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फलस्तीनियों के पक्ष में सांस्कृतिक प्रतिरोध

07:56 AM Feb 24, 2024 IST

पुष्परंजन

इस बार भारतीय-अमेरिकी फिल्म निर्माता सुनील संजगिरी ने बर्लिन में चल रहे 74वें फिल्म महोत्सव ‘बर्लिनाले’ का बहिष्कार कर दिया। 15 से 25 फरवरी, 2024 तक आयोजित ‘बर्लिनाले’ में संजगिरी गोवा की पृष्ठभूमि पर आधारित पुर्तगाली साम्राज्य के खिलाफ उपनिवेशवाद-विरोधी प्रतिरोध के बारे में अपनी फिल्म प्रदर्शित करने के लिए आये हुए थे, लेकिन बर्लिनाले का माहौल देखकर उन्हें लगा कि प्रीमियर ऐसे असहज वातावरण में न ही करायें तो बेहतर। संजगिरी की फ़िल्म पुर्तगाली उपनिवेशवाद के खिलाफ भारत और अफ्रीका में साझा संघर्ष की कहानियां उकेरती हैं, जो 1960 से सत्तर के दशक में दोनों महाद्वीपों के बीच विकसित हुई एकजुटता को उजागर करती है।
इंस्टाग्राम पर संजगिरी ने जर्मन अधिकारियों पर गाजा में युद्ध में फलस्तीनियों के समर्थन बोलने वाली आवाजों को चुप कराने का आरोप लगाया। इंस्टा पर सुनील संजगिरी का संदेश था, ‘मैं सहभागी नहीं बनूंगा। यहां सभी के हाथ खून से सने हैं।’ लेकिन एक्टर मनोज वाजपेयी, ‘सबसे भले वो मूढ़ जिन्हें न व्यापे जगत गति’ की मुद्रा में अपनी फ़िल्म ‘द फेबल’ की स्क्रीनिंग में व्यस्त दिखे। बर्लिनाले फिल्म फेस्टिवल मैंने लगातार पांच साल कवर किये। दो कैटेगरी के फ़िल्मकार व कलाकार यहां जुटते हैं, एक जिन्हें ग्लैमर वर्ल्ड और बॉक्स आफिस में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करानी होती है, और दूसरे वो लोग जो दुनिया में दमन-उत्पीड़न व भेदभाव से सरोकार रखते हुए प्रतिरोध जताते हैं।
बर्लिन बहिष्कार की घोषणा करते हुए संजगिरी ने ‘स्ट्राइक जर्मनी’ अभियान को समर्थन व्यक्त किया, जो जनवरी में गुमनाम कलाकारों द्वारा शुरू की गई एक पहल थी, जिसमें फिल्म निर्माताओं, संगीतकारों, लेखकों और कलाकारों से जर्मनी में सांस्कृतिक कार्यक्रमों से दूर रहने का आह्वान किया गया था। आयोजकों ने लिखा, ‘यह जर्मन सांस्कृतिक संस्थानों द्वारा मैककार्थीवादी नीतियों के उपयोग को अस्वीकार करने का आह्वान है जो विचारों की स्वतंत्रता, विशेष रूप से फलस्तीन के साथ एकजुटता की अभिव्यक्ति को दबाते हैं।’
बर्लिनाले में भी लगभग 1,600 कलाकारों ने ‘स्ट्राइक’ के समर्थन में साइन अप किया है, जिसमें फ्रांसीसी नोबेल पुरस्कार विजेता एनी एर्नाक्स भी शामिल हैं। पिछले महीने, बर्लिन के सीटीएम संगीत समारोह ने ‘स्ट्राइक जर्मनी’ के साथ एकजुटता दिखाते हुए कई कलाकारों की वापसी की घोषणा की। आलोचकों का कहना है कि सरकार ने इस्राइल की किसी भी आलोचना को रोकने के लिए अपनी वित्तीय शक्ति का इस्तेमाल किया है। लेकिन जर्मन सरकार ने इन आरोपों को दृढ़ता से खारिज कर चुकी है। जर्मन संस्कृति मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘कला की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी जर्मनी में लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों में से एक है जो निश्चित रूप से संघीय सरकार द्वारा संरक्षित है।’
गत 7 अक्तूबर, 2023 को हमास अतिवादियों के हमले के बाद से यूरोपभर में यहूदी समर्थक बनाम यहूदी विरोधी विवाद भड़क उठे हैं। यूरोपीय ब्रॉडकास्टिंग यूनियन ने इस्राइल को यूरोविजन सांग प्रतियोगिता से बाहर करने की मांग का विरोध किया है। अक्तूबर, 2023 में एक फलस्तीनी लेखक का पुरस्कार स्थगित होने के बाद सैकड़ों अंतर्राष्ट्रीय लेखकों ने फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले की निंदा की। नवंबर में, यूरोप की सबसे महत्वपूर्ण कला प्रदर्शनियों में से एक, ‘डॉक्यूमेंटा’ की पूरी चयन समिति ने इस्राइल-हमास संघर्ष पर विवादों के बाद इस्तीफा दे दिया।
यह दीगर और दिलचस्प है कि सुनील संजगिरी के बहिष्कार से ज़्यादातर भारतीय फ़िल्मकारों ने दूरी बनाये रखी है। बर्लिन स्थित भारतीय दूतावास भी इस विवाद में पड़ना नहीं चाहता। जर्मनी में भारत के राजदूत हरीश पर्वथानेनी ने ‘2024-बर्लिनाले में इंडिया पवेलियन’ का उद्घाटन किया। उनके साथ मनोज बाजपेयी, यूरोपीय फिल्म मार्केट के निदेशक डेनिस रुह और टैगोर सेंटर की निदेशक तृषा सकलेचा भी मौजूद थीं। मनोज बाजपेयी ने एक्स पर इवेंट की कुछ तस्वीरें साझा कीं और लिखा, ‘सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सिनेमाई सहयोग को बढ़ावा देने वाले जर्मनी में भारत के राजदूत हरीश पर्वथानेनी के साथ बर्लिन में इंडिया पवेलियन में उद्घाटन समारोह का हिस्सा बनकर सम्मानित महसूस कर रहा हूं।’
गाज़ा हमले के हवाले से फरवरी के शुरू में इतालवी शहर नेपल्स में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जब सरकारी प्रसारक ‘आरएआई’ ने लोकप्रिय सैनरेमो संगीत समारोह की समापन के दौरान रैपर घाली द्वारा ‘नरसंहार को रोकने’ की अपील से खुद को दूर कर लिया। ब्रिटेन में, कलाकारों का एक नेटवर्क उन घटनाओं का दस्तावेज़ तैयार कर रहा है, जो कलाकारों के फलस्तीन समर्थक विचारों के कारण बहिष्कृत कर दी गई थीं। ब्रिस्टल में अर्नोल्फिनी आर्ट गैलरी ने भी दो फलस्तीनी फिल्म कार्यक्रमों को रद्द करने के बाद प्रतिक्रिया व्यक्त की, कि यह ग़लत हो रहा है। नवंबर, 2023 में फ्रांसीसी कलाकारों के एक समूह ने एक ‘मूक मार्च’ का आयोजन किया, जहां उन्होंने बिना किसी नारे के एक सफेद बैनर लगा रखा था। पिछले महीने, बर्लिन के सीटीएम संगीत समारोह ने ‘स्ट्राइक’ जर्मनी के साथ एकजुटता दिखाते हुए कई कलाकारों को वापस बुला लेने की घोषणा की।
शाई हॉफमैन इस्राइली-जर्मन यहूदी है, और योआन्ना हसन जर्मन-फलस्तीनी। 7 अक्तूबर, 2023 को इस्राइल में हमास द्वारा और उसके प्रकारांतर गाज़ा में इस्राइली हमले के बाद, हॉफमैन ने ‘टिनी स्पेस प्रोजेक्ट’ लॉन्च किया। एक छोटे से चलते-फिरते वाहन में उसका ऑफिस बनाया, जो लगभग तीन-चार लोगों के लिए उपयुक्त था। उस वाहन को बर्लिन के आसपास पॉप-अप स्थानों पर ले जाया गया, जहां मिडिल ईस्ट पर चर्चा की मेजबानी की गई। ये लोग बर्लिनाले इंवेंट में भी अपने केबिन के साथ उपस्थित हैं, और फ़िल्मकारों से गाज़ा युद्ध जैसे विषय पर बहस की अपील करते दिखते हैं।
यूरोप के तीन प्रमुख फिल्म महोत्सवों में सबसे युवा, ‘बर्लिनाले’ की स्थापना 1932 में वेनिस फिल्म महोत्सव और 1946 में काॅन्स फिल्म महोत्सव के बाद 1951 में की गई थी। शुरुआत 6 जून, 1951 को जोन फोंटेन और गैरी ग्रांट अभिनीत अल्फ्रेड हिचकॉक की रेबेका से हुई थी। पश्चिम बर्लिन के टाइटेनिया-पालास्त सिनेमा में पहला फ़िल्मोत्सव हुआ था। नाम था बर्लिनाले। कम ही लोग जानते हैं कि जर्मन फिल्म महोत्सव ‘बर्लिनाले’ अमेरिकी प्रयासों से शुरू हुआ था। ऑस्कर मार्टे (1920-1995) बर्लिन में अमेरिकी सेना में एक ‘फिल्म अधिकारी’ थे। उनके सुझाव पर ही बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की स्थापना के लिए 9 अक्तूबर, 1950 को एक समिति की बैठक हुई। मार्टे 1951 में बर्लिनाले के प्रसिद्ध गोल्डन बियर पुरस्कार के पहले प्राप्तकर्ताओं में से एक थे। सेना छोड़ने के बाद मार्टे जर्मनी में रहकर फिल्म निर्माण करने लगे। उन्होंने 1955 में जर्मन अभिनेत्री रेनेट बार्केन से शादी की। बहरहाल, बर्लिनाले कभी अमेरिकी प्रभाव से मुक्त नहीं हुआ। इसलिए इस समय जो कुछ चल रहा है, उसने बर्लिनाले की साख़ पर एक बार फ़िर से सवाल खड़ा किया है।

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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