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रंगीन धुएं में भी छुपा जानलेवा ज़हर

04:05 AM Apr 23, 2025 IST
रंगीन धुएं में भी छुपा जानलेवा ज़हर
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युवा वर्ग में वेपिंग की लत तेजी से बढ़ रही है जो धूम्रपान से भी खतरनाक है जिससे देश में हर साल 13 लाख लोगों की जान जाती है। इसे युवा फैशन और सुरक्षित मानकर पीते हैं। जिसके सेहत पर असर, भ्रांतियों और समाधानों के बारे जागरूकता जरूरी है। इसी विषय पर पीजीआई चंडीगढ़ के हेल्थ मैनेजमेंट, कम्युनिटी मेडिसिन और स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रो. डॉ. सोनू गोयल से विवेक शर्मा की बातचीत।

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आजकल सोशल मीडिया ट्रेंड्स, ‘स्मार्ट’ दिखने की चाहत और ‘सिगरेट से सुरक्षित विकल्प’ के भ्रम के चलते, युवा वर्ग तेजी से वेपिंग (ई-सिगरेट) की चपेट में आ रहा है। चमकदार डिवाइसेज़, फल, चॉकलेट, पुदीना और मिठाइयों जैसे आकर्षक फ्लेवर, और इंस्टाग्राम रील्स पर ‘धुएं के रिंग्स’ बनाने का ट्रेंड, इन सभी ने ऐसा भ्रम फैलाया है, जिसके तहत युवा अनजाने में अपनी सेहत के साथ समझौता कर रहे हैं।
लेकिन क्या वाकई वेपिंग पारंपरिक सिगरेट से कम हानिकारक है? सच्चाई यह है कि वेपिंग कई मामलों में सिगरेट से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है।
नतीजे बताते हैं डराने वाली सच्चाई
टीनेजर्स और युवा वर्ग में वेपिंग की लत तेजी से बढ़ रही है, और इस एडिक्शन का शिकार सिर्फ बड़े ही नहीं, बल्कि स्कूल जाने वाले बच्चे भी हो रहे हैं। साल 2023 में किए गए एक सर्वे के अनुसार, 14 से 25 वर्ष के बीच लगभग 3.9 फीसदी युवा वेपिंग की लत में फंस चुके हैं, हालांकि 2019 में इसे लेकर सख्त कानून बनाए गए थे। डॉ. गोयल ने बताया कि कई बार छात्र सार्वजनिक रूप से स्मोकिंग करते हैं, लेकिन किसी को इसका पता नहीं चलता। क्योंकि कंपनियां ऐसी ई-सिगरेट बनाती हैं जो पैन जैसी होती हैं, जोकि काफी खतरनाक हैं। ई-सिगरेटों को बनाते और बेचते हुए पहली बार पकड़े जाने पर एक वर्ष तक की जेल और एक लाख रुपये तक जुर्माने की सजा मिल सकती है।
धूम्रपान के आंकड़े और वेपिंग के खतरनाक प्रभाव
डॉ. सोनू गोयल के अनुसार, भारत में 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र के करीब 267 मिलियन लोग किसी न किसी रूप में धूम्रपान करते हैं। हर साल तंबाकू और धूम्रपान के कारण 13 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा देते हैं, और ये आंकड़े सिर्फ पारंपरिक सिगरेट के हैं। वेपिंग के खतरे इसके अलावा हैं, जो अब तेजी से सामने आ रहे हैं।
वेपिंग क्या है?
वेपिंग एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस (जैसे ई-सिगरेट, वेप पेन या पॉड) के ज़रिए निकोटीन, प्रोपलीन ग्लाइकोल, ग्लिसरीन और फ्लेवरिंग एजेंट्स जैसे रसायनों को गर्म कर उन्हें भाप (वेपर्स) में बदलने की प्रक्रिया है। इन वेपर्स को सांस के साथ अंदर लिया जाता है।
हालांकि इसमें तंबाकू का पत्ता सीधे इस्तेमाल नहीं होता, लेकिन इसका मुख्य नशा देने वाला तत्व निकोटीन ही होता है, जो न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालता है।
वेपिंग को लेकर भ्रांतियां और सच
भ्रांति 1 : वेपिंग सुरक्षित है क्योंकि इसमें तंबाकू नहीं होता।
सच्चाई : वेपिंग लिक्विड में निकोटीन के अलावा डाइसेटाइल, फॉर्मलडिहाइड और हैवी मेटल्स होते हैं, जो फेफड़ों और हृदय के लिए खतरनाक हैं।
भ्रांति 2 : वेपिंग से सिगरेट छोड़ना आसान होता है।
सच्चाई : कई शोध बताते हैं कि ई-सिगरेट की लत अक्सर पारंपरिक सिगरेट के साथ मिलकर डुअल यूज की आदत बनाती है, जिससे लत और गहराती है।
भ्रांति 3 : फ्लेवरिंग एजेंट सुरक्षित होते हैं।
सच्चाई : फ्लेवर्ड वेप में इस्तेमाल होने वाले कुछ एजेंट, जैसे डाइसेटाइल,‘पॉपकॉर्न लंग डिज़ीज़’ जैसे गंभीर रोग का कारण बन
सकते हैं।
भ्रांति 4 : निकोटीन से तत्काल कोई गंभीर खतरा नहीं होता।
सच्चाई : किशोरों में निकोटीन का असर मस्तिष्क विकास, निर्णय लेने की क्षमता, और याद्दाश्त पर गहरा पड़ता है।
वेपिंग से जुड़े प्रमुख स्वास्थ्य खतरे
फेफड़ों को नुकसान : वेपिंग से जुड़ा ईवैली (ई-सिगरेट ऑर वेपिंग प्रोडक्ट यूज़-एसोसिएटेड लंग इंज़री) एक गंभीर फेफड़ों की बीमारी है, जिससे कई देशों में युवाओं की मौतें दर्ज की गई हैं। हृदय रोग का जोखिम : निकोटीन हृदय गति और रक्तचाप को बढ़ाता है, जिससे स्ट्रोक और हार्ट अटैक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। मस्तिष्क पर असर : किशोरावस्था में मस्तिष्क तेजी से विकसित होता है। वेपिंग इस प्रक्रिया को बाधित कर एकाग्रता, सीखने और मानसिक संतुलन पर बुरा असर डालता है। अन्य प्रभाव : इम्यून सिस्टम कमजोर होना, फेफड़ों में सूजन, सांस की तकलीफ, नशे की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी, मानसिक तनाव और अवसाद।
कौन सबसे ज्यादा जोखिम में?
किशोर और युवा (13–25 वर्ष) : इस उम्र में मस्तिष्क और शरीर तेजी से विकसित होते हैं, और इसी समय निकोटीन की लत सबसे आसानी से लगती है। गर्भवती महिलाएं : निकोटीन और दूसरे रसायनों का असर भ्रूण के मस्तिष्क और फेफड़ों के विकास पर पड़ सकता है। पहले धूम्रपान करने वाले : जो लोग पहले सिगरेट छोड़ चुके होते हैं, वेपिंग उन्हें फिर से नशे की गिरफ्त में ला सकता है।
ये हो सकते हैं समाधान
सही जानकारी और जागरूकता : वेपिंग को ‘कूल’ मानने के भ्रम से निकलना जरूरी है। स्कूलों, कॉलेजों और घरों में इसके नुकसान के बारे में खुली बातचीत होनी चाहिए। परिवार और शिक्षकों की भूमिका : बच्चों की डिजिटल गतिविधियों पर ध्यान दें। अगर बच्चा वेपिंग कर रहा हो तो डांटने के बजाय संवाद और परामर्श का रास्ता अपनाएं। नशा मुक्ति के साधन : डॉक्टर से संपर्क करें। निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एनआरटी), योग, ध्यान, व्यायाम और काउंसलिंग बेहद कारगर हो सकते हैं। नीतिगत हस्तक्षेप : भारत में ई-सिगरेट पर 2019 से प्रतिबंध है, लेकिन ऑनलाइन और अवैध तरीकों से ये आज भी उपलब्ध हैं। प्रवर्तन और निगरानी को सख्त बनाना होगा।

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