जानलेवा गर्मी
हाल के दिनों में यूपी-बिहार समेत देश के कई राज्यों में गर्मी व लू से होने वाली मौतें हमारी गंभीर चिंता का विषय होनी चाहिए। विडंबना यह है कि लगातार बढ़ते तापमान के चलते जहां असहनीय गर्मी से मरने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है वहीं हमारी चिकित्सा सेवाएं उपचार के लिये पर्याप्त नहीं हैं। इसे सीधे तौर पर धरती के लगातार बढ़ते तापमान की परिणति के रूप में देखा जाना चाहिए। यानी कि हमारे दैनिक जीवन में ग्लोबल वार्मिंग का घातक प्रभाव नजर आने लगा है। यह रहस्य की बात है कि उत्तर प्रदेश में चालीस डिग्री से अधिक तापमान के बीच बलिया जनपद में ही सौ से अधिक मौतें हुई हैं। पूरे राज्य व बिहार के आंकड़ों को मिला दें तो चिंताजनक स्थिति सामने आती है। बकौल सरकारी चिकित्सा अधिकारी, मरने वालों में बड़ी संख्या उन लोगों की थी जो उम्रदराज थे और कई अन्य रोगों से ग्रसित भी रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद मौत का आंकड़ा एक खतरनाक संकेत है क्योंकि गर्मी इन मौतों का बड़ा कारण रही है। इसी तरह का संकट बिहार के कई जनपदों में देखने को मिला है। चिंता की बात यह भी है कि अभी मानसून आने में विलंब है और इन इलाकों में जल्दी आसमान से राहत मिलने के आसार नजर नहीं आते। निस्संदेह, मौसम की तल्खी से होने वाली मौतों को कम करने के लिये देश में हीट एक्शन प्लान को सुनियोजित ढंग से लागू करने की सख्त जरूरत है। विडंबना यह है कि मौसम की तल्खी का मुख्य शिकार देश का गरीब तबका ही होता है जो शीतलहर, लू व बाढ़ की चपेट में आता है। विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र में काम करने वाला श्रमिक वर्ग। बहरहाल, प्रचंड गर्मी से उपजी हीट वेव से बचने के लिये उत्तर प्रदेश व बिहार आदि राज्यों में येलो अलर्ट जारी किया गया है क्योंकि जल्द बारिश के आसार नहीं हैं।
दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल स्थित बलिया में हुई अप्रत्याशित मौतों को लेकर अधिकारी माथापच्ची कर रहे हैं। विशेषज्ञों की टीमें वास्तविक कारण जानने के प्रयास कर रही हैं। वहीं गर्मी बढ़ने के बाद अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। चिकित्सा अधिकारियों की दलील है कि मरने वाले लोग पहले अन्य बीमारियों से ग्रसित थे। लेकिन सवाल चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता को लेकर भी उठाये जा रहे हैं। मरीजों को पर्याप्त संख्या में बेड व समय पर उपचार न मिलने की बातें भी कही जा रही हैं। इसके विपरीत सरकारी अधिकारी पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं होने की बात कर रहे हैं। उनका दावा है कि उम्रदराज मरीजों में बीमारियां तेज गर्मी के चलते गंभीर हो जाती हैं क्योंकि रोगों का संक्रमण बढ़ जाता है। हालांकि, रोज जीवनयापन के लिये गर्मी में निकलते समय लोग उन सामान्य बातों का ध्यान नहीं रखते जो बाद में लू लगने का कारण बनती हैं। जिसके चलते उन्हें डिहाइड्रेशन की समस्या पैदा हो जाती है। जो लू की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि कर देती है। ऐसे में बढ़ती गर्मी के बीच लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। लेकिन सरकारी अधिकारी आग लगने पर कुआं खोदने की प्रवृत्ति से ग्रसित रहते हैं। निस्संदेह, जनसंख्या दबाव के चलते सरकारी अस्पताल मरीजों के बोझ से चरमरा रहे हैं लेकिन समय रहते बचाव व उपचार की तैयारी जरूरी होती है। यह जानते हुए भी कि देश में गर्मी से मरने वाले लोगों की संख्या में साल दर साल इजाफा होता जा रहा है। वास्तव में देश में मौसम की तल्खी से मरने वाले मरीजों की व्यापक जांच होनी चाहिए और अध्ययन के निष्कर्षों के मुताबिक बचाव व राहत के कार्यक्रम निर्धारित करने चाहिए। सरकारी तंत्र को मौत के आंकड़ों में कमी दर्शाने व गर्मी के बजाय मौत के अन्य कारण बताने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए। मौतों का अध्ययन यदि वैज्ञानिक तरीके से पारदर्शिता के साथ किया जायेगा तो इनके कारणों के निष्कर्ष तमाम लोगों का जीवन बचाने में सहायक हो सकते हैं।