मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

सिंधु दर्शन यात्रा का सांस्कृतिक पर्यटन घर

09:39 AM Jun 21, 2024 IST
Advertisement

धीरज बसाक
सिंधु नदी का तट भारत के अतीत की गौरव गाथा है। यहीं प्राचीन सिंधु नदी घाटी सभ्यता जन्मीं। मान्यता है कि यहीं वेद लिखे गये। यहीं रहस्यवादी प्राचीनतम बौद्धमठों की शृंखला निर्मित हुई। जी हां, हम हर साल बुद्ध पूर्णिमा के बाद तीन दिनों तक आयोजित होने वाले सिंधु दर्शन महोत्सव की सरजमीं की ही बात कर रहे हैं। इस साल यह सांस्कृतिक आयोजन 23 जून से 26 जून तक चलेगा। हर साल आयोजित होने वाले इस सांस्कृतिक कार्यक्रम को आधिकारिक तौर पर सिंधु दर्शन महोत्सव के नाम से जाना जाता है।
अगर आपके पास तीन दिन का समय है तो घूम आइये। यह सांस्कृतिक पर्यटन न सिर्फ आपके दिल-दिमाग को ताजगी से भर देगा बल्कि आपकी चेतना को तरोताजा कर देगी। आमतौर पर तीन दिन के इस टूर में 9 से 10 हजार रुपये प्रतिव्यक्ति का खर्च आता है।
इस सांस्कृतिक पर्यटन सिंधु दर्शन यात्रा की शुरुआत लेह आगमन से होती है। हिंदुस्तान के विभिन्न कोनों से लेह एयरपोर्ट जुड़ा हुआ है और जब आप सांस्कृतिक पर्यटक के रूप में लेह एयरपोर्ट पर पहुंचते हैं तो जिस टूर एंड ट्रैवल कंपनी ने आपका पैकेज बुक किया होता है, उसके प्रतिनिधि आपका लेह एयरपोर्ट पर स्वागत करते मिलते हैं। वे आपको होटल ले जाते हैं और फिर आपको होटल में पूरे दिन आराम करने के लिए छोड़ देते हैं ताकि आप लेह की ऊंचाई और जलवायु के हिसाब से खुद को ढाल लें। शाम की हाई टी के बाद आपको ट्रैवेल कंपनी का कोई प्रतिनिधि स्थानीय पहाड़ी की चोटी पर स्थित सफेद गुंबद वाले शांति स्तूप तक ले जाता है, वहां कुछ देर गुजारने के बाद तथा शांति और आध्यात्मिक वातावरण को फील करने के बाद आप उसके इर्दगिर्द के स्थानीय बाजार में अपनी पसंद की चीजें खरीदते हैं। यहां खरीदने के लिए प्रार्थना चक्र, कई तरह स्टोल, पश्मीना शॉल और तिब्बतीय हस्तशिल्प की अनेक प्रामाणिक वस्तुएं मिलती हैं।
दूसरे दिन जो कि वास्तव में सिंधु महोत्सव का मुख्य दिन होता है। सीधे सिंधु घाटी की ओर प्रस्थान करते हैं, जो हमें अपनी कल्पना और आध्यात्मिक यात्रा में हजारों साल पीछे सिंधु सभ्यता के पैदाइशी समय में ले जाते हैं, जहां भारतीय सभ्यता जन्म ले रही होती है। जहां हमारे ऋषि-मुनि भारतीय मेधा की अमिट छाप छोड़ने वाले वेदों का अध्ययन, मनन, चिंतन और लेखन कर रहे होते हैं। सांस्कृतिक पर्यटकों का यह पूरा दिन एक ट्रांस में गुजरता है।
तीसरे दिन के महोत्सव के लिए फिर से सिंधु नदी घाटी की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। आज भी उसी रोमांच और सांस्कृतिक गहमागहमी का हिस्सा रहते हैं, जहां एक दिन पहले हिस्सा बने थे। आज का भी पूरा दिन सिंधु के तट पर दूर तक चहलकदमी के साथ सांस्कृतिक रिमझिम में डूबते उतराते हैं।
चौथे दिन लौटने की तैयारी करते हैं। लेह एयरपोर्ट पहुंचते हैं और मुड़कर फिर से दोबारा लौटने का यहां के लोगों और जीवंत स्थलों से वादा करते हैं। अगर तीन दिन के औपचारिक महोत्सव के अलावा दस दिन के वृहद सांस्कृतिक पर्यटन टूर पर आये होते हैं या सात दिन के इकोनॉमी टूर पर विस्तार से लद्दाख को एक्सप्लोर करने आये होते हैं तो चौथे दिन की सुबह फिर से नये रोमांच की तरफ कूच करते हैं। कुल मिलाकर यह सिंधु दर्शन यात्रा का सांस्कृतिक पर्यटन घर पहुंचने पर आपको अहसास दिलाता है कि आपमें बहुत कुछ जुड़ चुका है। इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

Advertisement
Advertisement
Advertisement