सहजता की साधना
महर्षि उद्दालक निर्विकल्प समाधि में जाने को बहुत उत्सुक थे, लेकिन वे जा नहीं पाए, क्योंकि निर्विकल्प समाधि में जाया जा सकता है अप्रयास द्वारा और वे उसके लिए प्रयास कर रहे थे। दूसरे शब्दों में वे उल्टी गति में जा रहे थे, इसलिए प्रयत्न करते-करते थक गए। तब उन्होंने अनशन करने की बात सोची और एक वृक्ष के नीचे बैठकर अनशन करने लगे। उसी वृक्ष पर बैठे एक तोते ने महर्षि से पूछा, ‘आप यह क्या कर रहे हैं?’ महर्षि ने उत्तर दिया, ‘शरीर छोड़ने के लिए अनशन कर रहा हूं।’ तोता बोला, ‘जो स्वयं छूटने वाला है, उसे आप क्या छोड़ेंगे। जो मरणशील है, उसे आप क्या मारेंगे। आपका शौर्य तभी दिखाई पड़ेगा जब आप अमृत द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्त करेंगे।’ महर्षि की आंखें खुल गईं। उन्होंने अमृत तत्व की तरफ ध्यान केन्द्रित किया और निर्विकल्प समाधि की ओर अग्रसर हो गए।
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी