वक्त का आईना दिखाते दोहे
रघुविन्द्र यादव
‘देगा कौन जवाब’ राजपाल सिंह गुलिया का नवीनतम दोहा संग्रह है। कृति में जीवन-जगत से जुड़े विभिन्न विषयों पर उनके 552 दोहे संकलित किये गए हैं।
कवि ने दोहों के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों, विसंगतियों और राजनीतिक विद्रूपताओं को जमकर बेनकाब किया है, वहीं मनुज के दोगलेपन, स्वार्थ लोलुपता और रिश्तों का खोखलापन भी उजागर किया है। दोहाकार ने बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था की बदहाली के साथ-साथ न्याय व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किये हैं तो भाई-भतीजावाद, साम्प्रदायिकता और धर्म की सियासत पर भी लेखनी चलाई है। उन्होंने मीडिया और तकनीक के दुष्प्रभाव, पर्यावरण-प्रकृति, मदिरापान, बचपन आदि विषयों को भी कथ्य बनाया है। संग्रह में कुछ नीतिपरक दोहे भी हैं।
स्वार्थ, आपाधापी और भाई-भतीजावाद के इस दौर में आम आदमी के लिए कहीं कोई जगह नहीं है। वह हर दिन कुआं खोदता है और पानी पीता है। उसकी जिन्दगी कोल्हू के उस बैल जैसी हो गई है, जो चलता तो दिन-रात है, लेकिन पहुंचता कहीं नहीं है। कवि ने सुंदर दोहे के माध्यम से इसे व्यक्त किया है :-
हुई अश्व-सी ज़िन्दगी, दौड़ रहे अविराम।/ चबा-चबाकर थक गए, कटती नहीं लगाम॥
जिस देश में कल तक माता-पिता को देव कहा जाता था, उसी देश में आज मां-बाप को अपने ही बच्चों की उपेक्षा और प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है। कवि ने इस पीड़ा को दोहों के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया है :-
दे दी सुत को चाबियां, कहकर रीतिरिवाज।/ उस दिन से वह हो गया, टुकड़ों को मुहताज॥
संग्रह के लगभग सभी दोहे कथ्य और शिल्प दोनों ही दृष्टि से परिपक्व हैं। कवि ने मुहावरों, अलंकारों और प्रतीकों का प्रयोग करके दोहों की प्रभावोत्पादकता को बढ़ाया है।
कुछ दोहों का कथ्य, शिल्प ही नहीं, भाव और भाषा भी देखने लायक है :-
उतना सुलगा यह जिया, जितना भीगा गात।/ छनक-छनक कर चूड़ियां, जागी सारी रात॥
हां, प्रूफ की अशुद्धियां कुछ जगह अवश्य दृष्टिगोचर होती हैं। एक-दो दोहों में शिल्पगत दोष भी रह गए हैं।
पुस्तक : देगा कौन जवाब लेखक : राजपाल सिंह गुलिया प्रकाशक : अयन प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 104 मूल्य : 280