बॉन्ड पर कोर्ट सख्त
पारदर्शी लोकतंत्र में चुनावी चंदे की शुचिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए स्टेट बैंक को हीलाहवाली के लिये आड़े हाथों लिया। चीफ जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ ने बैंक की तरफ से पेश दिग्गज वकील हरीश साल्वे की हर दलील को खारिज किया। बॉन्ड की जानकारी देने के बाबत और वक्त मांगने की दलील को खारिज करते हुए पांच सदस्यीय पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस चंद्रचूड़ ने एसबीआई को निर्देश दिया कि वह बारह मार्च तक इलेक्टोरल बॉन्ड के खरीददारों और लाभान्वित होने वाले राजनीतिक दलों के बारे में जानकारी पेश करे। साथ ही 15 मार्च तक चुनाव आयोग इस बारे में डिटेल अपनी वेबसाइट पर अपलोड करे। ताकि वास्तविक तस्वीर जनता के सामने उजागर हो सके। उल्लेखनीय है कि गत पंद्रह फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। साथ ही स्टेट बैंक को निर्देश दिया था कि गत छह साल से चल रही इस स्कीम के तहत डोनेशन देने वालों और लाभान्वित होने वालों के नामों की जानकारी चुनाव आयोग को छह मार्च तक उपलब्ध कराए। संवैधानिक बैंच ने बैंक को निर्देश दिये थे कि वह बताए कि किस तारीख को यह बॉन्ड किसने खरीदा और कितने का खरीदा और किस तारीख को किस दल ने इसे भुनाया और यह बॉन्ड कितनी धनराशि का था। दरअसल, इस बाबत बैंक की तरफ से पेश सीनियर वकील हरीश साल्वे की दलील थी कि बैंक ने गोपनीयता के चलते प्रत्येक बॉन्ड के बारे में मैचिंग डाटा नहीं रखा था, फलत: इसके मिलान के लिये तीस जून तक वक्त लग सकता है। वजह है कि दान देने व लेने वाले के डेटा अलग-अलग सर्वर पर रखे गए हैं। कोर्ट ने दो टूक कहा कि बैंक को मिलान करने की जरूरत नहीं है, सीधी जानकारी दी जाए। हमने सिर्फ दानदाता और बॉन्ड भुनाने वाले राजनीतिक दलों की जानकारी मांगी थी।
दरअसल, पांच सदस्यीय खंड पीठ की अगुवाई करने वाले मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने बैंक को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कोर्ट को आदेश दिये 26 दिन हो गए हैं, इस समय में डाटा मिलान के लिये बैंक ने क्या काम किया? कोर्ट में आवेदन करने के दौरान छब्बीस दिन के काम का उल्लेख होना चाहिए था। दरअसल, शीर्ष अदालत ने चंदे की गोपनीयता को असंवैधानिक करार दिया था तथा इस बाबत सारी जानकारी पब्लिक डोमेन में लाने की बात कही थी। दरअसल, इस बाबत जानकारी देने के लिये बैंक द्वारा तीस जून तक समय मांगने पर मामले की पैरवी करने वाले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल व प्रशांत भूषण ने इसे न्यायालय की अवमानना कहा था। वहीं चुनाव सुधार के लिये सक्रिय एडीआर ने एसबीआई को और अधिक समय देने की मांग करने वाली याचिका के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी। दरअसल, बैंक दलील देता रहा है कि हमें पूरी प्रक्रिया को रिवर्स करने में दिक्कत आ रही है, क्योंकि बैंक को बॉन्ड नंबर पर और बैंकिंग सिस्टम में खरीददारों के नाम न रखने के निर्देश थे। इस बाबत शीर्ष अदालत का कहना था कि बॉन्ड खरीदने वाले को केवाईसी की जानकारी देनी होती थी, अत: बैंक के पास बॉन्ड खरीदने वाले की जानकारी तो होनी चाहिए। दरअसल, विपक्षी दल केंद्र सरकार को निशाने पर लेते हुए बैंक पर राजनीतिक दबाव के आरोप लगाते रहे हैं। यही वजह है कि बैंक चुनाव से पहले जानकारी सार्वजनिक करने से बचता रहा है। फिलहाल, कोर्ट के आदेश केंद्र को असहज करने वाले हैं क्योंकि चुनावी बॉन्ड का सबसे ज्यादा लाभ सत्तारूढ़ दल को ही मिला है। बहरहाल, कोर्ट ने दो टूक शब्दों में बैंक से कहा कि उसे कोर्ट का पहले दिया हुआ आदेश मानना ही होगा। कोर्ट ने इस मामले में अवमानना के अपने अधिकार का प्रयोग न करने की बात दोहरायी। दरअसल, कोर्ट का मानना रहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड को गोपनीय रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)ए का उल्लंघन है। साथ ही चिंता भी जतायी थी कि गोपनीयता से चंदे के बदले में कुछ अन्य लाभ उठाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल सकता है।