ही अंतर से बयार बहती है। तब अंतर में तितलियां उड़ान भरती हैं। ऐसा प्रेम अपनी सुगन्धि अपने आप बिखेरता है। दुनिया का सौंदर्य जब उसके सौंदर्य के आगे फीका पड़ने लगे, उस ‘सत्यं शिवं सुन्दरं’ की आकांक्षा इतनी बलवती हो जाये, उसके स्वागत के लिए तैयारी अच्छी हो तो उसे आना ही पड़ेगा। रामरस के बिना हृदय की तृष्णा नहीं मिटती। परम प्रेम हमारा स्वाभाविक गुण है, उससे च्युत होकर हम संसार में आसक्त होते हैं। श्रीकृष्ण का सौंदर्य, शिव की सौम्यता, और राम का रस जिसे मिला हो वही धनवान है। संसार में जो कुछ भी शुभ है वह उस में है, तो यदि हम स्वयं को उससे जोड़ते हैं, प्रेम का संबंध बनाते हैं तो वह हमें इस शुभ से मालामाल कर देता है, दुःख हमसे स्वयं ही दूर भागता है, मन स्थिर होता है। धीरे-धीरे हृदय समाधिस्थ होता है।
साभार : अनीता डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम

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