जज्बे की जिज्ञासा जगाती रचनाएं
अमृतलाल मदान
भूतपूर्व सैन्य अधिकारी राघवेंद्र सैनी के इस चौथे कहानी संग्रह में कुल पंद्रह कहानियां संगृहीत हैं। कथ्य एवं शिल्प की दृष्टि से यदि इन्हें अनुभवगत संस्मरण कहा जाए तो बेहतर होगा। फिर भी लीक से हट कर ये ‘कहानियां’ पाठकों को बांधे रखने में पूर्णतया सक्षम हैं। कारण यह कि हम आम सिविल पाठकों को सैनिकों के जीवन के बारे बहुत कम जानकारी होती है। इस संग्रह की अधिकतर रचनाएं इन जिज्ञासाओं को जगाती हैं। खासतौर पर वहां सेवारत महिला अधिकारियों के विषय में।
इस संदर्भ में दो कहानियां ‘लेफ्टिनेंट सोना कुमारी’ और ‘कैप्टन नीरजा गुप्ता’ सेना में पुरुष वर्चस्व को चुनौती देती प्रतीत होती हैं। मोटे तौर पर अन्य कहानियों को दो विरोधाभासी पक्षों में बांटा जा सकता है। एक ओर हमारी सेना की कर्मठ कर्तव्य परायणता, अनुशासन प्रियता, सुदीर्घ परम्पराएं, सिविल दुर्घटनाओं के समय सहायता की संवेदनशील पेशकश, हर प्रकार की भौगोलिक व युद्धगत कठिनाइयों में ढल जाने का माद्दा, देश की सुरक्षा में प्राण उत्सर्ग करने का अदम्य साहस आदि सकारात्मक पहलू उभरते हैं।
दूसरी ओर मोर्चों पर डटे जवानों के गांवों-कस्बों में बुरे हालात, पत्नी व बच्चों संग परिजनों का दुर्व्यवहार, मकान-ज़मीन को लेकर बेईमानी, एकाकीपन, ड्यूटी की जगह घर से बहुत दूर दुर्गम क्षेत्रों में होना, संकट समय लंबी यात्राओं की मुश्किलें आदि कितने ही पहलू भी हैं।
कहीं-कहीं छुट्टी के दौरान पति-पत्नी का प्यार, युवावास्था में पहला आकर्षण के प्रसंग रोचक बन पड़े हैं तो दाम्पत्य के झगड़े, गलतफहमियां तथा अंत में कोविड महामारी में देखे गए अमानवीय व्यवहार दुखी करते हैं। किंतु अपनी सेना पर गर्व का भाव अंत तक बना रहता है। पुस्तक का प्रकाशन साफ-सुथरा और त्रुटिहीन तथा आवरण चित्र आकर्षक है।
पुस्तक : चुनौतियां लेखक : राघवेंद्र सैनी प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 160 मूल्य : रु. 450.