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स्वच्छता की संस्कृति

06:30 AM Oct 16, 2023 IST
स्वच्छता की संस्कृति
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जागरूक करें

स्वच्छता का अर्थ है स्वयं और पर्यावरण को हानिकारक तत्वों जैसे कीटाणुओं और गंदगी से मुक्ति देना। दरअसल, स्वच्छता को अपनाकर ही हम रोगों से मुक्ति पा सकते हैं व पर्यावरण शुद्ध रख सकते हैं। ऐसे में सरकार सार्वजनिक व गैर सरकारी संस्थाओं के जरिये गंदगी पर रोक लगाये। स्कूल-काॅलेजों में विद्यार्थियों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करें। स्वच्छता मिशन जन सहयोग से ही कामयाब होगा। वहीं अधिकाधिक पौधे लगाने चाहिए। सूखा व गीला कचरा अलग-अलग रखें। यह भी कि वर्ष 2022 के पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में भारत का स्थान अंतिम रहा जो चिंता का विषय है।
नैन्सी धीमान, अम्बाला शहर

जन भागीदारी

महात्मा गांधी की जयंती पर स्वच्छता पखवाड़े में लोगों का भरपूर सहयोग उत्साहित करने वाला रहा। लेकिन स्वच्छता के लिए सिर्फ एक दिन या पखवाड़ा काफी नहीं बल्कि साफ- सफाई दिनचर्या का अंग हो। इसके लिए सफाई कर्मियों का उत्साहवर्धन भी आवश्यक है। वहीं देश में कोई भी अभियान जनसहभागिता के बगैर सफल नहीं हो सकता। इसलिए सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देकर इसे जन अभियान का रूप देना होगा। सार्वजनिक स्थानों की सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी नगर निकाय की होती है लेकिन हमें कूड़ा-कर्कट न गिराकर नागरिक कर्तव्य का निर्वहन करना होगा। जब देश का हर नागरिक स्वच्छता के प्रति सजग रहेगा तभी देश स्वच्छ बन सकता है।
सोहन लाल गौड़, कैथल

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आदत बने

स्वच्छता सिर्फ शहर, गांव को ही सुंदर नहीं बनाती है बल्कि मन को भी आनंद देती है इसीलिए स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा द्वारा जागरूकता और इसके प्रभाव और महत्व को जनता के बीच फैलाना चाहिए। वहीं सहभागिता को प्रोत्साहित करना होगा, जनता को भी प्रशासन के साथ-साथ जोड़ना होगा, जो कचरा प्रबंधन में सहयोग दे। हर दिन कचरा गाड़ी हर गली में निकले और कचरा इकट्ठा करे। एक बार ये आदत हो जाए तो स्वच्छता की संस्कृति हर व्यक्ति के अवचेतन में हमेशा के लिए बैठ जाएगी।
भगवानदास छारिया, इंदौर

व्यापक सोच

गांधी जयंती से एक दिन पहले स्वच्छांजलि कार्यक्रम को पूरे देश में सकारात्मक प्रतिसाद मिला। निस्संदेह हमारे परिवेश में स्वच्छ हवा, पानी व भूमि का स्वच्छ होना हमें स्वस्थ बनाता है। लेकिन विडंबना है कि अधिकतर देशवासियों की सोच यही होती है कि मेरा घर तो साफ रहे और बाहर सड़क पर चाहे कुछ भी होता रहे। जरूरत इस बात की है कि हम अपने घर के साथ-साथ सार्वजनिक स्थल सड़के, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन सब स्वच्छ रखें। स्वच्छता हमारी सोच व संस्कृति में शामिल होनी चाहिए। देशवासियों को इसका अहसास होना चाहिए कि स्वस्थ जीवन हमारी स्वच्छता की प्रतिबद्धता पर निर्भर करता है।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली

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जागरूकता समितियां

स्वच्छांजलि कार्यक्रम के तहत प्रदेशों को सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता जागरूकता अभियान हेतु नई पंजीकृत स्थायी समितियां गठित करनी चाहिए। इस तरह की इकाइयों को सरकार की आर्थिक सहायता से स्वच्छता अभियान आंदोलन को अमली जामा पहनाने में भरपूर योगदान देना चाहिए। स्वच्छ भारत में स्वच्छता की संस्कृति अकेले किसी महान शख्सियत के हाथ में झाड़ू थमाने से नहीं, अपितु नरेगा जैसी योजनाओं के तहत जनता द्वारा ही झाड़ू हाथ में थामनेे से होगी।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

नजरिया बदलें

स्वच्छता की संस्कृति तभी विकसित होगी जब हम स्वच्छता के प्रति अपनी सोच स्वच्छ करेंगे। जब तक देश के सभी नागरिक स्वच्छता को अपना परम धर्म नहीं मानते, और देश के स्थानीय सत्ताधारियों और राजनेताओं के विचारों में लोकसेवा-देशसेवा-समाजसेवा की स्वच्छता नहीं आती, तब तक हमारे देश के शहरों और गांवों में भी गंदगी का आलम रहेगा। आज भी देश में बहुत से सार्वजनिक स्थानों पर भी कूड़ादान और बाथरूम नहीं हैं। स्वच्छ भारत का सपना तभी पूरा होगा जब आमजन और सत्ताधारी साफ-सफाई के लिए गंभीरता दिखाएंगे। स्वच्छ भारत के लिए जरूरी है कि शासन-प्रशासन आमजन को साफ-सफाई की मूलभूत सुविधाएं प्रदान करवाने में कोई कमी न छोड़े।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर

पुरस्कृत पत्र
स्वभाव में हो सफाई

स्वच्छता की संस्कृति का विकास स्वच्छता की अवधारणा को आत्मसात‍् किए बिना संभव नहीं। स्वच्छता चूंकि स्वस्थ परिवार और सामुदायिक विकास का प्रमुख संकेतक है, इसलिए इस समस्या पर समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से ही दृष्टिपात किया जाना आवश्यक है। स्वच्छता जब तक हमारा स्वभाव नहीं बन जाती, तब तक यह कोई प्रभाव भी नहीं छोड़ सकती। धार्मिक आयोजनों में भण्डारों के उपरांत भण्डार स्थल पर इधर-उधर फेंके गये डिस्पोज़ेबल गिलास और थर्मोकोल की थालियां स्वच्छता के प्रति हमारे सतही दृष्टिकोण का खुलासा करने के लिए पर्याप्त हैं। आंतरिक शुद्धि से संचालित क्रियाकलाप ही सही अर्थों में स्वच्छता के विकास को परिभाषित करेंगे।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल

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