For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

Dadi-Nani Ki Baatein : हर रोग का इलाज योग... ऐसा क्यों कहती है दादी-नानी?

04:52 PM Jun 21, 2025 IST
dadi nani ki baatein   हर रोग का इलाज योग    ऐसा क्यों कहती है दादी नानी
Advertisement

चंडीगढ़, 21 जून (ट्रिन्यू)

Advertisement

Dadi-Nani Ki Baatein : घरों में अक्सर दादी-नानी की बातें पुरानी जरूर दोहराई जाती हैं लेकिन उनमें जीवन का सार छिपा होता है। जब वे कहती हैं, "हर रोग का इलाज योग," तो ये केवल एक कहावत नहीं होती, बल्कि वर्षों की पारिवारिक परंपरा, अनुभव और भारतीय जीवन-दर्शन का निचोड़ होता है।

हर रोग का इलाज योग... यह केवल एक पुरानी परंपरा नहीं, बल्कि आज के विज्ञान और चिकित्सा की दिशा भी है। उनके अनुभव, जीवनशैली और सहज ज्ञान में वह गहराई है जिसे समझना आज के समय की आवश्यकता है। योग न केवल रोगों से लड़ता है बल्कि रोगों से बचाता भी है और यह बात दादी-नानी बिना किसी डिग्री के, अनुभव से जानती थीं।

Advertisement

योग केवल व्यायाम नहीं, जीवन जीने की कला

योग का अर्थ अक्सर लोग केवल आसनों तक सीमित कर देते हैं लेकिन बड़े-बुज़ुर्ग जानते हैं कि योग केवल शरीर को मोड़ने या खींचने की प्रक्रिया नहीं है। योग जीवन के प्रत्येक पहलू को संतुलित करने की प्रणाली है - शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आत्मिक। दादी-नानी के समय में जब मेडिकल सुविधाएं सीमित थीं, तब रोगों से निपटने के लिए प्राकृतिक उपायों, आयुर्वेद और योग का सहारा लिया जाता था। वे समझती थीं कि असली इलाज केवल दवा से नहीं, शरीर के संतुलन को बहाल करने से होता है।

योग और शरीर का सामंजस्य

योगासन शरीर को लचीला बनाते हैं, रक्त संचार को बेहतर करते हैं और अंगों की कार्यक्षमता को बढ़ाते हैं। जब दादी कहती हैं, "सूर्य नमस्कार कर लो, पेट ठीक रहेगा," तो उनका इशारा इस बात की ओर होता है कि नियमित योग से पाचन, चयापचय और इम्यून सिस्टम सुदृढ़ होता है। आज के दौर में जब मोटापा, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां आम हो गई हैं, योग उनके नियंत्रण और रोकथाम में बेहद प्रभावी सिद्ध हो रहा है। दादी-नानी इसे रोज़मर्रा की आदत बनाकर रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ाती थीं।

मानसिक स्वास्थ्य में योग की भूमिका

बुजुर्ग जानती थीं कि चिंता, क्रोध, तनाव जैसे मानसिक विकार भी शरीर पर असर डालते हैं। "जब मन शांत होगा, शरीर भी स्वस्थ रहेगा" - यह बात वे बार-बार दोहराती थीं। प्राणायाम, ध्यान (मेडिटेशन) और अनुलोम-विलोम जैसी योग क्रियाएं मानसिक स्थिरता देती हैं, जिससे नींद अच्छी आती है, मन प्रसन्न रहता है और तनाव दूर होता है। आज की तेज रफ्तार जिंदगी में मानसिक रोग जैसे डिप्रेशन, एंग्ज़ायटी बढ़ते जा रहे हैं। योग इनसे बचाव का एक सशक्त माध्यम है – यही बात दादी-नानी बहुत पहले से कहती आ रही हैं।

योग और आत्मिक बल

दादी-नानी केवल शरीर की बात नहीं करती थीं, वे आत्मा के बल की भी बात करती थीं। वे समझती थीं कि एक संतुलित व्यक्ति ही किसी रोग से सच्ची लड़ाई लड़ सकता है। योग व्यक्ति को भीतर से मज़बूत करता है – उसमें आत्म-विश्वास, सहनशक्ति और सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करता है। ध्यान और साधना के जरिए वे अपने अनुभव से जानती थीं कि "रोग केवल शरीर में नहीं, सोच में भी होता है।"

स्वस्थ जीवनशैली की शिक्षा

दादी-नानी का जीवन एक तरह का योग ही होता था - समय पर उठना, संतुलित आहार, नियमित दिनचर्या, और प्रकृति के साथ सामंजस्य। वे हमें सिखाती थीं कि स्वास्थ्य कोई अलग चीज़ नहीं, बल्कि जीवनशैली का हिस्सा है। वे यह नहीं कहती थीं कि हर बीमारी की गोली लो, बल्कि कहती थीं – "अपना खानपान ठीक करो, थोड़ा टहल लो, भ्रामरी या अनुलोम-विलोम करो – शरीर खुद ही ठीक हो जाएगा।" आधुनिक विज्ञान भी अब इसी बात की पुष्टि कर रहा है।

बचपन से संस्कार में योग

दादी-नानी का जोर बच्चों को बचपन से योग की ओर प्रेरित करने पर होता था। सुबह-शाम की प्रार्थनाएं, सूर्य को अर्घ्य देना, दीये की लौ देखते हुए ध्यान – ये सब योग के ही प्रारंभिक रूप हैं। इससे बच्चों में अनुशासन, सहनशीलता और आत्म-नियंत्रण के गुण विकसित होते हैं।

आधुनिक विज्ञान की पुष्टि

आज योग को लेकर जो वैज्ञानिक रिसर्च हो रही हैं, वे बार-बार यह सिद्ध कर रही हैं कि योग से ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज, अस्थमा, पीठ दर्द, माइग्रेन, नींद की समस्याएं और यहां तक कि कैंसर की रिकवरी में भी लाभ मिलता है। WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) और दुनिया के बड़े मेडिकल संस्थान अब योग को एक ‘कॉम्प्लीमेंटरी थेरेपी’ मानते हैं।

Advertisement
Tags :
Advertisement