पर्यटकों की सुविधा के लिए विश्वसनीय माहौल बने
भारत प्रगति की राह पर है, ऐसा हमारे नीति-नियंताओं का कहना है। बेशक बहुत कमाई देने वाले क्षेत्रों में देश का पर्यटन क्षेत्र भी शामिल है। हमारे देश के पर्यटन के तीन हिस्सों में धार्मिक पर्यटन महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही है चिकित्सा पर्यटन। दुनिया में चिकित्सा महंगी होती जा रही है और गंभीर उपचार के लिए भी प्रतीक्षारत होना पड़ता है। भारत में चले आओ तो उपचार सस्ता है। विशेषज्ञ डाक्टर हमारे विश्वस्तर के अस्पतालों में हाजिर हैं। अंत में भारत जैसी सुंदर धरा पर समुद्र, पहाड़ और खुले हरित मैदानों और ऐतिहासिक स्थलों का वो पर्यटन आकर्षण खुला है कि इसको जितना भी प्रोत्साहित किया जाए, उतना ही विश्व भर के पर्यटकों के लिए कम होगा।
दरअसल, यूरोप के बहुत से शहर तो ओवर टूरिज्म से जूझ रहे हैं। नीदरलैंड ने ब्रिटिश पर्यटकों के खिलाफ एक वीडियो कैम्पेन शुरू किया है, नाम था स्टे अवे। कहा कि 18 से 35 वर्ष तक के ब्रिटिश पुरुष यहां न आएं। एमस्टरडम के केन्द्र से चलने वाला क्रूज पर्यटकों का बहुत बड़ा आकर्षण है। जिस पर अंकुश लगाया जा रहा है। नये होटल नहीं बनाए जा रहे और कह दिया कि दो करोड़ से ज्यादा पर्यटक यहां न आएं जबकि कोविड से पहले अढ़ाई करोड़ पर्यटक नीदरलैंड में आते थे।
इटली का वेनिस शहर भी पर्यटकों का प्रिय स्थल है। यहां शहर की मशहूर सड़कों पर घूमने के लिए पांच यूरो तक की फीस लगा दी गई है। त्योहार हैं तो भी फीस देनी होगी। हां, जो लोग वेनिस में किसी काम या अपने रिश्तेदारों से मिलने आए हैं, उनसे फीस नहीं ली जाएगी। उधर ग्रीस और फिलीपीन्स भी देश में ओवर टूरिज्म से परेशान हैं। वर्ष 2023 के पहले पांच महीनों के दौरान शहर में 46 प्रतिशत ज्यादा पर्यटक आ गए। ये क्रोएशिया में भी हुआ। ग्रीस ने एथेंस में भी 20 हजार पर्यटकों के आने की सीमा बांध दी । पेरिस में पिछले साल 80 लाख पर्यटक चले आए। विश्व प्रसिद्ध कृति मोनालिसा की एक झलक पाने के लिए धक्कामुक्की करने लगे। वहां भी 30 हजार पर्यटकों तक सीमा बांध दी गई है।
पिछले दिनों मोदी सरकार ने घोषणा की है कि देश की आयात आधारित अर्थव्यवस्था को निर्यात केंद्रित अर्थव्यवस्था बना दिया जाएगा। आंकड़े बताते हैं कि देश पेट्रोलियम और डीजल का 85 प्रतिशत आयात भारत करता है और हमारे फार्मा उद्योग का अधिकांश कच्चा माल चीन से आता है। ऐसे देश में बिगड़ती अर्थव्यवस्था को संभालने का एक ही रास्ता है कि अधिक पर्यटकों को अपने देश में आकर्षित करें।
लेकिन इसकी एक दूसरी तस्वीर भी है। हिमाचल और उत्तराखंड की ओर पर्यटक जाने लगे तो वहां पर प्राकृतिक कोप हमसे संभाला नहीं जा रहा। कुल्लू में बादल फटते हैं, शिमला के राजमार्ग तक भूस्खलन के कारण कई-कई दिन तक रुक जाता है। आजकल सड़कों को चारमार्गीय करने के उत्साह में कुल्लू-मंडी का रास्ता दो दिन में एक बार खुलता है। एक बार आने के लिए, एक बार जाने के लिए। भक्तों की कितनी भीड़ होशियारपुर के मार्ग से पवित्र माताओं के दर्शन करने के लिए जाती है लेकिन रास्ता वही टूटा-फूटा और उपेक्षित। पर्यटन के लिए भीड़ की कमी नहीं है।
वहीं दूसरी ओर दुनियाभर के बीमारों के लिए भारत के उपचार गृह बहुत बड़ा आकर्षण रखते हैं। इनमें दुनिया के मशहूर डाक्टर काम करते हैं और ये इलाज किफायती भी हैं। लेकिन इन स्थानों के बारे में जागृति को प्रशासन ही पैदा करेगा। पहली प्राथमिकता अगर देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों की सुविधा के लिए दी जाए तो निश्चय ही देश में एक ऐसी पर्यटन संस्कृति पनपेगी जो दूसरे महायुद्ध के बाद हमने यूरोप और अन्य पश्चिमी देशों में देखी थी। तब तो अस्तित्ववाद के प्रभाव से एक बोहेमियन संस्कृति का जन्म हो गया था। नौजवान ऐसे देशों, जिनमें भारत, जापान और चंद अन्य एशियाई देश प्रमुख थे, में आध्यात्मिक शांति के लिए चले आ रहे थे। प्रश्न पैदा होता है कि क्या भारत में हमने इन पर्यटकों के लिए सब सुविधाएं दी हैं? सड़कें अधूरी और पर्यटन स्थलों पर बने हुए आश्रय स्थलों में ठहरने की उचित सुविधा नहीं। अभी पहाड़ी इलाकों में स्टे होम की नई परम्परा बनी है।
दरअसल, पर्यटन के लिए एक घुमक्कड़ प्रवृत्ति भी तो होनी चाहिए। एक यायावर संस्कृति भी तो होनी चाहिए। इसका विकास तो हम देश में कर ही नहीं सके। जरूरत है दूरदृष्टि के साथ पर्यटकों को ठगने की मनोवृत्ति को दरकिनार करने की। भारत के पर्यटन स्थलों में जितना पर्यटकों के लिए ईमानदारी, विश्वसनीयता और सुविधा का माहौल पैदा होगा, उतने ही ज्यादा पर्यटक अधिक आएंगे। इससे लोगों को रोजगार मिलेगा। भूख, बेकारी और बीमारी से मुक्ति मिलेगी। इसलिए जरूरत है उभरते भारत में पर्यटन क्षेत्र के उचित विकास की।
लेखक साहित्यकार हैं।