ईश्वर को श्रेय
आचार्य विनोबा भावे जी की मां, अन्य महिलाओं की भांति दूध में जामण लगा कर दूध जमाती थी और साथ में राम का नाम लेती रहती थी। विनोबा जब बड़े हुए तो एक दिन उन्होंने अपनी मां से पूछा, ‘मां, ये बता दूध जामण से जमता है या राम का नाम लेने से या फिर दोनों से? यदि दूध जामण से जमता है तो ईश्वर का नाम लेने की क्या जरूरत और अगर ईश्वर के नाम से जमता है तो जामण लगाना बंद करो।’ मां हंसकर बोली, ‘बेटे! जामण लगाने से ही दूध का दही बनता है। पर प्रभु का स्मरण इसलिए करती हूं कि जब सुबह अच्छा दही जम जायेगी तो मेरे मन में यह गर्व न आ जाये कि इसे मैंने जमाया है। ईश्वरीय आस्था मेरे इस कर्तापने और गर्व के भाव को नष्ट करती है कि काम मैंने किया। फलतः ईश्वर के प्रति मेरी अपार श्रद्धा है। ईश-इच्छा महान् है। इसीलिए हमें सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, परमपिता कृपालु ईश्वर का आश्रय लेकर कार्य करना चाहिए।’
प्रस्तुति : राजकिशन नैन