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बेटियों के लिए बनाएं भय मुक्त समाज

06:18 AM Jan 24, 2024 IST
बेटियों के लिए बनाएं भय मुक्त समाज
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योगेश कुमार गोयल

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देश की बालिकाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने तथा समाज में उनके साथ होने वाले भेदभाव के खिलाफ देशवासियों को भी जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 24 जनवरी को ‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ मनाया जाता है। बेटियों के साथ परिवार में होने वाले भेदभाव के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए देश की आजादी के बाद से ही प्रयास होते रहे हैं। एक समय में अधिसंख्य परिवारों में बेटी को परिवार पर बोझ समझा जाता था। यहां तक कि बहुत-सी जगहों पर तो बेटियों को जन्म लेने से पहले कोख में ही मार दिया जाता था। यही कारण था कि बहुत लंबे अरसे तक कई राज्यों में लिंगानुपात गड़बड़ाया रहा। यदि बेटी का जन्म हो भी जाता था तो उसका बाल-विवाह कराकर उसकी जिम्मेदारी से मुक्ति पाने की सोच समाज में बनी हुई थी। आजादी के बाद से बेटियों के प्रति समाज की इस सोच को बदलने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेक योजनाएं बनाई गईं और कानून लागू किए गए। आज बालिकाएं भी हर क्षेत्र में राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। अब तो वे सेना में भी बढ़-चढ़कर अपना पराक्रम दिखा रही हैं।
पहली बार साल 24 जनवरी, 2009 को देश में राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया गया। यह दिवस मनाये जाने की शुरुआत के पीछे प्रमुख कारण यही था कि वर्ष 1966 में इसी दिन ‘आयरन लेडी’ के रूप में इंदिरा गांधी भारत की पहली प्रधानमंत्री बनी थी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य भारत की बालिकाओं को सहायता और अवसर प्रदान करते हुए उनके सशक्तीकरण के लिए उचित प्रयास करना है। यूनिसेफ के मुताबिक प्रत्येक लड़की को सुरक्षित, स्वस्थ और शिक्षित बचपन का अधिकार है।
भारत में आजादी के बाद से ही सरकारों ने बालिकाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए निरन्तर कदम उठाए हैं। समाज में लड़का-लड़की के भेदभाव को खत्म करने के उद्देश्य से ही बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, लड़कियों के लिए मुफ्त अथवा रियायती शिक्षा, कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में महिलाओं के लिए आरक्षण जैसे अनेक अभियान और कार्यक्रम शुरू किए गए। आज हर क्षेत्र में बालिकाओं को बराबर का हक दिया जाता है लेकिन फिर भी समाज में उनकी सुरक्षा के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। भले ही बालिकाओं के साथ होने वाले अपराधों के खिलाफ कई कानून बनाए जा चुके हैं और ‘सेव द गर्ल चाइल्ड’ जैसे अभियान चलाए जा रहे हैं, फिर भी समाज में बालिकाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का सिलसिला लगातार बढ़ रहा है।
बालिका दिवस मनाने का मूल उद्देश्य यही है कि बालिकाओं के लिए एक ऐसा समाज बनाया जाए, जहां उनके कल्याण की ही बात हो। लेकिन जिस प्रकार देशभर में बच्चियों और किशोरियों के साथ छेड़खानी, दुर्व्यवहार तथा बलात्कार के मामलों में निरन्तर बढ़ोतरी हो रही है, ऐसे में काफी चिंताजनक तस्वीर उभरती है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2013 से 2017 के बीच दुनियाभर में लिंग चयन के जरिये 14.2 करोड़ को जन्म लेने से पहले ही कोख में मार दिया गया, जिनमें 4.6 करोड़ ऐसी भ्रूण हत्याएं कड़े कानूनों के बावजूद भारत में हुई थीं। हालांकि लिंगानुपात के मामले में स्थिति में कुछ सुधार अवश्य हुआ है लेकिन स्थिति संतोषजनक नहीं है।
ऐसा नहीं है कि आजादी के बाद से बालिकाओं की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है बल्कि वे हर क्षेत्र में अपनी सशक्त भागीदारी निभाती दिख रही हैं। यह भी सच है कि उन्हें स्वयं को साबित करने के लिए ज्यादा संघर्ष का सामना करना पड़ता है। एनसीआरबी के मुताबिक बालिका दिवस शुरू करने के बाद वर्ष 2009 में महिलाओं के प्रति अत्याचारों में 4.05 फीसदी, 2010 में 4.79, 2011 में 7.05, 2012 में 6.83 फीसदी की वृद्धि हुई। वर्ष 2021 में तो महिलाओं के प्रति अपराधों में 63 फीसदी तक की वृद्धि दर्ज हुई। बालिकाओं की तस्करी के मामलों में भी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। कुछ मामलों में तो दरिंदों द्वारा बलात्कार के बाद मासूम बच्चियों को जान से मार दिया जाता है।
बहरहाल, बालिका दिवस मनाए जाने की सार्थकता तभी होगी, जब बालिकाओं के प्रति होते भेदभाव के अलावा उनके प्रति समाज का दृष्टिकोण बदलने के भी गंभीर प्रयास हों। समाज में उन्हें भयमुक्त वातावरण प्रदान करने के लिए गंभीरता से कदम उठाए जाएं। आज भी कन्या भ्रूण हत्या से लेकर लैंगिक असमानता और यौन शोषण तक में कोई कमी नहीं है। लैंगिक भेदभाव समाज में आज भी एक बड़ी समस्या है। बालिका दिवस जैसे आयोजनों की सार्थकता तभी होगी, जब न केवल बालिकाओं को उनके अधिकार प्राप्त हों बल्कि समाज में प्रत्येक बालिका को उचित मान-सम्मान भी मिले।

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