पढ़ने की उम्र में जुर्म
हिसार में सहपाठी द्वारा प्रतिशोध में कक्षा दस के एक छात्र की गोली मारकर की गई हत्या ने हर संवेदनशील व्यक्ति को झकझोरा है। एक साल पहले स्कूल में डेस्क पर बैठने को लेकर विवाद की खुंदक आरोपी छात्र अपने दिमाग में पालता-पोसता रहा। फिर एक दिन सहपाठी को सुबह मिलने के बहाने बुलाया और अपने दादा के हथियार से गोली मारकर हत्या कर दी। घटना बेहद दुखद है और हर मां-बाप के लिये बेहद चिंता का विषय कि उनके बच्चे का सहपाठी भी इतना खूंखार हो सकता है। हमारे जिस समाज की प्यार, सामंजस्य व सहयोग के लिये मिसाल दी जाती थी, उसमें ये किशोर आखिर ऐसा भयानक कदम कैसे उठा रहे हैं? जिस उम्र में किशोरों को पढ़ना-लिखना था, उस समय में वे हिंसक गतिविधियों में क्यों लिप्त हो रहे हैं? दोषी तो आरोपी छात्र के अभिभावक भी हैं कि जिन्होंने घातक हथियार को लापरवाही से घर में छोड़ा, जिससे आरोपी ने हत्या को अंजाम दिया। बताते हैं कि आरोपी छात्र के दादा सेना से सेवानिवृत्त हैं और एक बैंक में सुरक्षा गार्ड हैं। कितनी दुर्भाग्यपूर्ण घटना है कि मृतक छात्र अपने परिवार में इकलौता था और अपने परिवार को हमेशा के लिये रोता-बिलखता छोड़ गया। एक समय अमेरिका व यूरोप में ऐसी घटनाएं सुनने में आती थी। अब ये किशोर अपराध हमारे दरवाजों पर भी दस्तक देने लगे हैं। समाज में व्याप्त नकारात्मकता व हिंसक प्रवृत्ति का किशोरों द्वारा अनुकरण करना हमारे समाज के लिये खतरे की घंटी ही है।
बीते मार्च में दिल्ली के वजीराबाद इलाके में एक छात्र की ऐसी ही निर्मम हत्या हुई थी। वजीराबाद की घटना में एक नौवीं के छात्र का अपहरण करके उसके परिजनों से दस लाख की फिरौती मांगी गई थी। छात्र की हत्या के बाद जांच में पता चला कि उसके अपहरण व हत्या में तीन किशोर संलिप्त थे। आए दिन स्कूल-कालेज विवाद में हिंसक घटनाएं हमें परेशान करती हैं। यदि कम उम्र के बच्चों व किशोरों में बढ़ती हिंसक प्रतिशोध की प्रवृत्ति पर लगाम न लगी तो डर लगता है कि आने वाले समय में हमारे समाज का स्वरूप कैसे होगा। सवाल यह है कि आखिर किशोरों में आपराधिक प्रवृत्तियां क्यों पनप रही हैं। आखिर उन्हें मां-बाप का संघर्ष क्यों नहीं दिखायी देता कि वे कैसे उन्हें पाल-पोस व पढ़ा-लिखा रहे हैं? समाज विचार करे कि वे कौन से कारक हैं जो बच्चों को आपराधिक प्रवृत्ति का बना रहे हैं। उनके द्वारा ऐसे जघन्य अपराध को अंजाम देने के लिये जिम्मेदार प्रवृत्ति का स्रोत क्या है? ऐसे बच्चों में कानून का भय क्यों नहीं है? कभी लगता है कि हमारे जीवन का हिस्सा बने तकनीकी साधन बच्चों के विवेक पर आक्रमण कर रहे हैं। जिससे उनमें सही-गलत की सोच की प्रक्रिया बाधित हो रही है। कहा जा रहा है कि फिल्म, वेब सीरीज तथा इंटरनेट में व्याप्त आपराधिक कार्यक्रम उन्हें हिंसक बना रहे हैं। जिससे वे बेलगाम सपनों के संजाल में भी फंसते हैं, जिन्हें पूरा करने को वे हिंसक राह पर उतर जाते हैं।