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खतरे का खनन

09:38 AM Nov 22, 2023 IST

इसमें दो राय नहीं कि कुदरत द्वारा प्रदत्त उपहारों में पानी के बाद रेत ही प्राकृतिक संसाधन है जो मौजूदा दौर में सबसे ज्यादा उपयोग में लाया जाता है। दरअसल, यह हमारे आसपास तेज होते निर्माण कार्यों की जरूरत के चलते भी हुआ है। लेकिन प्राकृतिक संसाधनों की देशव्यापी लूट के चलते नदियों से रेत खनन इतने अवैज्ञानिक तरीके से होता है कि यह कालांतर जन-धन की क्षति का कारण साबित होने लगता है। दरअसल, नदी तल से निकाले जाने वाले रेत का हमारे पारिस्थितिकीय तंत्र पर खासा प्रतिकूल असर पड़ता है। हमारे पर्यावरण पर इसका नकारात्मक प्रभाव दूरगामी होता है। समय-समय पर हुए अध्ययन इस बात पर बल देते हैं कि नदियों के तटों से निकाली जाने वाली रेत का नियमन होना चाहिए क्योंकि उचित नियमन न होने के परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। इस बात की पुष्टि हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी की रोपड़ शाखा ने एक नये अध्ययन में की है। यह अध्ययन बताता है कि ब्यास नदी के तटों पर यदि वैज्ञानिक तौर-तरीकों से रेत का खनन किया जाए तो मानसून के दौरान पंजाब में बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। दरअसल, अंधाधुंध खनन से नदी के पानी की धारा अवरुद्ध होती है और मानसूनी बारिश का पानी नदियों में उफान मारकर बस्तियों की ओर बहने लगता है। खनन से नदियों के तटबंध भी प्रभावित होते हैं। यदि शासन-प्रशासन कायदे से खनन की अनुमति दे तो मानवीय व फसलों की क्षति को टाला जा सकता है। दरअसल, मानसून में अथाह जलराशि को अपना रास्ता मिलने से वह अपने प्राकृतिक प्रवाह के अनुरूप रहती है। नदी की भंडारण क्षमता अधिक होती है और नियंत्रित खनन से तटवर्ती शहरों व गांवों का नुकसान कम करना संभव है। दरअसल, लगातार अवैध खनन से नदियों के किनारों पर खाइयां बन जाती हैं। जो नदी के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करती हैं। जरूरी है कि रेत खनन को तार्किक बनाए जाने के लिये इसका गुणात्मक व मात्रात्मक डेटा जुटाया जाए।
दरअसल, पंजाब सरकार द्वारा मानसून के बाद नदियों और उसके किनारे तलछट जमा होने में पायी जाने वाली भिन्नता के आकलन के लिये आईआईटी रोपड़ की सेवाएं ली गई थी। आईआईटी की टीम ने रेत खनन में पारदर्शिता लाने के लिये एक प्रभावी नियामक तंत्र बनाने का सुझाव दिया था। इसमें ड्रोन का उपयोग करके नदी तल का मानचित्रण भी शामिल था। यह कदम नदी तलों पर खनन की वास्तविक स्थिति को बताने में सक्षम है। अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि इस संकट को दूर करने के लिये रेत माफिया पर भी अंकुश लगाने का प्रयास किया जाए। साथ ही रेत की नीलामी और खनन की स्थिति के डिजिटलीकरण पर भी बल दिया गया। जिससे यह पता लगाया जा सकेगा कि नदी के किनारे के आसपास रेत खरीदी गई है या नहीं। इसके साथ निर्माण की गुणवत्ता के लिये रेत के ग्रेड निर्धारण का भी सुझाव दिया गया है। निस्संदेह, इस दिशा में व्यापक अनुसंधान वक्त की जरूरत है। जो पर्यावरण संरक्षण, बुनियादी निर्माण ढांचे को सुरक्षा प्रदान करने और अन्य सामग्री के नियमन के लिये भी जरूरी है। आईआईटी रोपड़ की इस भूमिका का स्वागत किया जाना चाहिए। एक ओर इस प्रयास से जहां अवैध खनन की रोकथाम में मदद मिलेगी, वहीं हर साल मानसून के दौरान फसलों व जन-धन की हानि को कम किया जा सकेगा। निस्संदेह, पंजाब में रेत और खनिजों के खनन की अपार संभावना है। जो राज्य की अर्थव्यवस्था को भी गति देने में सहायक साबित हो सकती है। जरूरत इस बात की है कि खनन की प्राथमिकताओं का निर्धारण किया जाए। इसकी नीलामी में पारदर्शिता और बेहतर प्रबंधन से बेहतर परिणाम आर्थिक व पर्यावरणीय दृष्टि से हासिल किये जा सकते हैं। साथ ही दिशा-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये नदी की चौड़ाई व पुन: रेत पूर्ति की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए खनन स्थलों की निगरानी की जानी चाहिए। यह हमारे पर्यावरण संतुलन की अपरिहार्य शर्त भी है। शासन-प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित करने की सख्त जरूरत है।

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