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साइबर गुलामी

07:07 AM Oct 01, 2024 IST

कुलांचें भरते शेयर बाजार व सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था के दावों के बीच एक स्याह सच यह है कि भारतीय युवा सुनहरे सपनों की आस में दुनिया भर में मारे-मारे फिर रहे हैं। उससे भी ज्यादा दुखद यह कि वे बिचौलियों, दलालों व अपराधियों की साजिश से मानव तस्करी और साइबर अपराधों का शिकार बन रहे हैं। सुनहरे सपने दिखाने वाले ऑनलाइन विज्ञापनों से सम्मोहित होकर हमारे युवा ऐसे आपराधिक जाल में फंस जाते हैं कि वहां से उनका देश लौटना भी संभव नहीं होता। हमारे देश की काली भेड़ें इस साजिश का हिस्सा होती हैं। भारत के हजारों युवा दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में फंसे हैं और साइबर अपराध करने वाले नियोक्ताओं के चंगुल में फंसकर अवैध गतिविधियों को संचालित करने को मजबूर हैं। यह तथ्य भी कम चिंताजनक नहीं है देश में साइबर अपराध में लिप्त लोग ही हमवतन लोगों को संदिग्ध क्रिप्टोकरेंसी योजनाओं में निवेश करने को लुभा रहे हैं। जनवरी 2022 से मई 2024 तक विजिटिंग वीजा पर कंबोडिया, थाइलैंड,म्यांमार और वियतनाम की यात्रा करने वाले 73000 भारतीयों में 30,000 अभी तक वापस स्वदेश नहीं लौटे हैं। इनमें से आधे से अधिक साइबर गुलाम 20 से 39 वर्ष आयु वर्ग के हैं। उल्लेखनीय है कि इन लापता युवाओं की राज्यवार सूची में पंजाब शीर्ष पर है। इसके बाद महाराष्ट्र और तमिलनाडु का आंकड़ा है। निश्चित तौर पर यह हमारे नीति-नियंताओं की विफलता है कि अपने बच्चों को देश में उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप रोजगार देने में विफल हैं। सौभाग्य से भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी मिली है मगर हम उन्हें उम्मीदों के अनुरूप काम नहीं दे पा रहे हैं। वहीं यह हमारी कानून व्यवस्था व खुफिया तंत्र की विफलता भी है कि हमारे बच्चे आसानी से साइबर अपराध करने वाले गिरोहों के चंगुल में फंस जाते हैं। हाल ही में कुछ भारतीय युवाओं को म्यांमार के साइबर अपराधियों के अड्डे से मुक्त कराया गया था। इस साजिश के खिलाफ व्यापक स्तर पर कार्रवाई करने की जरूरत है।
दरअसल, भारतीय युवाओं की अवैध रूप से भर्ती करने वाले एजेंट बड़ी चालाकी से युवाओं को अपने जाल में फंसाते हैं। भारतीय आईटी में दक्ष युवाओं को डेटा एंट्री व कॉल सेंटर ऑपरेटर पदों के लिये आकर्षक वेतन आदि की पेशकश की जाती है। एक बार जब ये युवा टूरिस्ट या अन्य वीजा के जरिये गंतव्य स्थल तक पहुंच जाते हैं तो उनके पासपोर्ट छीन लिए जाते हैं। उनके लिए भय व असुरक्षा के बीच वहीं रहकर काम करना एक मजबूरी बन जाती है। उन्हें वे अवैध काम करने पड़ते हैं जो उनके नियोक्ता चाहते हैं। इस मामले में निगरानी के लिये केंद्र सरकार द्वारा गठित अंतर-मंत्रालयी पैनल ने कथित तौर पर बैंकिंग, आव्रजन और दूरसंचार क्षेत्रों की खामियों की पहचान की है। इस खतरे से मुकाबले के लिये अंतर-विभागीय सहयोग व तालमेल समय की मांग है। साइबर अपराधों व इस तरह की धोखाधड़ी पर अंकुश लगाने के लिये केंद्रीय दूरसंचार मंत्रालय ने दो करोड़ अवैध मोबाइल फोन कनेक्शन काटने का निर्णय लिया है। दरअसल, ये मोबाइल कनेक्शन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर खरीदे गये थे। जिनका दुरुपयोग साइबर अपराधों को अंजाम देने के लिये किया जा रहा था। साइबर जालसाजों का दुस्साहस इतना बढ़ गया कि वे मशहूर उद्योगपति एसपी ओसवाल से सात करोड़ रुपये ठगने में कामयाब हो गए। ऐसे हालात में अपराध नियंत्रण हमारी प्राथमिकता होनी ही चाहिए, लेकिन इसके साथ ही इस संजाल की जड़ तक पहुंचने की कोशिश की जानी चाहिए ताकि साइबर अपराधी भोले-भाले लोगों को अपने जाल में न फंसा सकें। यहां सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब भारत दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था का तमगा हासिल किए हुए है तो हमारी युवा प्रतिभाएं अन्य विकासशील देशों में नौकरी करने को क्यों मजबूर हो रही हैं? ये हमारी मजबूत अर्थव्यवस्था वाली छवि के विपरीत है। यदि मौजूदा समय में हम अपने देश में कुशल युवाओं को उनकी जरूरतों व आकांक्षाओं के अनुरूप नौकरी देने में विफल रहते हैं तो विकसित भारत का लक्ष्य दूर की कौड़ी बनकर रह जाएगा।

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