मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

कोरोना से अनाथ हुए बच्चों की दशा पर नम हुई कोर्ट की आंखें

11:58 AM Aug 31, 2021 IST

नयी दिल्ली, 30 अगस्त (एजेंसी)

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोविड-19 ने कई जिंदगियां बर्बाद कर दीं और महामारी के दौरान अपने पिता, माता या दोनों को खो देने वाले बच्चों का जीवन दांव पर लगा देखना ‘हृदय-विदारक’ है। न्यायालय ने हालांकि ऐसे बच्चों को राहत पहुंचाने के लिये केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा घोषित योजनाओं को लेकर संतोष जताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारों ने उन बच्चों की पहचान करने में ‘संतोषजनक प्रगति’ की है, जो कोविड-19 महामारी के दौरान या तो अनाथ हो गए हैं या अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा, ‘हमें खुशी है कि यूओआई (भारत सरकार) और राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों ने जरूरतमंद बच्चों को सहायता प्रदान करने के लिए योजनाओं की घोषणा की है। हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि संबंधित अधिकारी ऐसे बच्चों को तत्काल बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।’ कोर्ट ‘बच्चों के संरक्षण गृहों पर कोविड ​​​​-19 के प्रभाव’ को लेकर स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रहा था।

Advertisement

अदालत ने आदेश में कहा कि एक लाख से अधिक बच्चों ने महामारी के दौरान या तो माता, पिता या फिर दोनों को खो दिया है। न्यायालय ने कहा कि बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के अनुसार उन बच्चों की पहचान करने के लिए जांच तेज करनी होगी, जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है।

पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की इस दलील पर गौर किया कि कोविड-19 प्रभावित बच्चों की मदद और सशक्तिकरण के लिए शुरू की गई ‘पीएम केयर्स बाल योजना’ के तहत 18 वर्ष तक के पात्र बच्चों को शिक्षा प्रदान करने की बात कही गई है। भाटी ने पीठ को बताया कि इस योजना के तहत पात्र 2,600 बच्चों को राज्यों द्वारा पंजीकृत किया गया है और इनमें से 418 आवेदनों को जिलाधिकारियों द्वारा अनुमोदित किया गया है। पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें निजी स्कूलों को वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के लिए इन बच्चों की फीस माफ करने के लिये कहेगी। न्यायालय ने कहा, ‘यदि निजी संस्थान इस तरह की छूट को लागू करने के लिए तैयार नहीं होते हैं, तो राज्य सरकार शुल्क का भार वहन करेगी।’ पीठ ने मामले की सुनवाई 7 अक्तूबर तक स्थगित कर दी।

सुप्रीम कोर्ट ने लिया था मामले का स्वत: संज्ञान

पीठ ने कहा कि योजनाओं का लाभ जरूरतमंद नाबालिगों तक पहुंचे, यह सुनिश्चित करने के लिए भी तत्काल कदम उठाने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने का संवैधानिक अधिकार है और बच्चों को शिक्षा की सुविधा प्रदान करना राज्य का कर्तव्य और दायित्व है।

आरोप तय किए बिना रखा 11 साल जेल में

नयी दिल्ली (एजेंसी): सर्वोच्च न्यायालय ने 1993 में विभिन्न राजधानी एक्सप्रेस और अन्य ट्रेनों में हुए विस्फोटों के मामले में एक आरोपी को आरोप तय किए बिना 11 साल जेल में रखे जाने पर अप्रसन्नता जताते हुए कहा कि ‘या तो उसे दोषी ठहराइए या फिर बरी कीजिए।’ त्वरित मुकदमे के अधिकार का उल्लेख करते हुए शीर्ष अदालत ने अजमेर स्थित विशेष आतंकी एवं विध्वंसक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम अदालत के न्यायाधीश से इस बारे में रिपोर्ट मांगी कि आरोपी हमीरूइउद्दीन के खिलाफ आरोप तय क्यों नहीं किए गए हैं। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा, ‘विशेष न्यायाधीश, निर्दिष्ट अदालत, अजमेर, राजस्थान को निर्देश दिया जाता है कि वह इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से दो सप्ताह के भीतर इस न्यायालय में रिपोर्ट प्रस्तुत करे…रिपोर्ट में स्पष्ट किया जाए कि आरोप तय क्यों नहीं किए गए हैं।’ पीठ ने कहा कि रिपोर्ट जल्द प्रस्तुत करने के क्रम में पंजीयक (न्यायिक) आदेश की एक प्रति संबंधित न्यायाधीश को सीधे और साथ में राजस्थान हाई कोर्ट के पंजीयक (न्यायिक) के जरिए उपलब्ध कराएंगे।

Advertisement
Tags :
आंखेंकोरोनाकोर्टबच्चों