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सोशल मीडिया डाटा संग्रहण से उपजी साइबर सुरक्षा चिंताएं

07:45 AM Apr 08, 2024 IST
सोशल मीडिया डाटा संग्रहण से उपजी साइबर सुरक्षा चिंताएं
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अतनु बिस्वास
मार्च माह में अमेरिकी संसद में एक कानून लाया गया है जिसकी वजह से टिक-टॉक ऐप की मूल मालिक, चीन की विशालकाय तकनीक कंपनी ‘बाईट-डांस’ को मजबूरन या तो अपनी सोशल मीडिया ऐप बेचनी पड़ जाएगी या फिर तमाम अमेरिकी डिवाइसेज पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ेगा। यह दर्शाता है कि तकनीक आधारित बड़ी कंपनियों को लेकर अमेरिकी कानून निर्माताओं के अंदर असहजता किस कदर है। जहां राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा है कि वे टिक-टॉक को बैन करने वाले कानून पर दस्तखत कर मंजूरी दे देंगे वहीं अभी यह पक्का नहीं है कि सीनेट में इस बिल का हश्र क्या होगा, और इससे बने प्रभाव न तो इतने सरल होंगे न ही सीधे।
अमेरिका में लगभग 17 करोड़ टिक-टॉक यूज़र्स हैं। इस ऐप पर प्रतिबंध लगने से करोड़ों लोगों के रोजगार पर असर पड़ेगा। न केवल कलाकारों को एक मंच से महरूम होना पड़ेगा बल्कि देशभर में रोचक वीडियो बनाने वाले करोड़ों लोगों का धंधा प्रभावित होगा। इससे भी आगे, जैसा कि डोनाल्ड ट्रंप का कयास है, फेसबुक के दबदबे में इजाफा होगा। हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय, जिसे एक वजह गिनाया जा रहा है, कहीं अधिक अहम है।
वर्ष 2020 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी टिक-टॉक और वी-चैट को गैर-कानूनी घोषित करने वाला प्रस्ताव लाये थे लेकिन अगले राष्ट्रपति बाइडेन ने वह निर्णय उलट दिया। विभिन्न देशों में सरकारों ने साइबर सिक्योरिटी और निजता संबंधी चिंताओं के कारण टिक-टॉक प्रतिबंधित कर रखा है। भारत ने भी 2020 में टिक-टॉक और वी-चैट सहित चीन की दर्जनों एप पर रोक लगा दी थी। मार्च, 2023 में, टिक-टॉक के सीईओ शाउ ज़ी चियु ने अमेरिकी संसदीय कमेटी के समक्ष हलफनामा दिया। सुरक्षा विशेषज्ञों को यकीन है कि अमेरिकी सरकार की चिंता मुख्यतः टिक-टॉक का उपयोग विदेशी जासूसी एजेंसियों द्वारा किए जाने की आशंका को लेकर है। अमेरिकी कानून-निर्माताओं की यह धारणा कायम है कि टिक-टॉक का संबंध चीन से होने की वजह से उनके देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को इससे गंभीर खतरा है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने यहां तक कहा कि टिक-टॉक बंद करना ही होगा।
साल 2020 में वाशिंगटन पोस्ट अखबार और एक निजी अनुसंधान कंपनी द्वारा करवाए साझे अध्ययन का निष्कर्ष था : लगता नहीं कि टिक-टॉक ऐप औसतन किसी अन्य सोशल मीडिया मंच से अधिक यूज़र्स डाटा इकट्ठा करती है। हालांकि यूआरएल जीनियस नामक मोबाइल मार्किटिंग कंपनी द्वारा 2022 में करवाए अध्ययन में बताया कि तमाम सोशल मीडिया एेप में, यूट्यूब व टिक-टॉक यूज़र्स डाटा पर अधिक निगाह रखते हैं। परंतु यदि टिक-टॉक के डाटा एकत्रण की तुलना फेसबुक या एक्स आदि से की जाए, तो वे भी बहुत अधिक सूचना संगृहीत करते हैं। इसमें वीडियो देखने वालों की विस्तृत जानकारी, उनके कमेंट, निजी मैसेज और यदि उन्होंने अनुमति दे रखी हो डाटा तक पहुंच का स्तर, उनकी सटीक जियो-लोकेशन और कॉन्टेक्ट लिस्ट इत्यादि से संबंधित जानकारी कंपनी इकट्ठा कर लेगी। इसके अलावा, टिक-टॉक की प्राइवेसी स्टेटमेंट के अनुसार, यूज़र्स डाटा जैसे ई-मेल एड्रेस, फोन नम्बर, आयु, सर्च एवं ब्राउसिंग हिस्ट्री, अपलोडेड इमेज और वीडियो संबंधी जानकारी और यदि उपभोक्ता ने स्वीकृति दे रखी हो तो उनके डिवाइस क्लिपबोर्ड की सामग्री तक पहुंच करके, एप्लीकेशन कंपनी उसको कॉपी-पेस्ट करने का अधिकार रखती है।
कई अध्ययनों के अनुसार, जिस वक्त उपभोक्ता टिक-टॉक का उपयोग न भी कर रहा हो तब भी वह उसकी ऑनलाइन गतिविधियों पर निगरानी रखती है। हालांकि टिक-टॉक कहना है कि वह इस जानकारी को अपने विज्ञापन व्यवसाय को विस्तार देने में बरतती है। न केवल टिक-टॉक बल्कि अन्य अनेक तकनीक आधारित बड़ी कंपनियां इसी किस्म के औजारों का उपयोग बड़े स्तर पर करती हैं। इसलिए टिक-टॉक तो आनलाइन निगरानी करने वाले इस व्यापक कार्पोरेट अर्थव्यवस्था तंत्र का महज एक पुर्जा है। जिन एप्लीकेशन्स का उपयोग हम करते हैं, उनमें कुछ हमारे बारे में जरूरत से ज्यादा निजी सूचना एकत्र करती हैं। मुख्यत: वे यूज़र्स डाटा का उपयोग अपने लिए करती हैं ताकि उपभोक्ता के रुझान के मुताबिक उसको संबंधित वस्तु या सेवा का विज्ञापन दिखाया जाए। कंपनियां हमारी तरजीहों, कमियों और अभिरुचियों के बारे में इस तरह सूचना इकट्ठा कर ब्राउसिंग व्यवहार को प्रभावित करती हैं कि अक्सर हमें पता तक नहीं चलता। कैम्ब्रिज एनालिटिका प्रसंग ने दिखा दिया कि कैसे व्यक्तिगत सूचना का दोहन करके मुख्य चुनाव के परिणामों तक को प्रभावित किया जा सकता है।
हालांकि, खुद एप्लीकेशन से कहीं अधिक चिंता टिक-टॉक की मिल्कियत और प्रबंधन नीतियों को लेकर है। डर है कि बाईट डांस और इसके विस्तारित अंग के तौर पर टिक-टॉक को चीनी सरकार मजबूर कर सकती है कि वह विभिन्न सुरक्षा गतिविधियों में सहयोग करे, इसमें शायद डाटा ट्रांसफर करना भी शामिल है, क्योंकि अपने अधिकार क्षेत्र में चीनी सरकार कंपनियों पर बहुत अधिक नियंत्रण रखती है।
एक चिंता यह भी है कि यदि टिक-टॉक के यूज़र्स डाटा तक चीन की सरकार की पहुंच हो जाए तो वह इसका इस्तेमाल जासूसी करने के लिए कर सकता है। अन्य फिक्र है कि चीनी सरकार टिक-टॉक को मजबूर कर सकती है कि उपभोक्ता की अभिरुचियों को कुछ इस तरह प्रभावित करे कि वह साइट पर वही देखने लगे, जो उसे दिखाना चाहते हैं। ऐसे में इसका असर अमेरिकी आम चुनाव के परिणामों, नीति-निर्धारण और लोकतांत्रिक बहसों पर काफी हो सकता है। सुरक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि भले ही यह कयास लगे, लेकिन टिक-टॉक की स्वामित्व संरचना और और चीनी कानून के चलते यह सच हो सकता है। हालांकि, फिलहाल ऐसा कोई सबूत नहीं कि चीन ने टिक-टॉक का व्यावसायिक डाटा हासिल कर इसका उपयोग जासूसी में किया हो। जैसा कि चियु का कहना है कि उनकी कंपनी चीनी सरकार द्वारा ऐसे किसी प्रयास को कभी नहीं मान सकती। हालांकि, वे अपने दावे पर कितना टिक पाएंगे, इसको लेकर भी फिक्र है। विशेषज्ञों का दावा है कि तमाम सोशल मीडिया मंचों पर भ्रामक सूचनाओं की भरमार है और निजता संबंधी चिंताएं एक समान हैं। अतएव केवल टिक-टॉक पर ध्यान केंद्रित करने से बृहद नजरिया बाधित हो सकता हैै। वास्तव में, सोशल मीडिया कंपनियों के बारे में माना जाता है कि वे तीसरे पक्ष को यूज़र्स डाटा बेच देती हैं। ऐसे में अमित्र विदेशियों के पास डाटा खरीदने-पाने के बहुत विकल्प बन जाते हैं।
बहुप्रचारित अमेरिकी कानून के बारे में विशेषज्ञों की भविष्यवाणी है कि यह कानून बनने से रुक जाएगा और यदि बन भी गया तो टिक-टॉक अदालत में केस दायर कर देगी। वहीं चीन के पास क्षमता है कि वह 2020 के तकनीक निर्यात कानून संशोधन के जरिये इस कदम पर रोक लगवा दे।
वर्ष 2018 में, अमेरिकी कानून निर्माताओं ने मार्क जुकरबर्ग से उनकी कंपनी द्वारा यूज़र्स डाटा का इस्तेमाल करने पर जवाबतलबी की थी, कैम्ब्रिज एनालिटिका के बारे में हैरानीजनक रहस्योद्घाटन के चलते यह करना पड़ा। तब जुकरबर्ग ने तंत्र में सुधारक उपाय लाने का शपथपत्र दाखिल किया था। उस वक्त, सीनेटर बिल नेलसन ने कहा : यदि ‘फेसबुक या कोई अन्य ऑनलाइन कंपनी इन निजता संबंधी अपने अतिक्रमणों को दुरुस्त नहीं करेगी तो हम करेंगे’। आज, छह साल बाद, क्या यह सही वक्त नहीं है आत्मनिरीक्षण करने का?

लेखक भारतीय सांख्यिकी संस्थान कोलकाता में प्रोफेसर हैं।

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