मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

राष्ट्र के लिए धर्मयुद्ध

06:54 AM Dec 09, 2023 IST

गांव नवादा (शाहजहांपुर) के ठाकुर रोशन सिंह छह फुटे लंबे और बलिष्ठ देह के धनी थे। क्रांतिकारी युवाओं का साहस देखकर वे क्रांतिकारी बने थे। काकोरी ट्रेन डकैती में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। फांसी से छह दिन पहले उन्होंने अपने एक मित्र को यह पत्र लिखा था, ‘इसी हफ्ते मुझे फांसी होगी, आप मेरे लिए रत्तीभर रंज न करें। दुनिया में पैदा होकर सबको मरना है। यहां रहते हुए आदमी अपने को बदनाम न करें और मरते वक्त उसे ईश्वर की याद रहे। प्रभु कृपा से मेरे साथ ये दोनों बातें हैं। फलत: मेरी मौत अफसोस के लायक नहीं है। दो साल बच्चों से अलग रहने के कारण जेल में मुझे ईश्वर भजन का खूब मौका मिला। मोह समेत मेरी सारी इच्छाएं तिरोहित हो गई। हमारे शास्त्रों में लिखा है, जो आदमी धर्मयुद्ध में प्राण देता है उसकी वही गति होती है, जो वन में तपस्या करने वालों की। ‘जिंदगी जिंदादिली को जान ऐ रोशन, वरना कितने मरे और पैदा होते जाते हैं।’ आखिरी नमस्ते। 19 दिसंबर, 1927 को ज्यों ही जेलर का बुलावा आया, वे गीता हाथ में लेकर मुस्कुराते हुए चल पड़े। तख्त पर चढ़ते ही उन्होंने वंदे मातरम‍् का नाद और प्रभु का स्मरण किया तथा फांसी पर झूल गए।

Advertisement

प्रस्तुति : राजकिशन नैन

Advertisement
Advertisement