मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
आस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

प्रशंसा के खतरे

12:38 PM Aug 26, 2021 IST

आचार्य विनोबा भावे का आश्रम में आई चिट्ठियों को पढ़ना और उनके उत्तर देना दिनचर्या का अंग था। एक दिन विनोबा जी आश्रम में बैठे चिट्ठियों को पढ़ रहे थे, साथ ही उनका उत्तर भी लिखते जा रहे थे। एक चिट्ठी को विनोबा जी ने पढ़ा और उसे फाड़कर रद्दी की टोकरी में डाल दिया। पास ही बैठे आश्रम में आए एक अतिथि ने पूछा-आचार्य जी, ऐसा इस पत्र में क्या है, जो आपने इस चिट्ठी को फाड़ दिया। विनोबा अतिथि की ओर देखकर बस मुस्कुरा भर दिए। फाड़ी गई चिट्ठी को लेकर अतिथि की जिज्ञासा और बढ़ गई। वह फटी चिट्ठी को टोकरी से निकाल कर उसके टुकड़े जोड़ कर पढ़ने लगे। अतिथि यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि वह पत्र महात्मा गांधी का था, जिसमें विनोबा जी की प्रशंसा की गई थी। अतिथि ने पूछा-आचार्य जी, इतने महत्वपूर्ण व्यक्ति द्वारा ऐसा सुंदर लिखा पत्र, जिसमें आपकी इतनी प्रशंसा की गई हो, आपने क्यों फाड़ दिया? यह तो संग्रहणीय था! विनोबा जी ने कहा-इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति प्रशंसा का भूखा होता है परंतु प्रशंसा अक्सर ही अहंकार को जन्म देती है और चित्त को दूषित करती है। इसलिए प्रशंसा से सावधान रहना चाहिए।

Advertisement

प्रस्तुति: मधुसूदन शर्मा 

Advertisement
Advertisement
Tags :
प्रशंसा